-विनोद द. मुले
वर्तमान युग में हममें से अधिकांश व्यक्तियों की आम शिकायत या तो पीठ के बारे में होती है या पेट के बारे में। उष्ट्रासन के नियमित अभ्यास से इन दोनों परेशानियों से हम बच सकते हैं।
उष्ट्रासन, वज्रासन समूह का आसन कहलाता है, क्योंकि यह आसन करने हेतु हमें सर्वप्रथम वज्रासन लगाना पड़ता है। वज्रासन लगाने के बाद घुटनों के बल खड़े हो जाते हैं। इसके पश्चात दोनों हाथों को सामने की ओर से ऊपर ले जाते हुए पीछे की ओर लाते हैं एवं उन्हें दोनों पैरों के टखनों के पास रखते हैं। टखनों के पास जब दोनों हाथों को रखते हैं तो ध्यान रखें कि हाथों के अँगूठे अंदर की ओर तथा चारों उँगलियाँ बाहर की ओर एक-दूसरे से सटी रहें। अंतिम अवस्था में पैरों की उँगलियाँ अंदर की ओर मुड़ी रहेंगी, दोनों हाथ टखनों पर रहेंगे, गर्दन तथा शरीर यथासंभव पीछे की ओर झुका रहेगा। साँस सामान्य रूप से चलती रहेगी।
इस आसन के लाभ ही लाभ हैं। गर्दन में स्थित थॉयरॉयड ग्रंथि का व्यायाम होता है। मेरूदंड स्वस्थ रहता है, जिससे पीठ के दर्द से छुटकारा मिलता है। अमाशय ठीक तरह से काम करता है, जिससे पेट के विकार दूर होते हैं। इस आसन से गर्दन, पेट और कमर में जमा अनावश्यक चर्बी दूर होती है और ये अंग सुडौल बनते हैं। कुछ लोगों को वज्रासन करते समय प्रारंभ में दर्द हो सकता है, अतः वे वज्रासन में बैठने का समय धीरे-धीरे बढ़ाएँ। कुछ समय बाद यह दर्द जाता रहेगा।