डॉ. कैलाशचंद्र दीक्षित
छह साल की एक बच्ची को सूखी खाँसी की एक साल से शिकायत थी। इसकी शुरुआत तब हुई थी जब उसने एक बार आइसक्रीम खाई थी। आइसक्रीम खाने के तुरंत बाद उसकी नाक से पानी जैसा तरल पदार्थ निकलने लगा था। परिवार के सभी लोग समझे कि इसे सामान्य सर्दी हो गई है।
उन्होंने सर्दी पर नियंत्रण करने की गरज से गर्म पानी तथा कुछ घरेलू दवाएँ खिला दी। बच्ची को दो दिन में आराम आ गया लेकिन दो-तीन दिन बाद उसे सूखी खाँसी आने लगी। शुरू में इसकी तीव्रता कम थी। शुरू में खाँसी के दो या तीन दौरे पड़ते थे, लेकिन उनकी आवृति कम थी । फिर से घरेलू नुस्खे आजमाए गए जिसका अच्छा असर हुआ।
कुछ दिनों बाद बच्ची को तीव्र खाँसी का दौरा पड़ा। पिछले दौरों के मुकाबले इस बार यह अधिक ताकतवर था। परिजनों ने इस बार फीजिशियन को दिखाया। उसने कफ सायरप तथा अन्य दवाएँ लिख दीं। बच्ची को इनसे आराम आ गया लेकिन खाँसी ने पूरी तरह से पीछा नहीं छोड़ा। फीजिशियन ने पैथॉलॉजी टेस्ट भी कराए लेकिन कुछ नतीजा हाथ नहीं आया।
इस बीच दवाओं के असर से बच्ची ठीक हो गई और सब कुछ भुला दिया गया। लगभग एक महीने तक सब कुछ सामान्य रहा लेकिन इसके बाद बच्ची को खाँसी का एक जबरदस्त दौरा पड़ा।
इस बार खाँसी के दौरे बहुत जल्दी जल्दी पड़ रहे थे। कई बार तो वह इतना खाँसती थी कि बोल ही नहीं पाती थी। अबकी बार परिजनों ने चेस्ट स्पेशलिस्ट की शरण ली। चिकित्सक ने मरीज को एंटीएलर्जिक दवाएँ दी । जैसे ही दवाएँ रोक दी जाती थीं उसकी तकलीफ फिर शुरू हो जाती थी। बच्ची को किसी तरह की राहत नहीं मिल रही थी।
दिनोंदिन तकलीफ में इजाफा हो रहा था। उस बेचारी की दवाओं पर निर्भरता बढ़ती जा रही थी। वह 6-8 घंटे से ज्यादा देर तक बिना दवाओं के नहीं रह पाती थीं। कुछ अर्से बाद उसकी खाँसी इतनी तीव्र होने लगी कि उसकी साँस तक उखड़ जाती थी। सूखी खाँसी के दौरे रात में भी पड़ते थे और बच्ची ठीक से सो भी नहीं पाती थी।
कई बार तो खाँसी के दौरे के चलते वह उल्टी भी कर देती थी क्योंकि खाँसी का दबाव पेट पर भी पड़ता था। अंततः चेस्ट कंसल्टेंट ने टीबी की भी जाँच करने की सिफारिश कर डाली। चेस्ट एक्सरे में ब्रॉंकोवॉस्कूलर प्रोमिनेंस के अतिरिक्त कुछ नहीं निकला। चिकित्सक की सलाह पर प्रायमरी कांप्लेक्स का इलाज शुरू किया गया।
इस इलाज से केवल दो महीने तक ही फायदा रहा बाद में फिर खाँसी के दौरे शुरू हो गए। परिवार वालों ने बगैर चिकित्सक को सूचित किए उसका इलाज बंद कर दिया और आयुर्वदिक इलाज शुरू कर दिया। इससे भी मरीज को कोई फायदा नहीं हुआ। अब खाँसी के दौरे तीन-चार मिनट तक लगातार रहने लगे। उसकी खाँसी की आवाज सीधे छाती की गहराइयों से इतनी तीव्रता से आती थी कि दूसरे कमरे में सुनी जा सकती थी।
किसी पारिवारिक मित्र के कहने पर होम्योपैथी इलाज कराने का मन बनाया। मरीज को जब हमारे पास लाया गया तब दौरों पर काबू पाने के लिए कुछ दवाएँ दी जा रही थीं। परिजन वे दवाएँ इसलिए बंद नहीं करना चाहते थे कि यदि फिर से खाँसी के तीव्र दौरे पड़ने लगे तो क्या होगा? हमने दूसरी दवाओं के साथ ही होम्योपैथिक दवाएँ देना शुरू कर दिया। शुरू में दवाओं का कुछ कम असर हुआ।
धीरे-धीरे चेस्ट कंसल्टेंट की दवाओं को भी कम करना शुरू किया। चार महीनों के इलाज के बाद मरीज पूरी तरह से अन्य दवाओं की निर्भरता से मुक्त हो गई। मरीज का इलाज 'ड्रोसेरा' नामक दवा से शुरु किया। तीव्र दौरों पर काबू पाने के बाद मरीज को 'मॉरबिलिनम' दी गई। मरीज अब ठीक है।