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उड़द : पौष्टिकता से भरपूर

सेहत डेस्क

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उड़द की दाल एक अत्यंत बलवर्द्धक, पौष्टिक व सभी दालों में पोषक होती है। इसकी छिलके वाली दाल ज्यादा पौष्टिक होती है। कमजोर पाचन वालों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए।

उड़द की दाल का उपयोग भोजन में दाल के रूप में किया जाता है। इस दाल को पीसकर इसके आटे के लड्डू भी बनाए जाते हैं, जो अत्यंत बलवर्द्धक व पौष्टिक होते हैं।

जिन लोगों की पाचन शक्ति प्रबल होती है, वे यदि इसका सेवन करें, तो उनके शरीर में रक्त, मांस, मज्जा की वृद्धि होती है। उड़द वीर्य वर्द्धक, हृदय को हितकारी है। यह वात, अर्श का नाश करती है। यह स्निग्ध, विपाक में मधुर, बलवर्द्धक और रुचिकारी होती है।

उड़द की दाल अन्य प्रकार की दालों में अधिक बल देने वाली व पोषक होती है। धुली हुई दाल प्रायः पेट में आफरा कर देती है। छिलकों वाली दाल में यह दुर्गुण नहीं होता। गरम मसालों सहित छिलके वाली दाल ज्यादा गुणकारी होती है।

सभी लोग किसी न किसी दाल का सेवन रोज ही करते हैं। सप्ताह में तीन दिन भोजन में उड़द की छिलके वाली दाल का सेवन किया जाए, तो यह शरीर को बहुत लाभ करती है। यदि इसमें नींबू मिलाकर खाएँ तो इसका स्वाद बढ़ जाता है और पाचन भी सरल हो जाता है।

उड़द, दाल तो है ही, यह दवा का भी काम करती है। लकवा, कम्पवात, एकांगवात आदि विकारों में उड़द की दाल के साथ कौंच के बीज, खरैटी, एरण्यमूल मिला क्वाथ सिद्ध करके सेंधा नमक मिलाकर पिलाते हैं।

यदि रोगी की जठराग्नि मंद हो तो उड़द का पाक या उड़द के लड्डू बनाकर सेवन कराते हैं। उड़द की दाल को पिसवाकर उसमें सभी प्रकार के मेवे मिलाकर लड्डू बनाते हैं, ये लड्डू अत्यंत शक्ति वर्द्धक होते हैं।

इस प्रकार के लड्डू का सेवन निर्बल, कमजोर तथा व्यायाम करने वाले भी करते हैं। इन लड्डुओं का सेवन सिर्फ शीत ऋतु में ही किया जाना चाहिए। शीत ऋतु में पाचन शक्ति प्रबल होती है, बदहजमी नहीं होने पाती, खाया-पिया हजम हो जाता है, इसलिए शीत ऋतु उत्तम मानी गई है।

इसके लड्डू नवंबर से फरवरी यानी चार माह तक अपनी पाचन शक्ति व सुविधा के अनुसार सेवन करना चाहिए।

औषधि के रूप में प्रयोग

* 50 ग्राम उड़द की छिलके वाली दाल को रात में पानी में भिगो दें। सुबह छिलके निकालकर साफ पानी से धो लें। समान मात्रा में शुद्ध घी मिलाकर हलकी आँच पर लाल होने तक भूनें। उतनी ही शकर या मिश्री मिलाकर एक सप्ताह तक सेवन करने से पुराने से पुराना मूत्र रोग ठीक हो जाता है।

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* 20 से 50 ग्राम उड़द की दाल छिलके वाली रात को पानी में भिगो दें, सुबह इसका छिलका निकालकर दाल को सिलबट्टे पर बारीक पीस लें। इस पेस्ट को इतने ही घी में हलकी आँच पर लाल होने तक भूनें, फिर उसमें 250 ग्राम दूध (या जितना ज्यादा आप पी सकें) डालकर खीर जैसा बना लें, इसमें स्वाद के अनुसार थोड़ी सी मिश्री (मिश्री का ही प्रयोग करें, मिश्री न होने पर शकर का) मिलाकर इसका सुबह खाली पेट सेवन करें।

ऐसा तीन माह तक करें। यह प्रयोग आपको इतना बलवान व वीर्यवर्द्ध बना देगा कि आपको यकीन ही नहीं होगा। इसे गरीबों का नुस्खा भी कहते हैं, लेकिन हर वर्ग के लोग इसका प्रयोग करें तो बेहतर है।

* यदि युवतियाँ इस खीर का सेवन करें तो उनका रूप निखरता है। स्तनपान कराने वाली युवतियों के स्तनों में दूध की वृद्धि होती है। यदि गर्भाशय में कोई विकार है तो दूर होता है। पुरुष हो या स्त्री, उड़द के लड्डू या खीर का नियमपूर्वक सेवन तीन माह करने से नवयौवन मिलता है, यदि यौवन है, तो वह और निखरता है।

विशेष : उड़द गरम प्रकृति की, तर, दुष्पाच्य, भारी, बलगम पैदा करने वाली होती है। दमा, जिगर, कब्ज अजीर्ण, मोटापा व खाँसी के रोगियों को इसका सेवन नहीं करना चाहिए।

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