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सत्तू : ग्रीष्मकाल का पथ्य आहार

हमें फॉलो करें सत्तू : ग्रीष्मकाल का पथ्य आहार
चना, मकई या जौ वगैरह को बालू में भूनने के बाद उसको आटा-चक्की में पीसकर बनाए गए चूर्ण (पावडर) को सत्तू कहा जाता है। ग्रीष्मकाल शुरू होते ही भारत में अधिकांश लोग सत्तू का प्रयोग करते हैं। खासकर दूर-दराज के छोटे क्षेत्रों व कस्बों में यह भोजन का काम करता है।

चने वाले सत्तू में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है और मकई वाले सत्तू में कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक होती है। इन दोनों प्रकार के सत्तू का अकेले-अकेले या दोनों को किसी भी अनुपात में मिलाकर सेवन किया जा सकता है।

सत्तू के विभिन्न नाम

भारत की लगभग सभी आर्य भाषाओं में सत्तू शब्द का प्रयोग मिलता है, जैसे पाली प्राकृत में सत्तू, प्राकृत और भोजपुरी में सतुआ, कश्मीरी में सोतु, कुमाउनी में सातु-सत्तू, पंजाबी में सत्तू, सिन्धी में सांतू, गुजराती में सातु तथा हिन्दी में सत्तू एवं सतुआ।

यह इसी नाम से बना बनाया बाजार में मिलता है। गुड़ का सत्तू व शकर का सत्तू दोनों अपने स्वाद के अनुसार लोगों में प्रसिद्ध हैं। सत्तू एक ऐसा आहार है जो बनाने, खाने में सरल है, सस्ता है, शरीर व स्वास्थ्य के लिए लाभकारी है और निरापद भी है।

विभिन्न प्रकार के सत्तू

जौ का सत्तू : जौ का सत्तू शीतल, अग्नि प्रदीपक, हलका, दस्तावर (कब्जनाशक), कफ तथा पित्त का शमन करने वाला, रूखा और लेखन होता है। इसे जल में घोलकर पीने से यह बलवर्द्धक, पोषक, पुष्टिकारक, मल भेदक, तृप्तिकारक, मधुर, रुचिकारक और पचने के बाद तुरन्त शक्ति दायक होता है। यह कफ, पित्त, थकावट, भूख, प्यास और नेत्र विकार नाशक होता है।

जौ-चने का सत्तू : चने को भूनकर, छिलका हटाकर पिसवा लेते हैं और चौथाई भाग जौ का सत्तू मिला लेते हैं। यह जौ चने का सत्तू है। इस सत्तू को पानी में घोलकर, घी-शकर मिलाकर पीना ग्रीष्मकाल में बहुत हितकारी, तृप्ति दायक, शीतलता देने वाला होता है।

चावल का सत्तू : चावल का सत्तू अग्निवर्द्धक, हलका, शीतल, मधुर ग्राही, रुचिकारी, बलवीर्यवर्द्धक, ग्रीष्म काल में सेवन योग्य उत्तम पथ्य आहार है।

जौ-गेहूं चने का सत्तू : चने की दाल एक किलो, गेहूं आधा किलो और जौ 200 ग्राम। तीनों को 7-8 घंटे पानी में गलाकर सुखा लेते हैं और जौ को साफ करके तीनों को अलग- अलग घर में या भड़भूंजे के यहां भुनवा कर, तीनों को मिला लेते हैं और पिसवा लेते हैं। यह गेहूं, जौ, चने का सत्तू है।

सेवन विधि : इनमें से किसी भी सत्तू को पतला पेय बनाकर पी सकते हैं या लप्सी की तरह गाढ़ा रखकर चम्मच से खा सकते हैं। इसे मीठा करना हो तो उचित मात्रा में शकर या गुड़ पानी में घोलकर सत्तू इसी पानी से घोलें।

नमकीन करना हो तो उचित मात्रा में पिसा जीरा व नमक पानी में डालकर इसी पानी में सत्तू घोलें। इच्छा के अनुसार इसे पतला या गाढ़ा रख सकते हैं। सत्तू अपने आप में पूरा भोजन है, यह एक सुपाच्य, हलका, पौष्टिक और तृप्तिदायक शीतल आहार है, इसीलिए इसका सेवन ग्रीष्म काल में किया जाता है।

पाचन में सहायक

सत्तू का सेवन सभी प्रकार के पाचन संबंधी रोगों में गुणकारी पाया गया है। इसके सेवन से कब्ज की शिकायत से छुटकारा पाने में मदद मिलती है। एसिडिटी के मरीज को चने के सत्तू का सेवन करते रहने से बहुत राहत मिलती है, क्योंकि इसमें मौजूद क्षार एसिडिटी को दूर करने का काम करता है।

* गर्मी के मौसम में पानी में चने का सत्तू और थोड़ा सा नमक तथा भुना हुआ जीरा मिलाकर पीने से शरीर को ठंडक प्राप्त होती है, इसलिए लू लगने का डर नहीं रहता है।

* चना कफनाशक है। यही कारण है कि रात को सोते समय एक पाव दूध में दो बड़ा चम्मच चने का सत्तू मिलाकर पीने से श्वास नली में जमा कफ सुबह निकल जाता है और खांसी मिटती है।

* गुड़ मिलाकर चने के सत्तू का रोज सेवन करने से दस दिनों में बहुमूत्रता या बार-बार पेशाब आने की समस्या दूर हो जाती है।

* डेढ़-दो चम्मच चने का सत्तू और बादाम की पांच गिरी खाकर ऊपर से एक पाव मीठा दूध पीने से वीर्य गाढ़ा होता है।

* रोज रात को सोते समय थोड़ी मात्रा में चने के सत्तू का सेवन करने से बवासीर के मस्सों से होने वाला रक्त का रिसाव बन्द हो जाता है।

* चने के सत्तू में गुड़ मिलाकर रोज सेवन करने और ऊपर से एक पाव दूध में एक चम्मच देशी घी मिलाकर पीने से महिलाओं की श्वेत प्रदर की शिकायत दूर हो जाती है।

* यदि कहीं गहरा घाव हो जाए, तो चने के सत्तू में अलसी का तेल मिलाकर मरहम तैयार करें। इस प्रकार तैयार किए गए मरहम के
इस्तेमाल से घाव शीघ्र भर जाता है।

चने के सत्तू सेवन में सावधानी

* चने के सत्तू का अत्याधिक सेवन पेट में वायु (गैस) पैदा करता है, इसलिए आहार में इसे ज्यादा न लें, इसका ध्यान रखना चाहिए।

* पथरी के रोगियों के लिए चने के सत्तू का सेवन हानिकारक है़ इसलिए उन्हें इसका सेवन नहीं करना चाहिए।

* चना कोढ़ के प्रकोप में वृद्धि करता है, इसलिए कोढ़ के मरीज को चने के सत्तू का सेवन नहीं करना चाहिए।

* वर्षा ऋतु में चने के सत्तू का सेवन कम से कम करना चाहिए या फिर इसके सेवन से जहां तक हो सके बचना चाहिए।

* सत्तू को खाते हुए बीच में पानी नहीं पीना चाहिए * एक ही दिन में दो बार सत्तू नहीं खाना चाहिए। * केवल अकेला सत्तू ही नहीं खाना चाहिए (नमक, शकर, गुड़ आदि मिलाकर खाना चाहिए) * भोजन करके सत्तू नहीं खाना चाहिए तथा अधिक मात्रा में सत्तू खाना ठीक नहीं है।

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