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विश्व स्तर पर हिन्दी स्वयं को सिद्ध कर चुकी है

हमें फॉलो करें विश्व स्तर पर हिन्दी स्वयं को सिद्ध कर चुकी है

सुधा अरोड़ा

आपने बहुत से संस्थानों के लिफाफों पर छपा देखा होगा कि हिन्दी दुनिया की तीसरी बड़ी भाषा है जबकि हकीकत यह है कि अंग्रेजी के बाद हिन्दी ही विश्व की दूसरे नंबर पर सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषा है। चीनी भाषा को दूसरे स्थान पर माना गया है पर शुद्ध चीनी भाषा जानने वालों की संख्या हिन्दी जानने वालों से काफी कम हैं।

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अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विदेशियों में हिन्दी भाषा सीखने और जानने वालों की संख्या में गुणात्मक वृद्धि हो रही हैं। इसके ठीक विपरीत हमारे अपने देश में बच्चे दूसरी कक्षा से ही, जब उन्हें क ख ग सिखाया जाता है, हिन्दी के नाम पर नाक-भौंह सिकोड़ना शुरू कर देते हैं - क्या कभी हमने जानने और जांचने की कोशिश की कि ऐसा क्यों होता हैं?


विश्व स्तर पर हिन्दी

आज वैश्विक स्तर पर यह सिद्ध हो चुका है कि हिन्दी भाषा अपनी लिपि और ध्वन्यात्मकता (उच्चारण) के लिहाज से सबसे शुद्ध और विज्ञान सम्मत भाषा है। हमारे यहां एक अक्षर से एक ही ध्वनि निकलती है और एक बिंदु (अनुस्वार) का भी अपना महत्व है। दूसरी भाषाओं में यह वैज्ञानिकता नहीं पाई जाती।

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अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ग्राह्य भाषा अंग्रेज़ी को ही देखें, वहां एक ही ध्वनि के लिए कितनी तरह के अक्षर उपयोग में लाए जाते हैं जैसे ई की ध्वनि के लिए ee(see) i (sin) ea (tea) ey (key) eo (people) इतने अक्षर हैं कि एक बच्चे के लिए उन्हें याद रखना मुश्किल हैं, इसी तरह क के उच्चारण के लिए तो कभी c (cat) तो कभी k (king)ch का उच्चारण किसी शब्द में क होता है तो किसी में च। ऐसे सैंकड़ों उदाहरण हैं।


आश्चर्य की बात है कि ऐसी अनियमित और अव्यवस्थित, मुश्किल अंग्रेजी हमारे बच्चे चार साल की उम्र में सीख जाते हैं बल्कि अब तो विदेशों में भी हिंदुस्तानी बच्चों ने स्पेलिंग्स में विश्व स्तर पर रिकॉर्ड कायम किए हैं, जब कि इंग्लैंड में स्कूली शिक्षिकाएं भी अंग्रेज़ी की सही स्पेलिंग्स लिख नहीं पाती।

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हमारे यही अंग्रेजी भाषा के धुरंधर बच्चे कॉलेज में पहुंचकर भी हिन्दी में मात्राओं और हिज्जों की गलतियां करते हैं और उन्हें सही हिन्दी नहीं आती जबकि हिन्दी सीखना दूसरी अन्य भाषाओं के मुकाबले कहीं ज्यादा आसान है।

इसमें दोष किसका है? क्या इन कारणों की पड़ताल नहीं की जानी चाहिए?

(देवनागरी लिपि की ध्वन्यात्मक वैज्ञानिकता देखने के बाद अब नए मॉन्टेसरी स्कूलों में बच्चों को ए बी सी डी ई एफ जी एच की जगह अ ब क द ए फ ग ह पढ़ाया जाता है।)

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