अपने-अपने गिरेबान : कहानी संग्रह
मानवीय संवेदनाओं से जुड़ी कहानियाँ
कृष्ण कुमार भारतीय
कहानी ही तो जीवन है और जीवन एक कहानी। कितनी ही कहानियों को हम अपने जीवन में साकार रूप लेते देखते हैं और न जाने कितनी ही कहानियाँ अपने भ्रूण रूप में ही दम तोड़ देती हैं। कहानी, जीवन से जुड़ी अभिन्न विधा है। किसी न किसी रूप में हर कोई कहानीकार ही है। सुश्री नियति सप्रे एक संवेदनशील कहानी लेखिका हैं। उनकी कहानियों के कथानक का मानव जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं से करीबी संबंध है। उनकी कहानियाँ सहज एवं स्वाभाविक प्रतीत होती हैं। जोड़-तोड़ का कोई भी प्रयास नियति जी कहानियों में नहीं है।
नियति सप्रे का कहानी-संग्रह 'अपने-अपने गिरेबान' आधुनिक समाज की विभत्सताओं का बड़ी ईमानदारी से पर्दाफाश करता है। नई व पुरानी पीढ़ी में अन्तर्द्वन्द्व, लैंगिक मतभेद, संवेदनहीनता, नारी-विमर्श व मानवीय रिश्तों से जुड़े प्रसंग इस संग्रह में सर्वत्र बिखरे पड़े हैं।
नारी की व्यथा से पूर्णतः परिचित नियति सप्रे की संग्रह की पहली कहानी 'छिपा हुआ सत्य' में स्त्री-पुरुष की चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख किया गया है। कहानी में सतीश का सुमा के प्रति व्यवहार बेचैन कर देने वाला है। असल में पुरुष स्त्री जैसा हो ही नहीं सकता। वह केवल स्त्री पर अपने अधिकार की बात याद रखता है, उसके प्रति अपने कर्त्तव्यों की वह अनदेखी करता है।
सुमा की भावनाओं का मजाक बनाना अख़रता है। अन्य कहानी 'सुमा' में नारी जीवन की पीड़ा का सघन चित्रण है। सुमा के माध्यम से उन भारतीय नारियों का त्रासद जीवन अभिव्यक्त हुआ है जिन्हें पति की मृत्यु के बाद मान-मर्यादा के नाम पर स्वाहा होना पड़ता है। 'एक सपने की आत्महत्या' में मानवीय रिश्तों की महक है। भवानी व किंग जी चरित्र प्रधान कहानियाँ हैं। कहानी के चरित्र सहज गति से प्रवाहित होते हुए जीवंत प्रतीत होते हैं।
|
कहानियाँ आम पाठक की समझ व पहुँच में हैं। मानवीय जीवन से जुड़ी इन कहानियों में पाठकों के अपने अनुभव अभिव्यक्त हुए हैं जो इस संग्रह की अतिरिक्त विशेषता है।
|
|
|
संवेदना की सूखती नदी पीढ़ीगत अन्तराल को दर्शाती है। मीनू के ख़त की पंक्तियाँ -
'हमने (आज की पीढ़ी ने) आप लोगों से बहुत कुछ अलग पाया, पर कुछ सुखद, चिरस्थायी अनुभवों से हम लोग सचमुच वंचित रह गए। आज सोचने पर लगता है कि वास्तव में बहुत बड़ी कीमत चुकाकर हम इस उन्नति के दौर से गुजर रहे हैं।'
इंगित करती हैं कि नई पीढ़ी ने बेशक अपने लिए तमाम सुविधाएँ जुटा ली हैं परंतु संवेदना व प्यार की उष्मा के अभाव में वह सब नीरस ही है। कृपालू कहानी में मानवीय अहम की अभिव्यक्ति है। कहानी में यू टर्न जैसी स्थिति है। 'सिर्फ एक बार' में पश्चाताप के आँसु बहा रहा एक प्यार है जो सीख देने वाला है।
संग्रह की शीर्षक कहानी 'अपने-अपने गिरेबान' में मिसेज रंगनाथन का व्यक्तित्व प्रभावशाली है। कहानी में निम्नवर्गीय भिखारी लड़की के व्यवहार से एक तरफ जहाँ उच्च वर्ग के प्रति उनकी घृणा का परिचय मिलता है वहीं उसके वक्तव्य से यह बात भी सामने आती है कि उच्च वर्ग सामान्यतः निम्न वर्ग की सभ्यता और संस्कृति का तो विश्लेषण-आकलन करता है परंतु वह स्वयं क्या कर रहा है, इसकी परवाह उसे नहीं है।
संग्रह की अंतिम कहानी सफर आधुनिक समाज के संस्कारों पर चोट करती है। 'अरुण, क्या पता हम अटके हुए हैं या वो लोग भटके हुए हैं।' पंक्ति उस विडम्बना की ओर संकेत करती है जो आधुनिकता की अंधी दौड़ में जीवन मूल्यों व मर्यादाओं को तिलांजलि देने के फलस्वरूप पैदा हुई है।
संग्रह की सर्वश्रेष्ठ कहानी के रूप 'कटनी वाली' कहानी की चर्चा अनिवार्य है। समीक्षक की राय में लेखिका की सारी विचारधारा का परिचय इस एक कहानी से पाया जा सकता है। कहानी समाज के कई भयावह सत्यों का उदघाटन करती है। लैंगिक मतभेद व वृद्धाश्रम जैसी सामाजिक विसंगति को कहानी में प्रस्तुत किया गया है। 'इतने छोटे से शहर में वृद्धाश्रम....... क्या जीवन इतना बदसूरत भी हो सकता है।' पंक्तियों में निहित भाव को समझने की आवश्यकता है अर्थात जब छोटे-छोटे शहरों की यह स्थिति है तो महानगरों में क्या हाल होगा यह विचारणीय है। कहानी के अंत में प्रस्तुत मंझली बहू (नानी) का पत्र अत्यंत सारगर्भित शब्दों में जीवन का मूल कह जाता है।
संग्रह के शिल्प पक्ष पर यदि बात की जाए तो संक्षेप में कहना होगा कि सरल, सहज व स्वाभाविक भाषा का प्रयोग हुआ है। पूर्व दीप्ति पद्धति का प्रयोग सर्वथा सराहनीय है। कहानियाँ आम पाठक की समझ व पहुँच में हैं। मानवीय जीवन से जुड़ी इन कहानियों में पाठकों के अपने अनुभव अभिव्यक्त हुए हैं जो इस संग्रह की अतिरिक्त विशेषता है।
पुस्तक : अपने-अपने गिरेबान,
लेखिका : नियति सप्रे
प्रकाशक : आर्यन प्रकाशन, नई दिल्ली
मूल्य : 150 रुपए
पृष्ठ : 128