हरिओम का पहला कहानी संग्रह 'अमेरिका मेरी जान' संभावना और उम्मीद से भरा है। हरिओम की शैली में किस्सागोई खूब है और यह उनके इस संग्रह की दसों कहानियों में छाई हुई है। इस कहानी संग्रह की मजबूती है इसमें विविध रूप-रंग में मौजूद गाँव-कस्बाई जीवन, जिसे कहानीकार ने अपने जिए यथार्थ की तरह ईमानदारी से कलमबंद किया है।
कहीं से भी नॉस्टेलेजिक हुए बगैर आज के गाँव-कस्बों के संकट, 'आवारा पूंजी की बेरहम मार' से लड़ते-भिड़ते-हिम्मत हारते, पलायन करते अनगिनत किरदारों से भरी इन कहानियों के जरिए कहानीकार ने मौजूदा समय की नब्ज पकड़ने कोशिश की है। संग्रह की कई कहानियों में ग्रामीण अंचलों के सौहार्द भरे वातावरण को नष्ट कर सांप्रदायिक विद्वेष की खामोश-सी लेकिन लगातार बढ़ती जहरीली गिरफ्त और उसके पीछे सक्रिय पूरी राजनीतिक साजिश को पाठकों के सामने रखा गया है।
बिना बहुत वोकल या लाउड हुए कहानीकार इस साजिश की डोर को अमेरिका की मुसलमानों तथा इस्लाम के खिलाफ छेड़े गए युद्ध से जोड़ने में सफल होता है। संग्रह की अंतिम कहानी 'अमेरिका मेरी जान' में इस लिहाज से उल्लेखनीय है। इसमें जब पाठक एक छोटे शहर के गरीब लड़के मोबीन और सब्जी बेचने वाले अब्बा की दास्ताँ से गुजरता है तो उसे बरबस ही उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और उसके आसपास के सैकड़ों मुस्लिम परिवारों की त्रासदी याद आ जाती है, जिन्हें सिर्फ मुसलमान होने की वजह से राजनीतिक साजिश के तहत पुलिसिया दमन का शिकार बनाया गया।
इस संग्रह की एक और खासियत यह है कि इसमें हर कहानी मिलते-जुलते परिवेश के होने के बावजूद एक-दूसरे से विषय वस्तु और शिल्प दोनों के आधार पर बिलकुल फर्क है। 'ये धुआँ धुआँ अंधेरा' कहानी में बेहद सशक्त ढंग से रोमानी कलेवर के साथ एक शहर में पढ़ने आए युवा का वाम राजनीति से जुड़ाव, उसकी जद्दोजहद, प्रेम से गुजरने के साथ-साथ समाज में बढ़ते सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के बारीक रेशों को एक सजग निगाह के साथ कहानीकार ने रखा है। इसी तरह से 'आम कसम' बिलकुल अलहदा किस्म की कहानी है।
इसमें कहानीकार का आम के प्रति प्रेम और आम की विविध किस्मों का ज्ञान तो झलकता ही साथ में किस तरह से पूंजीवादी विकास आम के बगीचों को खा गया, इसका जीवंत चित्रण है। हरिओम की कहानियों की विषयवस्तु बहुत छोटी सी घटना, रास्ता, प्रेमकथा होते हुए भी एक बड़े फ्रेम की ओर बढ़ती है। वे अर्थव्यवस्था-समाज-राजनीति में उस समय में घटित हो रहे बड़े परिवर्तनों से जुड़ती है, मिसाल के तौर पर 'रास्ता किधर है', 'जय हिंद', 'मियां', 'मुँहनोचवा'।
हरिओम की कहानियों का स्त्री पक्ष भी मजबूत है, चाहे वह 'जगधर की प्रेमकथा' हो, 'लबड्डा' या 'ये धुआं धुआं अंधेरा'। ग्रामीण परिवेश से लेकर शहरों में किस तरह विरोधी माहौल में स्त्रियाँ अपनी छोटी बड़ी लड़ाइयाँ, रणनीतियाँ बना रही हैं इस पर कहानीकार की पकड़ है। ग्रामीण परिवेश में लिखी गई 'जगधर की प्रेमकथा' रोमानियत और यथार्थ के दाँवपेच से वाकिफ दलित जाति का महितन के मन के उतार-चढ़ाव को पकड़ने के साथ-साथ यह भी बताने से नहीं चूकती कि पुरुष के जीवन में 'प्रेम और स्त्री की गंध' की कितनी अहमियत है।
कई कहानियों में अनावश्यक विवरण-विस्तार कथावस्तु को धूमिल-सा करते हैं लेकिन कहानीकार भाषायी चतुराई से अंत में उसे संभाल लेते हैं। कहानीकार हरिओम कई बार ऐसा लगता है कि वह अपनी कहानी के मोह में फँस से जाते हैं। न कहानी खत्म होती है और न ही वह उसे खत्म करना चाहता है। ऐसा उनकी कई कहानियों को पढ़ते हुए लगता है कि शायद इसे कहानीकार उपन्यास की ओर ले जाना चाहता है। मिसाल के तौर पर रास्ता किधर है लबड्डा आदि कहानियाँ देखी जा सकती है।
पुस्तक : अमेरिका मेरी जान लेखक : हरिओम प्रकाशक : अंतिका प्रकाशन मूल्य : 200 रुपए