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आओ बैठ लें कुछ देर

राजकमल प्रकाशन

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पुस्तक के बारे में
आओ बैठ लें कुछ देर, प्रसिद्ध कथाकार और चिंतक श्रीलाल शुक्ल की सीधी-सादी किन्तु व्यंग्यात्मक शैली में 1992- 93 के दौरान 'नवभारत टाइम्स' में लिखे गए चुनिंदा स्तंभ लेखों का संकलन है। श्री शुक्ल के इन लेखों में राजनीति, समाज, भाषा, साहित्य, रंगमंच, पत्रकारिता, फिल्म आदि विषयों पर समग्रता से विचार करने की एक निजी पद्धति देखने को मिलती है। दरअसल ये टिप्पणियाँ एक खास मिजाज और खास शैली में लिखी गई है, जिसकी प्रासंगिकता पर कभी धूल की परत नहीं जम सकती।

पुस्तक के चुनिंदा अं

भारत का असली उद्योग अब शेयर बाजार का है। लंगोटी लगाकर खुले आसमान के नीचे घूमिए और सट्टा लगाइए। पर यह जो शेयरों का व्यवसाय है इसकी हैसियत सुअर के बच्चे जैसी है। चाहे जितनी मुला‍यमत से उसे छूने के लिए आप हाथ बढ़ाएँ, वह जरा सी हरकत देखते ही जोर से चिचिहाने लगता है। शेयर मार्केट की भी यही हालत है। पुरवा का रूख जरा बदला नहीं कि शेयरों के दाम गिरे, जोर से पछुवा चली और लखपति अचानक करोड़पति बन गया।
(अपनी अपनी डफली' से)
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छन्नुलाल मिश्र ने गाया : चैत मास बोले कोयलिया हो रामा ...।' यहाँ तक गनीमत है। गाँवों से अमराइयाँ गायब हो रही है, फिर भी कभी-कभी कोयल बोल जाती है। अभी एकाध पीढ़ी तक इस गीत का अर्थ समझने में दिक्कत ना होगी। पर उस चैती का क्या होगा जिसमें चैत मास चुनरी रंगा देहो रामा... गाया जाता है। डिजाइनदार चुनरिया भले ही चल गई हो पर रंगरेज और अंग वस्त्र रंगने का चलन क्या अब भी बाकी है? और पलाश के फूलों का रंग क्या अब भी घर में तैयार किया जाता है?
(लोक संगीत का क्या होगा' से)
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स्टीफेन लीकॉक का एक पुराना निबंध है : दो सौ साल कैसे जिएँ? वे फरमाते हैं : जहाँ तक खुराक का सवाल है, जो मन में आए खाइए, जब चाहे खाइए, जहाँ चाहिए खाइए! बस सवाल इतना है कि खाने की कीमत चुकाने का आपके पास पैसा है या नहीं? .... यानी दीर्घायु का रहस्य खुराक में नहीं, पैसे में है। और यह भी ना भूलें, दीर्घायु का कुछ संबंध चिकित्सा से भी है। पिछले वर्षों में हुई चिकित्सा विज्ञान की असामान्य प्रगति के बारे में सोचिए और घूम फिर कर इस सवाल से टकराइए : क्या आप इस इलाज की कीमत चुका सकेंगे?
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समीक्षकीय टिप्पणी

प्रस्तुत पुस्तक की टिप्पणियों से गुजरना एक अर्थवान अनुभव लगता है। इसलिए नहीं कि इस प्रक्रिया में हम सिर्फ वर्तमान का स्पर्श कर रहे होते हैं बल्कि इसलिए कि यह हमें बहुत कुछ सोचने पर विवश करती है। इन टिप्पणियों में ऐसी अंतर्दृष्टि है सूझ भरी समझ है, जिससे वर्तमान को हम और अधिक प्रामाणिकता से जान पाते हैं। इन लेखों में यूँ तो व्यंग्य और विनोद का रंग भी मिलता है, लेकिन वे जिन स्थितियों, धारणाओं या विचारों से जुड़े हैं, वे संभवत : आज भी हमारी चिंतन प्रक्रिया को सक्रिय बनाते हैं।

पुस्तक : आओ बैठ लें कुछ देर (व्यंग्य संग्रह)
लेखक : श्रीलाल शुक्ल
प्रकाशक: राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 166
मूल्य: 250 रु.

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