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आमीन : एक नन की आत्मकथा

पुस्तक समीक्षा

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हमें फॉलो करें आमीन : एक नन की आत्मकथा
संजीव ठाकुर
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धार्मिक पाखंडों के खिलाफ लिखने वाले बहुत से लोग साहित्य में मिल जाते हैं इनमें से धर्म को सिरे से खारिज करने वाले लोगों की तुलना में धर्म की कमियों, धर्म की बुराइयों, पाखंडों और आडंबरों पर प्रहार करने वाले लोगों की संख्या ही अधिक दिखाई देती है। यह मानने वाले लोगों की कमी नहीं है कि धर्म अपने मूल स्वरूप में कोई बुरी चीज नहीं है। विरोध वहाँ शुरू हो जाता है जहाँ धर्म की गलत व्याख्याओं के बल पर कोई किसी का शोषण करने लग जाता है, कोई किसी का दोहन करने लग जाता है।

कैथोलिक धर्म में पूर्ण आस्था रखने वाली नन सिस्टर जेस्मी भी उन्हीं लोगों में से है। जीसस के प्रति पूर्णतः समर्पित, सत्रह साल की उम्र में कॉन्वेंट में दाखिल हो जाने वाली और लंबे समय तक नन बनी रहने वाली सिस्टर जेस्मी ने जब खुली आँखों से अपने धर्म की बुराइयों को देखा तब उन्होंने कॉन्वेंट की चहारदीवारी तोड़कर बाहर निकलने का दुस्साहसिक फैसला भी ले लिया।

उनका यह फैसला कहीं से भी क्षणिक आवेश का नतीजा नहीं था। लंबे समय तक वह इसमें बनी रहीं और उन गजालतों को झेलती रहीं जो धर्म के रास्ते स्वेच्छा से जाने वाली स्त्रियाँ लगातार झेलती रहती थीं। कॉन्ग्रीनेशन ऑफ मदर ऑफ कार्मेल (सीएमसी) से निकलकर सिस्टर जेस्मी चुप नहीं रहीं। वह मीडिया के सामने आईं और चर्च की खामियों पर खुलकर बोलीं।

कुछ ही समय बाद 'आमीन' नाम की किताब के जरिए उन्होंने उन भयावह अनुभवों को लोगों तक पहुँचाया। अंग्रेजी और मलयालम के बाद अब यह किताब हिंदी में प्रकाशित हुई है। जाहिर है, सिस्टर जेस्मी की बात अब और अधिक लोगों तक पहुँच पाएगी।

'आमीन' सिस्टर जेस्मी की आत्मकथा है। अपने जीवन के जिन अनुभवों की कथा उन्होंने इसमें लिखी हैं, वे भयावह हैं। इतने भयावह कि पढ़कर धर्म से चिढ़ हो जाए। हालाँकि सिस्टर जेस्मी यह नहीं चाहती हैं। वह तो धर्म से उसकी बुराइयों को निकालना चाहती हैं। यहीं एक आस्तिक और नास्तिक लेखक का फर्क समझ में आने लगता है। सिस्टर जेस्मी नास्तिक भाव से इस किताब को लिखतीं तो इसका स्वरूप कुछ दूसरा ही होता।

बहरहाल! सिस्टर जेस्मी ने चर्च की खामियों को उजागर करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। न ही वह चर्च के अंदर व्याप्त वर्ग-भेद पर चुप रही हैं, न ही स्त्री-पुरुष (पादरियों और ननों) की सुविधाओं में अंतर पर। प्रशासनिक दाँव-पेंच चलाते फादर, सिस्टर भी उनकी कलम का निशाना बने हैं। सबसे दुस्साहसिक काम उन्होंने यह किया है कि ईश्वर के मार्ग पर चलने वाली पुण्यात्माओं की काम-कुंठा की जमकर खबर ली है। धवल वस्त्रों से सुसज्जित पवित्र माने जाने वाले पादरियों को यहाँ लंपटता के उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है तो परिवार की बड़ी बहनें (सीनियर सिस्टर्स) समलैंगिक आचरण में लिप्त दिखाई देती हैं। हॉस्टल में साथ रहने वाली कई स्त्रियाँ भी इस आचरण में शामिल दिखाई देती हैं।

कॉन्वेंट में रहते हुए ही सिस्टर जेस्मी ने अंग्रेजी साहित्य में पीएचडी की और कॉलेज में अध्यापन कार्य किया। आगे चलकर प्रिंसिपल भी बनीं। खुले दिमाग वाली सिस्टर जेस्मी अपनी छात्राओं को कलात्मक फिल्में दिखलाया करती थीं और उन्हें सामाजिक-चेतना से जोड़ने की कोशिश करती थीं। कॉलेज के कैपीटेशन फीस, एडमीशन के कदाचार और छात्राओं के दंड आदि के वह खिलाफ थीं-लिहाजा प्रशासन के लिए असुविधाजनक थीं। उनसे ऊपर बैठे धर्मध्वजाधारियों ने उन्हें विक्षिप्त करार देकर उन्हें पद से हटाने का षड्यंत्र किया।

इससे आहत होकर उन्होंने न केवल कॉलेज बल्कि सीएमसी छोड़ने का फैसला ले लिया। धर्म कोई भी हो, सबमें अच्छाइयों के साथ-साथ बुराइयाँ भी गतिमान रहती हैं। लोग उन बुराइयों को देखना ही नहीं चाहते या जानबूझकर आँखें बंद किए रहते हैं। यह किताब धर्म में बैठी बुराइयों को देखने की आँखें देती है। पुस्तक का अनुवाद पक्ष भी अच्छा है। बहुत जगह धार्मिक शब्दावली को अंग्रेजी में ही छोड़ देने की अनुवादकीय मजबूरी भी समझ में आ ही जाती है।

पुस्तक : आमीन(एक नन की आत्मकथा)
लेखिका : सिस्टर जेस्मी
अनुवाद : शुचिता मित्तल
प्रकाशन : पेंगुइन बुक्स प्रकाशन
मूल्य : 150 रुपए

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