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कतरा-कतरा रोशनी

आवाज़ बनती कविताएँ

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कहने को भावनाएँ अभिव्यक्त करने के यूँ तो कई माध्यम हैं लेकिन कविताएँ भावनाओं को ज्यादा मर्मस्पर्शी तरीके से और संक्षिप्त रूप से कह जाती हैं। फिर अक्सर कविताएँ दिल की बात को जबान देने का काम करती हैं। जो भी आप सोचते रहते हैं और जो भी बात आपके मन को छू लेती है उसे आपका हृदय लयबद्ध कर कविताओं के रूप में उड़ेल देता है। और इस तरह बन जाती है एक छंदबद्ध, तुकांत या अतुकांत रचना। कुछ ऐसा ही प्रयास झलकता है रोशनी वर्मा के काव्य संग्रह "कतरा-कतरा रोशनी" में।

इस संग्रह में आत्मीय रिश्तों, जीवन यात्रा के प्रसंगों तथा सामाजिक अव्यवस्थाओं से लेकर सामान्य घर-गृहस्थी, पर्यावरण, आध्यात्म आदि पर तुकांत तथा अतुकांत कविताएँ रची गई हैं। कुछ रचनाओं को गज़ल का रूप देने की भी कोशिश की गई है।

पुस्तक में कुछ रचनाएँ बेहद संक्षिप्त चार लाइनों में भी लिखी गई हैं। एक नए रचनाकार की दृष्टि से इस प्रथम प्रयास में कुछ त्रुटियाँ भी हैं, जिनमें से खासतौर पर वर्तनीगत अशुद्धियाँ पढ़ने में व्यावधान पैदा करती हैं। साथ ही कहीं-कहीं कच्चापन साफ दिखाई दे जाता है। लेकिन ऐसे ही प्रयास मिलकर रचना क्षेत्र में आगे बढ़ते जाने की प्रेरणा बनते हैं।

असल में भाषागत तथा वर्तनीगत अशुद्धियाँ किसी भी रचना को समझने और उसे दिल तक पहुँचाने की राह में सबसे बड़ी बाधा साबित होती हैं। यदि इन पर काम कर लिया जाए तो आसानी से पाठकों के मन में उतरा जा सकता है। रचनाकार ने यद्यपि पुस्तक की शुरूआत में ही कहा है कि यह पुस्तक समीक्षकों के लिए नहीं है किंतु नए उभरते रचनाकारों पर तो समीक्षकों की नज़र होती है और इसी से रचनाकारों को भी आगे और अच्छा रचते रहने की प्रेरणा भी मिलती है। संग्रह का प्रस्तुतिकरण काफी आकर्षक है।

कतरा-कतरा रोशनी: काव्य संग्रह
लेखक- रोशनी वर्मा
प्रकाशक-मलय प्रकाशन, 5, अहिल्यापुरी (इंद्रपुरी के पास), भँवरकुआँ, इंदौर

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