नवीन रांगियाललघुकथाएँ जीवन के महाकाव्य का एक छोटा-सा छन्द होती हैं। लेकिन इसमें कोई संदेह नहीं कि जीवन के कई रहस्य, कई विषयों और कई समस्याओं को समझाने की इस छोटे-से टुकड़े में एक अभूतपूर्व ताकत होती है। कई बार हम बड़ी-बड़ी किताबें पढ़कर भी कई विषयों को नहीं समझ पाते जो लघुकथाओं की चार लाइनें हमें समझा जाती है। इसीलिए यह इनकी विशेषता है कि लघु होने के बाद भी इनका महत्व बहुत बड़ा है। काली माटी में संपादक सुरेश शर्मा ने मालवा-अंचल के कुछ ऐसे ही कथाकारों की ऐसी चुनिंदा लघुकथाएँ शामिल की हैं, जो जीवन और समाज के कई रंगों से आपकी भेंट करवाती हैं और इनके मर्म को पलभर में आपको समझा देती हैं। वैसे तो मालवा की मिट्टी ही इतनी उपजाऊ है कि यहाँ पैदा हुए हर लेखक की कविताओं, कहानियों में इसकी एक सौंधी महक बरबस ही शामिल हो जाती है, लेकिन शरद जोशी, प्रभु जोशी, डॉ. राजेन्द्र कुमार शर्मा, डॉ श्यामसुंदर व्यास, और सूर्यकान्त नागर जैसे कथाकारों की लघुकथाएँ 'काली माटी' में पढ़कर ऐसा अहसास होता है कि लम्बे समय तक इस सौंधी मिट्टी की ताजगी, महक और नमी दिलों-दिमाग पर छाई रहेगी। |
कई बार हम बड़ी-बड़ी किताबें पढ़कर भी कई विषयों को नहीं समझ पाते जो लघुकथाओं की चार लाइनें हमें समझा जाती है। इसीलिए यह इनकी विशेषता है कि लघु होने के बाद भी इनका महत्व बहुत बड़ा है। |
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किताब में शामिल कई लघुकथाएँ जीवन और समाज के प्रति हमारे नजरिए को दर्शाती हैं, सबक सिखाती हैं और कई विषयों पर सोचने के लिए मजबूर करती हैं।
डॉ. श्यामसुंदर व्यास की 'गाल पर उभरे निशान' भटकी हुई युवा पीढ़ी के असभ्यता की राह पर चलने की लघुकथा है। उसके कोमल गाल पर भाई के तमाचे से उँगलियाँ उभर आई थीं। पिता के पास रोते हुए गई और भैया की शिकायत की।
पिता ने भैया को बुलाया और पूछा।
इसे क्यों मारा?
सहमे स्वर में वह बोला- यह टीवी बंद कर गई।
पिता ने पूछा- टीवी क्यों बंद किया ?
उत्तर मिला- भैया शेम-शेम वाले चित्र देख रहे थे।
पिता ने लड़के की ओर देखा। उसकी आँखें झुक गई थीं
पिता ने कुछ नहीं कहा। सिर्फ अपने गाल पर हाथ फेरा। शायद यह देखने के लिए कि सभ्यता के गाल पर भी कुछ उभरा या नही ?
' कालीमाटी' में सतीश राठी की लघुकथा 'जन्मदिन' शायद किताब की सबसे छोटी कथा है। यह कथा समाज में आर्थिक विषमता के गाल पर एक करारा तमाचा है। गरीबी की कहानी।
जिसमें चौकीदार की पत्नी मालिक के अल्सेशियन कुतिया के बच्चे के जन्मदिन से अपने बच्चे के जन्मदिन को याद रखती है।
किताब में नए लेखकों को प्रोत्साहन दिया गया है। युवा कलमकार सीमा पांडे 'सुशी' एवं प्रज्ञा पाठक की कथाएँ पठनीय बन पड़ी हैं। कुल मिलाकर काली माटी की सौंधी कथाएँ आकर्षित करती हैं।
पुस्तक - काली माटी
संपादक - सुरेश शर्मा
मूल्य- 150 रुपए
सन्दर्भ - मालवांचल के कथाकारों की लघुकथाएँ
प्रकाशक - मनु प्रकाशक, दिल्ली