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ठिठुरती धूप : प्रकाश की ओर

पुस्तक समीक्षा

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रजनीश बाजपेई
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डॉ. रामसेवक सोनी 'प्रकाश' के कविता संग्रह 'ठिठुरती धूप' में 51 कविताएँ हैं। काव्य हृदय की भाषा है। इसको तर्क में बाँधना कठिन काम है। इस भाषा को शब्दों में बाँधने में सफल होने वाला कवि कहलाता है। सोनीजी हृदयंगम भावों को शाब्दिक अभिव्यक्ति देने में सफल रहे हैं।

कवि इस काव्य संग्रह में भिन्न-भिन्न भावों को भरते हैं। कभी देशप्रेम 'माटी को करो प्रणाम', तो कभी प्रकृति के साथ एकाकार होने के 'दिन बसंत के आ गए।' सृजन भाव उमड़ता है तो वे गाते हैं 'नगर गाँव धरती का नवनिर्माण करो' तो कभी वितृष्णा के भाव में हिकारत निकलती है 'शपथ बेच देंगे, सिद्धांत बेच देंगे, जनता के ये लोग देश बेच देंगे।'

कवि ने अपनी कविता से भक्ति और प्रेम के भावों को भी जगाया है जिसे वे 'प्यार की सरिता बहाओ' पंक्तियों में व्यक्त करते हैं। उन्होंने इसमें आत्म-शक्ति का भी आह्वान किया है : 'तुम धरा के श्रेष्ठ जन्तु हो, उठ खड़े हो नींद तोड़ो।' कर्म की महत्ता भी बताई है : 'तुम बढ़ो बाल रवि हो, अकर्म का तिमिर हरने।' साथ ही भाग्यवादिता से ऊपर उठने की बात भी कही है : 'कार्य हमारा सच है तो हम अपना भाग्य बना ही लेंगे।'

'अजीब है जिंदगी, धूप-छाँव में पगी' पंक्तियों से कवि जीवन की समग्रता को बताते हैं कि जिंदगी में सभी कुछ मिला-जुला है। साम्प्रदायिकता आज के समय की प्रमुख समस्या बन चुकी है। साम्प्रदायिक सौहार्द की शिक्षा देते हुए वे नागरिकों से कहते हैं,'एक बनो तुम, एक रहो तुम'। साथ ही देशप्रेम का अलख जगाने की कोशिश भी वे करते हैं: 'इस माटी को करो प्रणाम।'

डॉ. सोनी मूलतः शिक्षक हैं और इन कविताओं में यह बात स्पष्ट भी होती है। वे इस संग्रह में मानव को अंधकार से प्रकाश की ओर चलने की शिक्षा देते हैं।

पुस्तक : 'ठिठुरती धूप'
लेखक : डॉ. रामसेवक सोनी 'प्रकाश'
मूल्यः रु. 150
प्रकाशक : लोकवाणी संस्थान, डी-585 ए, गली नं. 3 निकट वजीराबाद रोड, अशोकनगर शाहदरा, दिल्ली-110093

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