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तिनका-तिनका तिहाड़ : एक संवेदनशील पुस्तक

महिला कैदियों की कविताएं : वर्तिका नंदा-विमला मेहरा का संपादन

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जेल में सिमटी महिलाओं का पहला और एकदम अनूठा कविता संग्रह


कैद। चार दीवार के भीतर घुटती सांसें। अपनों के लिए छटपटाता मन का पंछी। जान-अनजाने, चाहे-अनचाहे किए गए अपराधों या महज आरोपों का दंड भोगती महिलाएं। संवेदनशीलता के धरातल पर हम में से कितनों को स्पर्श कर पाती है उनकी पीड़ा। कितना महसूस कर पाते हैं हम उनकी वेदना का दंश।

शायद बिलकुल नहीं। क्योंकि यह जेल की दुनिया है। हम जैसे संभ्रांतों से अलग नकारात्मक छवि वाले इंसानों की दुनिया।

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हम भूल जाते हैं कि यह सब भी कभी हमारी तरह ही खुले आकाश की स्वतंत्र मैनाएं थीं। इनके भी कोमल मन थे। आंखें इनकी भी भीगती थीं। मीठी मुस्कान इन चेहरों पर भी कभी सजती थी।

आज वक्त के हाथों बेबस व परिस्थितियों की विषमताओं से झुंझलाकर कुछ ऐसा कर बैठी हैं जिसे सभ्य और सुरक्षित समाज नहीं स्वीकारता। स्वीकार कर भी नहीं सकता। लेकिन यह बापू का देश है। जिन्होंने कभी हमको यह संदेश दिया था कि अपराध से घृणा करों अपराधी से नहीं। हम ना तब समझ सके थे यह सु-वचन ना आज महसूस कर पा रहे हैं। समाज की सुव्यवस्थित संरचना के लिए आवश्यक है कि देश का यह उपेक्षित और लांछित वर्ग स्वयं को हीन न समझे और अपराधों का दंड भोगते हुए भी आगे का जीवन सामान्य ढंग से जी सके। स्वयं की कोमल भावनाओं को पढ़ सकें।

दिल्ली के तिहाड़ जेल में कैद इसी तरह की महिला कैदियों के मनोभावों को अनुभूत करने का सुप्रयास किया है तिहाड़ जेल की महानिदेशक विमला मेहरा और संवेदनशील लेखिका वर्तिका नंदा ने। 'तिनका-तिनका तिहाड़' शीर्षक से विदुषी द्वय ने पुस्तक को आकार दिया है। पुस्तक में तिहाड़ में सजा काट रही महिला कैदियों की भावाभिव्यक्तियों को कुशलता से संपादित किया गया है।


फ्लैप पर लिखी यह इबारत ना ‍सिर्फ सोचने को विवश करती है अपितु पुस्तक के भीतर झांकने को बरबस ही मजबूर कर देती है-

''जंजीरों में कैद इन औरतों की यह किताब औरत के मन के दस्तावेज को पढ़ने में एक नई पहल है। दुनिया की हर औरत कभी न कभी एक ऐसे मुकाम से गुजरती है जहां उसे अपनी चुप्पी और जुबान के बीच में से किसी एक का चुनाव करना पड़ता है। जहां अदालतें महज सरकती हैं, सत्ताएं सोचा करती हैं, संस्थाएं दावे करती हैं और मन थरथराया करता है...''

विगत दिनों भारत सरकार के गृह मंत्री श्री सुशील कुमार शिंदे के हाथों इस कविता संग्रह का विमोचन संपन्न हुआ।

इस किताब का प्रकाशन अंग्रेजी और हिन्दी दोनों भाषाओं में हुआ है। अंग्रेजी अनुवाद मोंदिरा मोइत्रा ने किया है।

राजकमल प्रकाशन ने पुस्तक की मर्मस्पर्शी प्रस्तुति की है। संपादक द्वय किसी परिचय की मोहताज नहीं है। ‍

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तिहाड़ की महानिदेशक विमला मेहरा 1978 में आईपीएस में राष्ट्रीय पुलिस अकादमी में शामिल हुईं।

शुरुआत अंडमान व निकोबार दीप समूह से करते हुए उन्होंने दिल्ली पुलिस लाइसेंसिंग और महिला अपराध शाखा में प्रमुख होने के साथ-साथ दिल्ली व अरुणाचल प्रदेश में कई अहम जिम्मेदारियां निभाईं।

वे केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (आरएएफ) की उपमहानिरीक्षक और दिल्ली पुलिस की स्पेशल शाखा की संयुक्त आयुक्त भी रहीं।

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वर्तिका नंदा। एक सौम्य और सशक्त पत्रकार, पैनी पेठ की चिंतक, विलक्षण कवयित्री और मीडिया शिक्षक हैं। अपराध पत्रकारिता में एक सुस्थापित नाम है। दिल्ली विश्वविद्यालय के लेडी श्री राम कॉलेज के पत्रकारिता विभाग में प्रोफेसर हैं।

इससे पहले 2003 में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मास कम्यूनिकेशन, नई दिल्ली में तीन साल तक एसोसिएट प्रोफेसर रहीं। वर्तिका ने अपनी पीएचडी 'बलात्कार और प्रिंट मीडिया की रिपोर्टिंग को लेकर प्रस्तुत की है।

प्रधानमंत्री के सलाहकार सैम पित्रोदा की प्रसार भारती के नवीनीकरण पर बनाई हाई-प्रोफाइल कमेटी की वे सदस्य हैं। भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय और दिल्ली पुलिस की महिला अपराध शाखा में मीडिया सलाहकार भी हैं। उनकी प्रकाशित किताब मैं थी, हूं..रहूंगी.. महिलाओं पर होने वाले अपराधों पर देश का प्रथम कविता संग्रह है।

पुस्तक 'तिनका-तिनका तिहाड़' में कविताओं के साथ महिला कारागार नंबर 6 की दुर्लभ तस्वीरें हैं जिन्हें इन कैदियों ने खुद लिया है। मकसद है- पाठक को उस जगह से परिचित करवाना जिसका नाम है-तिहाड़।

पुस्तक का अन्य विशिष्ट रोचक पक्ष यह है कि किताब के साथ ही 'तिनका-तिनका तिहाड़' नामक गाना भी रिलीज किया गया जिसे संपादक विमला मेहरा और वर्तिका नंदा ने लिखा है। इस गाने को तिहाड़ के कैदियों ने गाया है। यह गाना अब तिहाड़ का परिचय गान होगा। संपादक द्वय बधाई की हकदार हैं कि तिहाड़ के भीतर सिसकती आहों को न सिर्फ उन्होंने महसूस किया बल्कि उनकी काव्याभिव्यक्तियों को बाहर की चमकती धूप दिखाने का साहस भी दिखाया है।

पुस्तक : तिनका-तिनका तिहाड़
संपादक : विमला मेहरा-वर्तिका नंदा
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
कीमत : 500 रुपए

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