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त्रिकोण के तीनों कोण

पन्नों पर उतरीं सच की तहरीरें

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फसानों के भीतर गौर से झाँकिए ज़रा
शायद सियाही की सुर्खी नज़र आ जाए।

एक पत्रकार की पूरी कामकाजी जिंदगी को अगर कोई पन्नों पर समेटने बैठे तो महाग्रंथ से भी बड़ी कोई रचना की जा सकती है। हर लम्हा, हर खबर पत्रकार को अपनी जिंदगी की फिल्म से जुड़ी-जुड़ी-सी महसूस होने लगती है। यह सही है कि एक समय बाद वह चीजों का आदी हो जाता है, लेकिन दिल के अंदर बैठे इंसान को मारना तो आखिर मुश्किल ही है। शायद यही कारण है कि वरिष्ठ पत्रकार तथा साहित्यकार हरीश पाठक की कलम से निकले अनुभव आपको झकझोर देते हैं।

'त्रिकोण के तीनों कोण', यह उस पुस्तक का नाम है, जो हरीशजी की पत्रकारिता के कुछ छुए कुछ अनछुए पहलुओं से पाठकों को रूबरू करवाती है। यह संकलन मूलतः लेखक के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में छपे लेखों तथा संस्मरणों की श्रृंखला है, जिनमें राजनीतिक, सामाजिक तथा नैतिक से लेकर पत्रकारिता तक के मूल्यों पर प्रश्न उठाए गए हैं।

यहाँ राजनीतिज्ञों के राजशाही रवैये पर कटाक्ष है तो समाज के उस वर्ग के साथ हो रही ज्यादती पर भी सवाल उठाए गए हैं, जिनके साथ हुए अत्याचार एक सिंगल कॉलम खबर से ज्यादा कुछ नहीं, क्योंकि उनके पास रसूख नहीं है, न ही धन है और पूरी व्यवस्था उन्हें दबाने पर ही तुली है। महिलाओं के साथ होने वाली ज्यादतियों और उसे किसी तमाशे की तरह देखती भीड़ के अस्तित्व पर भी प्रश्न हैं, जो सोचने पर मजबूर करते हैं कि हम किस ओर जा रहे हैं? इसके साथ ही संकलन में पत्रकारिता के गिरते स्तर एवं 'तथाकथित' स्वयंभू पत्रकारों पर भी सटीक टिप्पणियाँ की गई हैं। लेखक ने उन वाहनों पर भी कड़ा कटाक्ष किया है जो 'प्रेस' लिखवाकर घूमते हैं। इस संदर्भ में लिखे एक लेख की पंक्तियाँ देखिए...

'यह हिन्दी पत्रकारिता का दुर्भाग्य है कि उसका दुरूपयोग उन चालबाजों द्वारा हो रहा है, जिन्हें शुद्ध हिन्दी लिखना भी नहीं आती। मुंबई के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने एक औपचारिक चर्चा में मुझसे कहा था कि- 'हम वाहनों पर लिखे 'प्रेस' से बहुत परेशान हैं। जब तलाशी की बात करते हैं तो ये 'कथित' पत्रकार 'देख लेने' या 'यह बहुत महँगा पड़ेगा' जैसे फिल्मी संवाद बोलते हैं। प्रेस कार्ड दिखाते नहीं और कभी-कभी तो इनके पास पूरे कागज भी नहीं होते।'

पुस्तक के अंतिम भाग में लेखक के धर्मयुग में प्रकाशित स्तंभ से भी कुछ रचनाएँ ली गई हैं, जो विभिन्न 'बड़े' चेहरों की चमक के पीछे छुपे सच से रूबरू कराती हैं।

पुस्तक : त्रिकोण के तीनों कोण।
लेखकः हरीश पाठक।
प्रकाशक : प्रभात प्रकाशन, 4/19, आसफ अली रोड, नई दिल्ली-110002
मूल्य : 250 रुपए।

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