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दिल्ली के बहाने युवा पीढ़ी पर व्यंग

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- राजश्री कासलीवाल

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राजकुमार गौतम द्वारा लिखित व्यंग्य संग्रह 'अँगरेजी की रँगरेजी' में कनाट प्लेस (दिल) और दिल्ली का बखूबी बयान किया है। इस संग्रह में उन्होंने आज के युग के लड़के-लड़कियों की महत्त्वकांक्षा और बाजारवाद पर व्यंग्य कसा है।

जरा नजर डालिए मंदिर में गई लड़की अपने भगवान से वरदान माँगती है ‍तब बेहद फिल्मी अंदाज में लड़का , लड़की से पूछता है - 'सच-सच बताना, तुमने ऊपरवाले से क्या माँगा?'

'सच बताऊँ? सच-सच?'
कहकर ज्योति ने आँखें नचाईं। 'मैंने प्रार्थना की है कि हे ईश्वर! मैंने आज जो-जो भी सामान चाहा है, वह सारा मुझे दे देना!''
ज्योति ने एक बार फिर से आँखें मूँदकर हाथ जोड़े।
'और... मैंने भी पता है, यही माँगा है कि जो तुम्हें चाहिए, वह सब-कुछ हमें मिल जाए।' किसी पके हुए गृहस्थ जोड़े की तरह वे सामान की चिंता में घिरे थे।

इस पूरे व्यंग्य में यह बताने की भरपूर कोशिश की है कि किस तरह जवाँ लड़के-लड़कियों के सपने किस तरह बाजारवाद के मँकड़जाल में फँस गए हैं। शादी से पहले एक खूबसूरत मुलाकात सिर्फ सामान खरीदने पर केंद्रित हैं ना कि प्यार-मोहब्बत के फसाने पर।

अँगरेजी की रँगरेजी में दिल्ली के दिल उर्फ कनॉट प्लेस में ही इस कथा को घुमाया गया है। इसमें इस कथा के दो धड़कते, जवान और मंगेतर दिल आज मिलने वाले हैं। यह उन्हीं दोनों की एक कथा है। लड़का यूँ तो कुछ संजीदा किस्म का था मगर कभी-कभार वह भयंकर रोमांटिक भी हो उठता था। उसके व्यक्तित्व में ऐसा दोहरापन उसकी कॉलेज की शिक्षा के दिनों में ही पैदा हुआ था। जिसमें एक दिलफेंक लड़के की बारिकियों का बखूबी वर्णन किया गया है। और चौबीस साल की पढ़ी-लिखी लड़की जो घर में कैद होकर रह जाती है जिसका बाहरी दुनिया से कोई ज्यादा मेलजोल नहीं रहता। यहाँ तक कि सारे ब्यूटि टिप्स भी उसने घर पर बैठे टीव‍ी के सहारे ही सीख लिए है।

इसमें वर के पिता की ओर से दिया गया यह संदेश कि बहू की जो साड़ियाँ खरीदी जानी हैं, उन्हें क्यों न लड़का-लड़की ही मिलकर खरीद 'रीगल के गेट पर अपराह्न 4 बजे तक आप लड़की को भेज दें, मैं लड़के को पैसे देकर भेज दूँगा। बच्चे साथ-साथ घूम भी लेंगे और खरीदारी भी कर लेंगे।' वर के पिता ने कहा था और कन्या के पिता सहर्ष तैयार हो गए थे। लेकिन युवा पीढ़ी के लोग बाजारवाद के नशे में अपने बड़ों की सहज योजना पर पानी फेर दिया और भविष्य के सुंदर सपने संजोने की जगह वर्तमान की खरीदारी में ही उलझकर रह गए।

राजकुमार गौतम एक सुप्रसिद्ध कथाकार है। सा‍थ ही उनके कुछ कहानी संग्रह जैसे- 'काले दिन', 'उत्तरार्द्ध की मौत', 'दूसरी आत्महत्या', 'आक्रमण तथा अन्य कहानियाँ' आदि। साथ ही उपन्यास और व्यंग्य संग्रह भी हैं।

पुस्तक : ' अँगरेजी की रँगरेजी'
लेखक : राजकुमार गौतम
पृष्ठ संख्या : 88
मूल्य : 80 रु.

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