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पुश्किन के देश में : रूस की व्यथा-कथा

विघटन के बाद का रूस

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तेजभान राम
ND
कथाकार महेश दर्पण ने 'पुश्किन के देश में' रूस की साहित्यिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक परिदृश्य को समग्रता में प्रस्तुत किया है। यह 'पुश्किन सम्मान' के अवसर पर रूस का उनका यात्रा वृत्तांत है। सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस में आए बदलाव का लेखक ने सूक्ष्मता से अध्ययन किया है। लगातार बदलती जा रही वहाँ की परिस्थितियों और बद से बदतर होने जा रहे हालात ने लोगों के चेहरे की वह खुशी छीन ली है जो विघटन से पहले थी।

महेश दर्पण ने रूस की अत्यंत समृद्ध साहित्यिक और सांस्कृतिक विरासत का गहराई से विवेचन किया है। रूस के महान लेखकों मार्क्स, लेनिन, चेखव, पूश्किन, टॉल्सटॉय, गोगोल, गोर्की सहित अन्य लेखकों की याद में बनाए गए संग्रहालयों का लेखक ने सजीव चित्रण किया है, जिनकी स्मृतियों को रूस ने करीने से संजोकर रखा है। हर रचनाकार के बारे में पढ़ते हुए ऐसा लगता है, जैसे लेखक ने उसके संग्रहालय को खुद हमारे सामने लाकर रख दिया है। पूरे संस्करण में सहज और सरल भाषा की प्रवाहमयता बरकरार है। और हम कहीं भी बोझिल महसूस नहीं करते।

विघटन के बाद तेजी से आए बदलाव ने वहाँ के लोगों की जीवनशैली ही बदल दी है। मॉक्को में साथी कहते हैं यहाँ बच्चों का कोई भविष्य नहीं। उन्हें भारत, चीन या जापान जाना होगा। ब्यूरोक्रेसी में बढ़ते भ्रष्टाचार, पुरुषों का निकम्मापन और स्त्रियों की दयनीय हालत वहाँ की आम बात हो चुकी है। वहाँ के सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक असंतुलन का एक बड़ा कारण चेचन्या के साथ लगातार संघर्ष भी रहा है।

अंत में लौटते वक्त लेखक ने जो देखा और अनुभव किया वह रोंगटे खड़े कर देने वाला है, 'खेतों में लड़कियाँ छँटने वाले माल की तरह बैठी रहती हैं। जैसे ही कोई क्लाइंट आया, इनकी एजेंट इन्हें सूचना दे देती है। ये फौरन उठ खड़ी होती हैं। क्लाइंट मंडी में माल की तर्ज पर लड़की छाँटता है और वह उसके साथ चल देती है। आप चाहे जहाँ ले जाएँ। मार भी दें साथ ले जाकर तो कोई खबर नहीं बनती। ये लड़कियाँ जाल से बाहर नहीं निकल सकतीं क्योंकि रैकेट व्यापक स्तर पर चल रहा है। इन खेतों में जब पुलिस जाती है और तो लड़कियों को भागना पड़ता है।' देह व्यापार रूस में खुलेआम होता है, जो उसकी आर्थिक और सामाजिक विपन्नता का द्योतक है।

अपने यात्रा वृतांत में महेश दर्पण ने रूस के सफेद स्याह दोनों पक्षों को ईमानदारी के साथ प्रस्तुत किया है। एक तरफ वहाँ की सांस्कृतिक विरासत, वहाँ के लोगों के खिलंदड़ेपन आत्मीय और भारत प्रेमी होने की खुलकर सराहना की है, तो दूसरी तरफ वहाँ के निरंकुश प्रशासन और क्षीण होती जा रही सामाजिक सांस्कृतिक व्यवस्था की जमकर आलोचना भी की है।

यह किताब रूस के उन महान लेखकों और उनके जीवन संघर्षों से हमारा परिचय कराती है। जिन्होंने दुनिया को अपना सर्वश्रेष्ठ दिया। उनके जीवन से जुड़ी अनेक चीजों और घटनाओं को लेखक ने रोचकता के साथ प्रस्तुत किया है। रूस के चित्रकारों, कलाकारों तथा आम जनजीवन के संघर्षों उनकी निष्ठा और प्रेम की अनुभूतियों को भी लेखक ने गहरे स्पर्श किया है।

पुस्तक : पुश्किन के देश में
लेखक: महेश दर्पण
प्रकाशक : कल्याणी शिक्षा परिषद
मूल्य : 300 रुपए

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