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डॉ. कुसुम पटोरिया
साहित्यकार संस्कृति के संवाहक होते हैं। 'संस्कृति के दूत' डॉ. परशुराम विद्रोही के रेडियो रूपकों का संग्रह है। यह भूमंडलीकरण के दौर में उपस्थित सांस्कृतिक संकट को दूर करने का प्रयत्न है। इन रूपकों द्वारा संस्कृत व हिन्दी के मूर्धन्य साहित्यकारों का परिचय कराया गया है। भास संस्कृत के उपलब्ध नाटककारों में प्रथम तथा 'भासो हासः' के रूप में प्रसिद्ध हैं। विरहीजी ने भास के नाटकों की खोज से लेकर उनकी नाटकीय विशेषताओं तक की चर्चा 'भास का हास्य' में की है।अश्वघोष के रूपक में उनकी उपलब्ध-अनुपलब्ध, निर्णीत-अनिर्णीत सभी कृतियों की चर्चा की है। इन दोनों के समक्ष नाट्यशास्त्र का कोई न कोई रूप अवश्य था। नाट्यशास्त्र की परंपरा भरत से शताब्दियों पूर्व प्रारंभ हो गई थी, जिसे अंतिम रूप भरत मुनि ने दिया। कालिदास का जीवनवृत्त अविश्वसनीय किंवदंतियों पर आधारित है। उनकी कृतियों की चर्चा प्रमुख रूप से की जाती तो अधिक उचित होता।बाणभट्ट की जीवनी और आधारित रूपक में हर्षचरित व कादम्बरी के साथ चंडीशतक जैसी संदिग्ध कृति की भी चर्चा है। श्रृंगार के शीर्ष कवि अमरुक और एकमात्र 'करुण' को रस मानने वाले भवभूति के वर्णन के साथ संस्कृत कवियों से संबद्ध रूपकों का समापन है। हिन्दी के कवियों में गुरु गोरखनाथ, चंदरबरदाई, नरपति नाल्ह, अमीर खुसरो, कबीरदास, सूरदास और तुलसीदास की जीवनियों पर रूपक हैं। ये सभी हिन्दी साहित्य के जाज्वल्यमान नक्षत्र हैं। अंत में एक और रूपक है 'परंपरा अर्थात् हेरेटेज।' यह किसी कवि का परिचय न होकर इस विषय पर आधारित है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी की चमत्कारपूर्ण प्रगति और आर्थिक विकास में भावनाएँ कुंठित हो रही हैं। जीवन की सबसे बड़ी समस्या परंपरा या विरासत को बचाने की है। इसमें दो परिवारों की कथा है। डॉ. लाल के, प्रभात व पंकज दो पुत्र हैं। प्रभात अमेरिका में इंजीनियर है।पंकज भाई के साथ वहाँ पढ़ने जाने वाला है। प्रभात अपने माता-पिता की इच्छानुसार जीवविज्ञान में शोध पूर्ण करने वाली छात्रा से विवाह हेतु तैयार हो जाता है। दूसरे हैं- रईस शेख रसीद, जो कि मस्कट व दुबई से धन कमाकर लौटे हैं। उनकी पुत्री किसी विदेश में रहने वाले नौजवान से विवाह को नम्रतापूर्वक नकार देती है। |
यह किसी कवि का परिचय न होकर इस विषय पर आधारित है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी की चमत्कारपूर्ण प्रगति और आर्थिक विकास में भावनाएँ कुंठित हो रही हैं। जीवन की सबसे बड़ी समस्या परंपरा या विरासत को बचाने की है। इसमें दो परिवारों की कथा है। |
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लेखक की दृष्टि में ये दोनों आदर्श हैं, जो अपनी सांस्कृतिक विरासत से जुड़े हुए हैं। पुस्तक में वर्तनी की भूलें पठनीयता में व्यवधान उत्पन्न करती हैं। ये ध्वनिरूपक साहित्यकारों से पाठक को परिचित कराते हैं। यही इनका महत्व है और सांस्कृतिक कार्य भी।
* पुस्तक : संस्कृति के दूत
* लेखक : डॉ. परशुराम विरही
* प्रकाशक : यूनिवर्सल कम्प्यूटर्स, ललता चौक, बढ़ईपारा, रायपुर
* मूल्य : रुपए 100