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भारत की भाषा समस्या

राजकमल प्रकाशन

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पुस्तक के बारे मे
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भारत की भाषा समस्या एक ज्वलंत राष्ट्रीय समस्या है 'सुप्रसिद्ध प्रगतिशील' आलोचक और विचारक डॉ. रामविलास शर्मा के अनुसार यह 'विशुद्ध भाषा-विज्ञान की समस्या' नहीं बल्कि 'बहुजातीय राष्ट्र के गठन और विकास की ऐतिहासिक-राजनीतिक समस्या' है। स्वाधीनता के छह दशक बाद भी अगर यह समस्या ज्यों-की-त्यों बनी है तो संभवत: इसलिए कि उनकी तरह औरों ने भी इस समस्या को इसके वास्तविक और व्यापक परिप्रेक्ष्य में रखकर देखने का प्रयास नहीं किया।

इस ग्रंथ में डॉ. रामविलास शर्मा भाषा-समस्या के विभिन्न पक्षों की विस्तार से चर्चा की है तथा इस बात पर बल दिया है कि अँग्रेजी के प्रभुत्व को समाप्त किया जाना चाहिए।

पुस्तक के चुनिंदा अंश
अभी तक हम हिन्दी को जनता की भाषा कहते आए थे लेकिन जनता का नब्बे फीसदी भाग हमारी इस हिन्दी से अपरिचित था। अब समय आ गया है कि नब्बे फीसदी जनता शिक्षित होकर अपनी भाषा को पहचाने उसका रूप सँवारने में हाथ बटाए। शिक्षा का प्रसार एक ऐसी बाढ़ होगी जो हमारी भाषा और साहित्य के उद्यान पर एक बार छा जाएगी। ('हिन्दी गद्य शैली पर कुछ विचार' से)

अनिवार्य शिक्षा का चलन करने पर दमन जनता पर नहीं होता बल्कि उन कामचोर वर्गों पर होता है जो जनता को निरक्षर रखते हैं। राष्ट्रीयकरण में जो व्यवहार कामचोर वर्गों के साथ होता है, उसकी तुलना तो जनता को अनिवार्य शिक्षा देने से करके यशपाल जी ने जनता और शोषक वर्गों का भेद भुला दिया है। यह समझना भूल होगी कि सभी हिन्दी लेखक राहुल जी या यशपाल जी की तरह सोचते हैं।
('हिन्दी-उर्दू समस्या' से)

राष्ट्रभाषा ऐसी होनी चाहिए जिसे देश की बहुसंख्यक जनता जानती हो और जो लोग उसे न जानते हों, वे उसे आसानी से सीख सकें। यह दृष्टिकोण राष्ट्रीय ही नहीं जनतांत्रिक भी है क्योंकि बहुसंख्‍यक जनता द्वारा बोली समझी जाने वाली भाषा के पक्ष में दिए जाने वाले तर्क के पीछे भावना यह है कि राष्ट्रीयता मुट्‍ठीभर अँग्रेजी पढ़े-लिखे लोगों की बपौती नहीं है, उसका संबंध देश की बहुसंख्‍यक जनता से है।
('राष्ट्रीय एकता और अँग्रेजी' से)

समीक्षकीय टिप्पण
भाषा समस्या पर भारतीय जनता का सामाजिक और सांस्कृतिक भविष्य निर्भर करता है इसलिए यह आवश्यक है कि हम अपने बहुजातीय राष्ट्र की विशेषताएँ पहचानें, इस राष्ट्र में हिन्दी भाषी जाति की भूमिका पहचानें। इस पुस्तक में दिए गए अकाट्‍य तर्क समस्या को समझने की सही दृष्टि ही नहीं देते समस्या-समाधान की दिशा में मन को आंदोलित भी करते हैं।

भारत की भाषा समस्या
लेखक: डॉ. रामविलास शर्मा
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन,
पृष्ठ : 360
मूल्य : 450 रुपए

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