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महिला आंदोलन का इतिहास

बयान करता दस्तावेज

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- डॉ. कला जोशी

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'आधी आबादी का संघर्ष', राजस्थान में महिला आंदोलन का इतिहास बयान करता दस्तावेज है। 'महिला आंदोलन' नाम से एक तस्वीर जेहन में उभरती है, संघर्ष करती, विरोध करती, नारे लगाती, धरने देती, जेल जाती औरत की। पर रोज-रोज की जिंदगी में यह होता नहीं है ओर लगता है, यहाँ कोई आंदोलन है ही नहीं।

पुस्तक में राजस्थान में महिलाओं की स्थिति को लेकर किए गए संघर्षों का सिलसिलेवार विवरण है। ये विवरण महज सूचनाएँ बनकर नहीं रह गए हैं, वरन इनमें विचारों, संकल्पनाओं, आशंकाओं और तर्कों को सदंर्भों से जोड़कर संघर्ष का हिस्सा बनाया गया है। महिला शक्ति की सार्वजनिक अभिव्यक्ति को समाज के मध्य तलाशा गया है।

लेखकद्वय, ममता जैतली एवं श्रीप्रकाश शर्मा ने सहस्रों महिलाओं से संपर्क एवं साक्षात्कार के माध्यम से इस ऐतिहासिक दस्तावेज को प्रस्तुत किया है। इस दस्तावेज को चार भागों में बाँटा गया है। भाग एक में आजादी से पहले महिलाओं की स्थिति, दूसरे भाग में आजादी के आंदोलन में महिलाओं के संघर्ष, भाग तीन में आजादी के पश्चात महिलाओं की स्थिति और भाग चार में महिला आंदोलन के मुख्य पड़ावों का उल्लेख किया गया है। राजस्थान की महिला अन्य राज्यों की अपेक्षा अधिक शोषित एवं दबी-दबी रही है।

सामंतशाही एवं जागीरदारी के वर्चस्व वाला राजस्थान, आम आदमी के लिए खुशगवार नहीं रहा। फिर औरतों का दर्जा तो और भी नीचे था। विकास के तमाम सूचकांक इस राज्य के पिछड़ेपन की तरफ इशारा करते हैं।
  भाग एक में आजादी से पहले महिलाओं की स्थिति, दूसरे भाग में आजादी के आंदोलन में महिलाओं के संघर्ष, भाग तीन में आजादी के पश्चात महिलाओं की स्थिति और भाग चार में महिला आंदोलन के मुख्य पड़ावों का उल्लेख किया गया है।      


यह भी सच है कि राजस्थान की इस बंजर धरती का सीना चीरकर ही यहाँ न केवल एक सशक्त महिला आंदोलन जन्मा था, वरन आजादी के आंदोलन में भी राजस्थान की औरतों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

भटेरी सामूहिक बलात्कार कांड में गाँव के साथ-साथ नगरों की महिलाएँभी एकजुट हो गई थीं। यह आंदोलन राजस्थान में महिला आंदोलनों को ऊर्जा देता रहा, साथ ही नई भावभूमि तैयार करता रहा। राजस्थान की आधी आबादी का यह संघर्ष, एक ऐसा अफसाना है, जो उन्हें ताजी हवा और रोशनी देने के साथ-साथ निर्णय लेने की क्षमता भी देगा।

धर्म एवं संप्रदाय की आड़ में स्त्रियों पर जो पाबंदी लगाई जा रही है, उससे भी बड़ी बात यह कि उनके जिन्दा रहने के अधिकार पर ही प्रश्नचिन्ह (भ्रूण हत्या) लगाए जा रहे हैं। ऐसे में महिला संगठनों एवं आंदोलनों की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। लेखक द्वय का निष्कर्ष है कि तमाम जद्दोजहद के बावजूद हिंसा-मुक्त एवं सम्मान, समता और सहभागिता पर आधारित समाज आज भी एक सपना है, ऐसे में संघर्ष का संकल्प करना ही होगा। इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है।

* पुस्तक : आधी आबादी का संघर्ष
* लेखक : ममता जैतली एवं श्रीप्रकाश शर्मा
* प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन, नेताजी सुभाष मार्ग, दरियागंज, नई दिल्ली-2
* मूल्य : रु. 350/-

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