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रूपहले परदे का सफरनामा

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सुरेश ताम्रकर
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सिनेमा का हमारे समाज पर अद्भुत प्रभाव है। ऐसे शख्स बिरले ही होंगे, जिनका जीवन इस माध्यम से अछूता हो। राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर ने हाल ही एक पुस्तक 'सिने पत्रकारिता' पेश की है।

लेखक श्याम माथुर ने, जो स्वयं एक अनुभवी पत्रकार और सिने समीक्षक हैं,ढाई सौ पृष्ठों की इस गागर में सिनेमा के महासागर को समेटने का कार्य बड़े कौशल से किया है। पुस्तक सिने पत्रकारिता के विद्यार्थियों के साथ-साथ सिनेमा में रुचि रखने वाले, इतर पाठकों के लिए भी पठनीय है।

सिनेमा के जन्म से वर्तमान अवस्था तक के संक्षिप्त सफरनामे के साथ फिल्म पत्रकारिता के अर्थ, महत्व, विविध रूप एवं भाषा के अलावा तब और अब की फिल्म पत्रकारिता पर भी लेखक ने कलम चलाई है। सिनेमा पर अँगरेजी में तो अनेक पुस्तकें हैं, मगर हिन्दी में गिनी-चुनी ही हैं।

  लेखक श्याम माथुर ने, जो स्वयं एक अनुभवी पत्रकार और सिने समीक्षक हैं,ढाई सौ पृष्ठों की इस गागर में सिनेमा के महासागर को समेटने का कार्य बड़े कौशल से किया है...      
सिने पत्रकारिता पर तो अब तक माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता संस्थान द्वारा प्रकाशित विनोद तिवारी की 'फिल्म पत्रकारिता' नामक एक पुस्तक के सिवा हिन्दी में और कोई ग्रंथ नहीं था। निश्चित ही यह पुस्तक इस कमी को दूर करेगी।

पुस्तक की भाषा सरल है। प्रूफ और मुद्रण की त्रुटियाँ नहीं के बराबर हैं। केंद्र प्रवर्तित योजना के तहत अकादमी चार दशक में लगभग 500 मौलिक और 87 अनूदित पुस्तकें प्रकाशित कर चुकी हैं।

* पुस्तक : सिने पत्रकारिता
* लेखक : श्याम माथुर
* प्रकाशक : राजस्थान हिन्दी ग्रंथ अकादमी, जयपुर
* मूल्य : 120 रु.

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