विगत दिनों राजकमल प्रकाशन ने बेहतरीन उपन्यासों की श्रृंखला प्रस्तुत की है। पेश है चर्चित पुस्तक ' शिक्षा के सामाजिक सरोकार ' का परिचय एवं प्रमुख अंश :
पुस्तक के बारे में
'शिक्षा के सामाजिक सरोकार' शिक्षा, शिक्षक, छात्र और विद्यालय पर केंद्रित वैयक्तिक निबंधों का संग्रह है। यह पुस्तक साहित्य की कई विधाओं का आस्वाद देती है। यह संस्करण भी है, यात्रा वृतांत भी और शिक्षा के सामाजिक सरोकारों का आख्यान भी।
पुस्तक के चुनिंदा अंश
'गोष्ठी संवाद कायम करने का सबसे बेहतर तरीका है। लोकतंत्र में संवाद ही बातों को आगे बढ़ाते हैं। सूचनाओं के आदान-प्रदान और बातों के सिलसिले आगे बढ़ने से ही गति आती है और समस्याओं का निदान होता है। शिक्षा में संवाद की बड़ी अहमियत है। शायद इसीलिए शिक्षा संहिता में प्रधानाध्यापक गोष्ठी, अभिभावक, शिक्षक संघ आदि की परिकल्पनाएँ की गई हैं।'
'जयप्रकाश आंदोलन से बिहार , बिहार में परिवर्तन की जो लहर शुरू हुई थी, उससे बिहार और उससे बहार भी एक आशा बोध पैदा हुआ था और कवि साहित्यकार, सांस्कृतिक कर्मी वैचारिक क्रांति की धार तेज करने में लगे हुए थे। पूर्वांचल में डॉ. वर्मा का सांस्कृतिक दल लगातार जनजागरण आंदोलन चलाए जा रहा था।'
'तिरानवें के पंचानवें तक के इस काल में शिक्षक अपमानित, प्रताड़ित तो हुए ही। अपराधियों द्वारा यत्र-तत्र लूटे गए, पीटे गए। कई स्थानांतरण के नाम से ही हृदयघात के शिकार हुए। कई परिवार उजड़ गए। शायद इतनी पीड़ा शिक्षकों ने जिंदगी में कभी नहीं झेली थी।
समीक्षकीय टिप्पणी
'केदारनाथ पाण्डेय की इस पुस्तक का मूल स्वर मैं सबको शिक्षा, सबको काम! शिक्षाक के क्षेत्र में एक शिक्षक द्वारा किए गए अभिनव प्रयासों का यह ऐसा वृतांत है, जिसे छात्र, शिक्षक और अभिभावक सभी के लिए पढ़ना जरूरी है। समाज की कई कल्पनाएँ, योजनाएँ पुस्तक में स्थान पाती हैं। स्मृतियों को सहेजकर रखने में लेखक माहिर है और उसका यथेष्ठ इस्तेमाल इस पुस्तक में किया गया है।'
शिक्षा के सामाजिक सरोकार
लेखक : केदारनाथ पाण्डेय
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 132
मूल्य : 150 रु.