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समरसिद्धा : प्रेम, पीड़ा और प्रतिशोध की गाथा

लाजवाब है संदीप नैयर का पहला उपन्यास

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हमें फॉलो करें समरसिद्धा : प्रेम, पीड़ा और प्रतिशोध की गाथा

स्मृति आदित्य

पेंगुइन बुक्स प्रकाशन से संदीप नैयर का पहला उपन्यास आया है- समरसिद्धा। भाषा, प्रस्तुति, कथानक और गल्प की दृष्टि से लाजवाब इस उपन्यास की परिचय पंक्ति में लिखा है प्रेम, पीड़ा और प्रतिशोध की गाथा। बेहद खूबसूरती से उपन्यास का आगाज होता है और बड़े ही मार्मिक अंदाज में अंजाम तक पहुंचता है।

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उपन्यास के पात्र शत्वरी, गुंजन, दामोदर, अदिति, नील, धनंजय, अंबरीश, वीरा, अमोदिनी, पल्लवी जैसे पौराणिक नाम मात्र आकर्षण के लिए नहीं है बल्कि कल्पना की दृष्टि से हर चरित्र इस खूबी से लिखा गया है कि सोच और संस्कृति दोनों ही स्तरों पर स्वयं के पौराणिक होने का आभास देते हैं।

नायिका शत्वरी कला और संगीत की साधिका है। अति सुंदर, निश्छल और निर्मल। उपन्यास के आरंभ में ही शत्वरी की दोनों नायकों से भेंट हो जाती है। गुंजन हष्टपुष्ट सुंदर गाड़ीवान है जिसकी बैलगाड़ी में बैठकर शत्वरी और उसकी सखी अदिति संगीत की शिक्षा लेने जाती है। रास्ते में ही दोनों सखी जानती है कि गुंजन को संगीत से गहरा प्रेम है लेकिन वह संगीत की विधिवत शिक्षा नहीं ले सकता क्योंकि वह जाति से शुद्र है।

गुंजन की आवाज में सावन गीत सुनकर शत्वरी उसे संगीत की शिक्षा के लिए प्रेरित करती है। गुंजन के संकोच करने पर वह स्वयं उसे संगीत की शिक्षा देने का प्रस्ताव रखती है। गुंजन और शत्वरी एक दूसरे के प्रति अपने कोमल भाव को समझ भी नहीं पाते हैं और शत्वरी की मुलाकात संगीत आचार्य के पुत्र दामोदर से होती है।

दामोदर कुलीन है, सुंदर और सुशिष्ट है शत्वरी को चाहता भी है लेकिन शत्वरी की उसमें कोई दिलचस्पी नहीं होती है। परिस्थितियां तेजी से बदलती है और दामोदर के प्रति शत्वरी आकर्षित हो जाती है। गुंजन का दिल टूट जाता है। दामोदर और शत्वरी का विवाह संपन्न हो जाता है। दामोदर का अनन्य मित्र है अंबरीश वह विवाह से पूर्व दामोदर को गणिका अमोदिनी के पास ले जाता है।

दामोदर के जीवन में अमोदिनी इस कदर हलचल मचा देती है कि वह बाद में शत्वरी और दामोदर के बीच लंबी दूरी का सबब भी बन जाती है। यहां से उपन्यास अपनी लय और रफ्तार पकड़ता है। कथानक की कसावट तथा पाठक की रूचि हर पन्ने के साथ बढ़ती जाती है। उच्च घराने की शत्वरी पुन: गुंजन से आ मिलती है।

इसके बाद है दर्द की अव्यक्त कथा, अन्याय की पराकाष्ठा, अस्पृश्यता, जातिवाद, भेदभाव की राजनीति, असह्य अपमान, शत्वरी का हुंकारता स्वाभिमान, जादुई यंत्र की खोज, अलौकिक शक्ति के लिए विकलता, रहस्य, तांत्रिक क्रियाएं, बदला, मिलन और पुन: बिछोह... ।

उपन्यास में बड़ी ही खबसूरती से दो कथानकों को बारी-बारी से दुहराया गया है। एक बार शत्वरी की कथा तो दूसरी बार पहाड़ी राज्य मेकल के राजा नील की कथा, जिसकी कोशिश है कि वह अपने तराई के इलाके को सम्राट रुद्रसेन के कब्जे से छुड़ाए। आगे चलकर दोनों कथानकों के संयोग जुड़ते हैं पर एक के बाद एक इन्हें प्रस्तुत कर लेखक ने उपन्यास को बोझिलता से तो बचाया ही है, रोचकता और दिलचस्पी को भी बनाए रखा है।

अंत में ऐसे-ऐसे रहस्यों का खुलासा है जिसके बारे में पाठक पढ़ते समय सोच भी नहीं सकता। यही बात अंत तक उपन्यास को भरपूर रोमांचक और आकर्षक बनाती है। पेशे से आईटी विशेषज्ञ संदीप बधाई के पात्र हैं कि वे पहली पुस्तक में होने वाली त्रुटियों से पूर्णत: बचे रह पाए। ऐसा इसलिए भी है कि पत्रकारिता में उन्होंने लंबे समय तक स्वयं को आजमाया है। किसी समय 'साप्ताहिक हिंदुस्तान' में वे निरंतर लिखते रहे हैं। उनका उपन्यास 'समरसिद्धा' हर कसौटी पर खरा है।

उपन्यास : समरसिद्धा
लेखक : संदीप नैयर
प्रकाशन : पेंगुइन बुक्स
मूल्य : 250/-

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