आज जबकि सरबजीत सिंह लगभग मौत के कगार पर है, उन पर लिखी राजकमल प्रकाशन की पुस्तक 'सरबजीत सिंह की अजीब दास्तां' की मांग तेजी से बढ़ गई है। यह किताब उनके वकील अवैस शैख ने लिखी है। यह पुस्तक दोनों भाषाओं अंगरेजी और हिन्दी में बाजार में उपलब्ध है।
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इस पुस्तक में बताया गया है कि सरबजीत को हमले की आशंका पहले से ही थी। सरबजीत लाहौर के जेल में 23 वर्षों से उस जुर्म की सजा भुगत रहे थे जो उन्होंने किया ही नहीं। यही इस पुस्तक का सबसे दर्दनाक पहलू है जो खुद सरबजीत के लफ्जों में वकील और लेखक अवैस शैख के माध्यम से व्यक्त हुआ है।
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1990 में पाकिस्तान के लाहौर और फैसलाबाद में सीरियल बम ब्लास्ट हुआ था जिसमें करीब 14 लोग मारे गए थे। सरबजीत सिंह को इसी आरोप में संदेह के आधार पर कैदी बनाया गया है जबकि पाक सरकार के पास अब तक इस बात के पुख्ता सबूत मौजूद नहीं है कि सरबजीत का उस मामले में हाथ था।
तीखा सच यह है कि सरबजीत गलत पहचान के आधार पर गिरफ्तार किए गए थे। राजकमल प्रकाशन की इस पुस्तक में परत दर परत सच को सरबजीत की आवाज के रूप में उकेरा गया है।
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पंजाब के तरणतारण जिले का छोटा सा कस्बा है भिखिविंड। 23 साल पहले इसी कस्बे का नौजवान सरबजीत गलती से पाकिस्तान चला गया।
सरबजीत को पाकिस्तान की सरकार ने जासूस समझा लेकिन सरबजीत बार-बार कहता रहा कि वह भटक कर पाकिस्तान की सीमा में चला गया।
सच सामने आता उससे पूर्व ही लंबी सजा काट चुका वही सरबजीत अब जिंदगी की हारी हुई लड़ाई लड़ रहा है।
सरबजीत सिंह को पाकिस्तान भारत का जासूस मानता रहा और अंतत: इसी अपराध(?) के आरोप में वह लंबी सजा भुगतने के बाद आज असह्य पीड़ा को झेलते हुए मौत से दो-दो हाथ कर रहा है।
सरबजीत पर लिखी इस पुस्तक के बारे में लेखक अवैस शेख का कहना है कि मैं दोनों मुल्कों के बाशिंदों को बताना चाहता हूं कि सियासी दावंपेच इतने जटिल हैं कि इसमें आम आदमी इसी तरह फंसता है जैसे मेरा मुवक्किल सरबजीत सिंह। मैं सारी दुनिया को बता देना चाहता हूं कि सरबजीत बेकसूर है। मैं मार्च के बाद से हर दिन में उसकी रिहाई की उम्मीद लेकर बैठा था लेकिन....
सरबजीत के दर्द की यह बेबाक कहानी हर संवेदनशील पाठक को पढ़नी चाहिए।