Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

सुख किस चिड़िया का नाम है?

Advertiesment
हमें फॉलो करें सुख किस चिड़िया का नाम है?
- डॉ. कुसुम पटोरिय
ND
'छोटे-छोटे सुखों का अपना उजास होता है। वैसे बड़ा सुख है क्या? कोई बड़ा पद, बड़ी संपत्ति, बड़ा पुरस्कार, बड़ा नाम, बड़ा यश? यानी शिखर से शिखर तक की कूद। इन बड़े सुखों की प्राप्ति के लिए इंसान न जाने कितना कुछ खो देता है। खो देता है अपने व्यक्तित्व का निजी तेज। वह तो न जाने कितने-कितने समीकरणों में अपने को उलझा देता है।'

डॉ. रामदरश मिश्र के निबंध संग्रह 'छोटे छोटे सुख' के निबंध इन्हीं सुखों की ललित अभिव्यक्तियाँ हैं। इन निबंधों में जीवन व जड़ों से गहरे लगाव की अंतर्धारा निरंतर बह रही है। संवेदनशील मन अपने आसपास को, भूल जाने वाली सतही दृष्टि से नहीं देखता। अपनी रागात्मिका वृत्ति के कारण उनसे भीतर तक जुड़ जाता है।

दैनिक वस्तुओं और घटनाओं को देखने का नजरिया ही उन्हें विशेष बना देता है। सहृदय लेखक उनमें से ही छोटे-छोटे सुख बटोरता है। साथही जाने-अनजाने अपने परिवेश में होते हुए सूक्ष्म परिवर्तनों को महसूसता है।

समस्या की जड़ तक झाँकता है। पाठकों को सचेत भी करता है। जीवनयात्रा को सुनाता हुआ रचनायात्रा का भी निरीक्षण कर लेता है। 'मैं और मेरी सर्जना' व 'पानी के रंग, मेरा रचना नेपथ्य' आदि इसी की कड़ियाँ हैं।

'रिमझिम बरसत मेघ' में फणीश्वर रेणु की रचना प्रक्रिया के सौंदर्य का उल्लेख है। रेणु सौंदर्य प्रक्रिया से यथार्थ का जटिल बिम्ब उपस्थित करने वाले समर्थ कलाकार थे। सामाजिक यथार्थ के अनंत रूप उनके दृश्यों, लोकगीतों, लोककथाओं, प्रकृति चित्रों व संवादों में अंतर्व्याप्त हैं।

मातृभाषा की उपेक्षा का दंश व अँग्रेजी को मेघा का पर्याय मानने के षड्यंत्र की चर्चा 'तुम्हारी माँ कहाँ है' में है। 'चिट्ठियाँ' अंतर की अनुगूँज से स्पंदित चिट्ठी के सजीव अस्तित्व को प्रदर्शित करने के साथ, उनके टेलीफोन और ई-मेल द्वारा अपदस्थ कर दिए जाने की पीड़ा है

विज्ञान परिवर्तन की गति को तीव्रतम बना रहा है। जाने कितने बदलाव अब सहज मान्य हो गए हैं, किंतु भावुक मन बदलाव को शीघ्र स्वीकार नहीं कर पाता। नदियाँ हिन्दुओं के लिए तीर्थ हैं। नदी से जुड़ी हुई प्राकृतिक छवियाँ हमारे सौंदर्यबोध को विकसित करती हैं। इन नदियों के तट पर प्राचीनकाल से मेले लगते रहे हैं, जो मनुष्य को भीतर से भरते थे।

  डॉ. रामदरश मिश्र के निबंध संग्रह 'छोटे छोटे सुख' के निबंध इन्हीं सुखों की ललित अभिव्यक्तियाँ हैं। इन निबंधों में जीवन व जड़ों से गहरे लगाव की अंतर्धारा निरंतर बह रही है। संवेदनशील मन अपने आसपास को, भूल जाने वाली सतही दृष्टि से नहीं देखता।      
अब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया वाले मनोरंजन के साधन, इनके महत्व को कम करने लगे हैं। सांस्कृतिक पर्वों से जुड़े आधुनिक मेले भी राजनीतिक मेले की भीड़ लगने लगे हैं। निबंधों में लेखक अपने अनुभव सुनाने के लिए कभी चौराहे और कभी पार्क में परकाया प्रवेश भी करता है। कवि व उपन्यासकार रामदरशजी एक उत्तम निबंधकार भी हैं

* पुस्तक : छोटे-छोटे सुख
* लेखक : रामदरश मिश्र
* प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ, 18, इंस्टीट्यूशनल एरिया, लोदी रोड नई दिल्ली-3
* मूल्य : रु. 100/-

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi