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हिन्दी की शब्द सम्पदा : पुस्तक अंश

राजकमल प्रकाशन

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विगत दिनों राजकमल प्रकाशन ने बेहतरीन उपन्यासों की श्रृंखला प्रस्तुत की है। पेश है चर्चित पुस्तक हिन्दी की शब्द सम्पदा का परिचय एवं प्रमुख अंश :

पुस्तक के बारे में
ललित निबंध की शैली में लिखी गई भाषा विज्ञान की यह पुस्तक अपने आप में अनोखी है। इस नए संशोधित संवर्धित संस्करण में 12 नए अध्याय शामिल किए गए हैं और कुछ अध्यायों में भी छूटे हुए परिभाषिक शब्दों को जोड़ दिया गया है। जजमानी, भेड़, बकरी पालन, पर्व-त्योहार और मेले, राजगीर और संगतरास आदि से लेकर वनोषधि तथा कारखाना शब्दावली जैसे जरूरी विषयों को भी इसमें शामिल कर लिया गया है।

पुस्तक के चुनिंदा अंश

'प्राणी जगत में अंग भी मुखर हो उठते हैं, दाँत बजता है, हड्डी चटखती है और भड़भड़ाती है,कान पटपटाते हैं, उँगलियाँ चटकती हैं या पुटुकती हैं, हाथों से ताली बजती है, उँगलियों से चुटकी, पद-चाप तो प्रसिद्ध ही है, पेट गुड़गुड़ाता है, हृदय धड़कता है, नाक घर्र-घर्र बजती है, कान सनसनाता है। अचेतन जगत, विशेष करके यांत्रिक जगत में तो आवाजें ही आवाजें हैं। रेलगाड़ी की सीटी, पहियों की घरघर, मोटर का भोंपू, साइकिल की घंटी, नाव की छपछप, चारपाई की चरमराहट.... (आवाज से)

***

'भारतीय कालगणना ब्रह्मा के परार्द्ध से शुरू होती है। क्योंकि सृष्टि का चक्र ब्रह्म का अहोरात्र माना जाता है, फिर कल्प आता है, 14 मन्वन्तर का एक कल्प होता है। एक मन्वन्तर 71 चौकड़ी (युग चतुष्टयी) का होता है और उसमें द्वंद्व, मनु, सप्तर्षि के सभी क्रम से बदलते रहते हैं। एक चौकड़ी का अर्थ है पूरा कृत युग (सत्वयुग, सतयुग) चैतायुग, द्वापर और कलियुग का चक्कर, हर युग के चार चरण होते हैं। (काल चक्र से)

***

'सुबह उठते ही आँगन-ओसारा बुहारकर घरैतिन (कुलवधू) चौके में जाती है, जूठे बर्तन निकालती है, अच्छी तरह बुहारन करके मिट्टी का घोल पोतना से चौके में लीपती है, तीज-त्योहार हुआ तो गोबर से लीपती है, फिर जूठे बासन माँजने बैठती है। (घर के कामकाज से)

समीक्षकीय टिप्पणी

'हिन्दी की शब्द सम्पदा' साहित्यिक दृष्टि से हिन्दी की विचित्र अर्थच्छटाओं को अभिव्यक्त करने की क्षमता की मनमौजी पैमाइश है : न यह पूरी है, न सर्वांगीण। यह एक दिडमात्र दिग्दर्शन है। इससे किसी अध्येता को हिन्दी की आंचलिक भाषाओं की शब्द समृद्धि की वैज्ञानिक खोज की प्रेरणा मिले, किसी साहित्यकार को अपने अंचल से रस ग्रहण करके अपनी भाषा को पैनी करने के उपालम्भ मिले यही इस पुस्तक की सार्थकता होगी।

हिन्दी की शब्द सम्पदा
शोधपरक निबंध संग्रह
लेखक : विद्यानिवास मिश्र
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
पृष्ठ : 292
मूल्य : 350 रु.

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