Hanuman Chalisa

Select Your Language

Notifications

webdunia
webdunia
webdunia
webdunia

पुस्तक समीक्षा : कहानी संग्रह भूतों का इलाज

Advertiesment
हमें फॉलो करें भूतों का डेरा
समीक्षक : अरिफा एविस
‘भूतों का इलाज’ देवेन्द्र कुमार मिश्रा द्वारा लिखा गया एक रोचक एवं पठनीय कहानी संग्रह है। इस कहानी संग्रह में समाज के छुए-अनछुए पहलुओं पर बड़ी ही गहनता और मार्मिकता के साथ लिखा गया है। संवाद शैली ऐसी है, कि कहानी को एक बार पढ़ना शुरू किया जाए, तो पूरी पढ़े बिना नहीं रहा जाता। समाज के विभिन्न पहलुओं पर लिखी गई कहानियां दिल को छू जाती हैं और यह सोचने को मजबूर कर देती हैं, कि इतने समृद्ध कहे जाने वाले समाज में कुछ चीजें आज भी ज्यों की त्यों हैं।

मुनाफे और शोषण पर आधारित पूंजीवादी समाज में मजदूर और मालिक के बीच कभी दोस्ताना व्यवहार नहीं हो सकता। समाज में इन दो वर्गों के बीच हमेशा लड़ाई रही है और लड़ाई रहना लाज़मी है। व्यवस्था के पोषक “धर्म के लिए हजारों व्यर्थ उड़ा देंगे, खून-पसीने की कमाई खाने वालों का हक मारेंगे। भिखारियों को मुफ्त पैसा बांटना धर्म है और मेहनत करने वाले को वाजिब दाम देना बेवकूफी समझते हैं। हमसे अच्छे तो ये भिखारी हैं। इनके लिए पेट्रोल-डीजल की कीमत है, खून-पसीने की कमाई की कोई कीमत नहीं।”
 
आज के वैज्ञानिक युग में लोग अवैज्ञानिक तत्वों पर ज्यादा यकीन रखते हैं। किसी भी बीमारी और समस्या का समाधान वे अंधविश्वास के रूप में खोजते हैं। पंडों-पुरोहितों, मुल्ला-मौलवियों द्वारा तंत्र-मंत्र, भूत प्रेत जैसी चीजों का इलाज करवाते हैं, बजाए इस समस्या के भौतिक कारणों को जाने, उल्टा वे इन आडंबरों, अंधविश्वासों के चंगुल में जा फंसते हैं -
 
“पूर्णिमा, अमावस्या को मेरी बीवी अचानक जोर जोर से सांसे भरने लगती है ...वह थर-थर कांपने लगती है, वह जोर जोर से चींखने लगती है, बचाओ-बचाओ। वो मुझे अपने साथ ले जाएगा. ...जब तक मायके रहती है ठीक ही रहती है। ससुराल आते ही फिर वही सब शुरू हो जाता है। “किसी मनोचिकित्सक को दिखाया।” “भूत प्रेत का साया है और क्या? मैं डॉक्टर हूं तो क्या मानता नहीं हूं इन सब बातों को?”
 
देवेन्द्र कुमार मिश्रा ने महिलाओं या लड़कियों के प्रति समाज के रवैये को बहुत ही मार्मिक ढंग से पेश किया है, जो यह दर्शाता है कि आज भी औरत को एक वस्तु के अलावा और कुछ नही समझा जाता। लड़की की खूबसूरती ! उसे तो अभिशाप समझा जाता है। इस खूबसूरती के कारण परिवार व समाज में उसका जीना मुश्किल कर दिया जाता है। समाज के पिछड़ी मानसिकता के लोग हर खूबसूरत चीज को पा लेने की चाह में इस हद तक गिरते हैं, कि सामने वाले का जीना दूभर हो जाए। नतीजतन घर वाले भी लड़की को तरह-तरह की हिदायतें देने लगते हैं, कि घर जल्दी आए, ज्यादा से ज्यादा घर पर ही रहे, कोई बाहर का इंसान बैठने आए तो घर के अंदर चली जाए और ना जाने क्या-क्या....। और तो और कभी उसे अपनी पढ़ाई भी घर पर ही रहकर करनी पड़ती है।

इस घटिया सोच का खामियाजा एक बेकसूर, मासूम लड़की को भुगतना पड़ता है। “ज्यादा इतराओ मत, हम में से किसी एक को चुन लो नहीं तो बदनाम कर देंगे। ...कुछ ऐसा कर गुजरेंगे कि किसी को मुंह दिखाने लायक नहीं रहोगी। ...अगर हमारे खिलाफ आवाज उठाई तो एसिड से चेहरा बिगाड़ देंगे।” “एक रोज कॉलेज जाते समय उस गुंडे ने उस पर एसिड भरा बल्ब फेंक दिया।”
 
देवेन्द्र ने ‘फांसी’ कहानी का गठन बहुत ही बेजोड़ ढंग से प्रस्तुत किया है। भारतीय न्याय व्यवस्था राजनीति पर आधारित जान पड़ती है। गरीब को न्याय नहीं, मीडिया पहले ही व्यक्ति को मुजरिम करार देती है। “देखो भाई! राजनीति, मीडिया के दबाव के चलते तो न जाने कितने केस बनाए होंगे, कितने बेगुनाहों को थर्ड डिग्री दी होगी। हां, कुछ मुठभेड़ जरूर हुई जो बिलकुल फर्जी थी, लेकिन हमें तो ऊपर वालों के आदेश का पालन करना था।”
 
प्रस्तुत कहानी संग्रह में देवेन्द्र कुमार मिश्रा की ‘सेवा संगठन’, ‘जीत या हार’, ‘प्रश्न’, ‘गुमनाम शिकायतें’, ‘खुदाई’, ‘आभिजात्य’ एवं ‘ईमानदार लाश’ भारतीय समाज के यथार्थवादी जीवन का सटीक वर्णन है।
 
 
पुस्तक : भूतों का इलाज
लेखक : देवेन्द्र कुमार मिश्रा
प्रकाशक : बोधि प्रकाशन
कीमत : 100

Share this Story:

Follow Webdunia Hindi