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कहानी संग्रह : इस बार होली में

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‘इस बार होली में’ रामदरश मिश्र जी का नया कहानी-संग्रह है। इन कहानियों में वस्तु-वैविध्य तो है ही, संरचनागत विविधता भी है। मिश्र जी की यह कहानियां भी गांव और शहर दोनों से गुजरती हैं। दोनों में व्याप्त यथार्थ के अनुभव ही कहानियां बनते चले गए हैं। इन कहानियों में गांव और शहर के अनेक परिदृश्य हैं, चरित्र हैं, समस्याएं हैं और संघर्ष के अनेक स्तर हैं। 
 

 
मनुष्यता के दर्द और मूल्य का स्वर तो मिश्र जी की रचनाओं में व्याप्त होता ही है जो इन कहानियों में भी है। सादगी के साथ गहरी से गहरी बात कह देना मिश्र जी की रचना की विशेषता है। सादगी और अनुभव की प्रामाणिकता के कारण मिश्र जी की कहानियां पाठकों को अपनी कहानियां लगती हैं और वे इनके साथ हो लेते हैं। विश्वास है कि यह कहानियां भी पाठकों को अपनी कहानियां लगेंगी।
 
लेखक रामदरश मिश्र अन्य रचनाएं भी इसी सादगी, गहराई और अपनेपन को व्यक्त करती हैं जो इस प्रकार हैं - काव्य : पथ के गीत, बैरंग-बेनाम चिट्ठियां, पक गई है धूप, कंधे पर सूरज, दिन एक नदी बन गया, मेरे प्रिय गीत, बाजार को निकले हैं लोग, जुलूस कहां जा रहा है?, रामदरश मिश्र की प्रतिनिधि कविताएं, आग कुछ नहीं बोलती, शब्द सेतु, बारिश में भीगते बच्चे, हंसी ओठ पर आंखें नम हैं (गजल), ऐसे में जब कभी, आम के पत्ते, तू ही बता ऐ जिंदगी, हवाएं साथ हैं, कभी-कभी इन दिनों, धूप के टुकड़े, आग की हंसी। उपन्यास- पानी के प्राचीर, जल टूटता हुआ, सूखता हुआ तालाब, अपने लोग, रात का सफर, आकाश की छत, आदिम राग, बिना दरवाजे का मकान, दूसरा घर, थकी हुई सुबह, बीस बरस, परिवार, बचपन भास्कर का। कहानी संग्रह -  खाली घर, एक वह, दिनचर्या, सर्पदंश, बसंत का एक दिन, इकसठ कहानियां, मेरी प्रिय कहानियां, अपने लिए, चर्चित कहानियां, श्रेष्ठ आंचलिक कहानियां, आज का दिन भी, एक कहानी लगातार, फिर कब आएंगे?, अकेला मकान, विदूषक, दिन के साथ, मेरी कथा-यात्रा। ललित निबंध - कितने बजे हैं, बबूल और कैक्टस, घर परिवेश, छोटे-छोटे सुख। आत्मकथा-  सहचर है समय, पुरस्कृत के दिन। यात्रावृत्त-  घर से घर तक देश यात्रा। डायरी-  आते-जाते दिन, आस-पास, बाहर-भीतर। समीक्षा: 11 पुस्तकें। रचनावली: 14 खंडों में।
 
कहानी-संग्रह: इस बार होली में 
लेखक : रामदरश मिश्र
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन 
पृष्ठ संख्या : 120
मूल्य : 225 

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