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चुनाव, राजनीति और रिपोर्टिंग : पुस्तक समीक्षा

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सुशील कुमार शर्मा

चुनाव और राजनीति भारतीय मानस के दो बहुत पसंदीदा एवं समाज-केंद्रित किंतु दुरूह विषय हैं। रिपोर्टिंग का विषय भारतीय नागरिक के लिए अभी भी अबूझ एवं समझ से थोड़ा अलग विषय माना जाता है।

इन तीनों विषयों का समायोजन कर उसे एक दस्तावेज का रूप देना एक बहुत परिपक्व लेखक एवं पत्रकार ही कर सकता है और यह काम ब्रजेशजी ने बखूबी किया है। ब्रजेश राजपूत भारतीय मीडिया का एक ऐसा चेहरा है, जो सूचनाओं को संवेदनशीलता एवं सच्चाई प्रदान करता है।
 
ब्रजेश राजपूत ने सागर विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की उपाधि प्राप्त करने के बाद पत्रकारिता के क्षेत्र में ख्यातिनाम उपलब्धियां प्राप्त की हैं। ब्रजेशजी का सबसे बड़ा गुण उनका अपनी जड़ों से प्यार करना है।
 
सफलता व्यक्ति को जड़ों से काटकर आसमान में लटका देती है। जो जड़ छोड़ देते हैं वो ताड़ बन जाते हैं लेकिन जो जड़ नहीं छोड़ता वही वटवृक्ष बनता है। यही कारण है कि वे आज पत्रकारिता के क्षेत्र में भारत का एक प्रमुख चेहरा हैं।
 
ब्रजेशजी की पुस्तक 'चुनाव, राजनीति और रिपोर्टिंग' उस समय आई, जब मध्यप्रदेश में 2013 के विधानसभा चुनाव अपने शबाब पर थे। इन तीनों गूढ़ विषयों को समग्र रूप से विश्लेषित करने के लिए लेखक को विशद अध्ययनशील, जमीनी अनुभव के साथ-साथ सामाजिक सरोकारों से परिचित होना एवं अपने भावों को सरल, सुगम किंतु साहित्यिक भाषा में प्रवाहित करना अत्यंत आवश्यक होता है। ब्रजेशजी ने अपनी पुस्तक में इन तीनों गूढ़ विषयों को एकीकृत करके मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव का जो विश्लेषण किया है, वह अकल्पनीय है। 
 
चुनाव का विषय सिर्फ राजनीति तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके साथ उस क्षेत्र एवं मतदाताओं की सांस्कृतिक, सामाजिक, व्यावहारिक एवं भौगोलिक अस्मिताएं शामिल होती हैं। इन सभी घटकों का सामूहिक विश्लेषण कर सटीक परिणाम की ओर इंगित करना इतना आसान नहीं होता। इस पुस्तक में ब्रजेशजी ने अपनी संपूर्ण क्षमताओं से इस दुरूह विषय का जो विश्लेषण प्रस्तुत किया है, वो बेहद सटीक एवं वास्तविकता के करीब है। 
 
चुनाव को लेकर 3 अवधारणाएं काम करती हैं। दलों की अवधारणा, जनमानस की अवधारणा एवं मीडिया की अवधारणा। इन तीनों अवधारणाओं के अपने-अपने पैमाने होते हैं। इन पैमानों को समझना एवं उस आधार पर चुनाव का विश्लेषण कर वास्तविक परिणामों से साम्यता स्थापित करना बहुत ही अनुभवजन्य कार्य है।
 
ब्रजेशजी ने जिस तरह से पूरी स्थितियों का क्रमबद्ध विश्लेषण किया लगता है, जैसे कि चुनाव पूरी तरह क्रिकेट का मैच है और हम ब्रजेशजी से कॉमेंट्री सुन रहे हैं। चुनावी रिपोर्टिंग की अपनी चुनौतियां होती हैं। ब्रजेशजी ने रिपोर्टिंग के नए आयाम दिए हैं। जिस तरह से सरल, सकारात्मक एवं बेबाक तरीके से चुनाव की कवरेज की, वह उनकी रिपोर्टिंग में चार चांद लगाती है। उन्होंने सफल चुनावी रिपोर्टिंग के कुछ पहलुओं पर प्रकाश डालते हुए रिपोर्टिंग के कुछ तरीके बताए हैं। 
 
एक जगह उन्होंने अपनी पुस्तक में लिखा है- 'इसलिए सवाल सीधे नहीं, घुमाकर पूछने की अदा रिपोर्टर को आनी चाहिए, वरना कई दफा मतदाता ऐसा बेरुखा जवाब देता है कि रिपोर्टर खिसिया के रह जाता है। '
 
उन्होंने अपनी पुस्तक में मतदाता की चालाकी का उदाहरण श्रीलाल शुक्ल के उपन्यास 'राग दरबारी' उपन्यास से दिया है- 'वोट की भिक्षा बड़े-बड़े नेताओं को विनम्र बना देती है... जब आप वोट की भीख मांग रहे हो, तो आप ही ले जाओ वोट...।' उन्होंने इस उदाहरण से स्पष्ट किया है कि आज के मतदाता के मन को टटोलना बहुत मुश्किल है।
 
पुस्तक का प्रथम अध्याय 'चुनाव पर किताब क्यों' ही इस पुस्तक की महत्ता का बखान करता है। आजादी से लेकर आज तक जिन भारतीय जनमानस ने चुनाव देखे हैं, उनमें हिस्सा भी लिया है किंतु चुनाव की केमिस्ट्री से अधिकांशत: अनभिज्ञ हैं। 
 
चुनाव की यह रहस्यमय विधा राजनीतिक दलों एवं मीडिया हाउस के गुप्त तहखानों में बंद रहती है। ब्रजेश राजपूत की इस पुस्तक ने बड़े सहज एवं सरल ढंग से उस विधा से आम नागरिक को परिचित कराने का प्रयास किया है।
 
मध्यप्रदेश में 2013 के विधानसभा चुनाव कई मामलों में अहम थे। जहां एक ओर कांग्रेस अपने क्षत्रपों के अहंकारों के नीचे दबी कराह रही थी वहीं शिवराज अपनी लोकप्रियता के चरम पर थे। कांग्रेस के पास एकमात्र तिनके का सहारा था- शिवराज का मोदी विरोधी कैम्प का होना। कांग्रेस सोच रही थी कि बीजेपी को बीजेपी ही निपटाएगी और वह सत्ता पर काबिज हो जाएगी। 
 
कांग्रेस की ओर से शिवराज के विरुद्ध युवा ज्योतिरादित्य सिंधिया को उतारा गया और परिणाम सबके सामने है। इन सभी घटनाओं एवं चुनावी रणनीतियों एवं मतदाता की मानसिकता का रोचक विश्लेषण लेखक ने बखूबी किया है।
 
ब्रजेश राजपूत की यह पुस्तक मध्यप्रदेश की राजनीति एवं पत्रकारिता का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है जिसमें पहले चुनाव की रिपोर्टिंग से लेकर 2013 तक के चुनाव के राजनीतिक, सांस्कृतिक व सामाजिक परिदृश्यों का परीकथा के समान चित्रण किया गया है। इस पुस्तक में मीडिया की शुरुआती इतिहास से लेकर वर्तमान स्थिति का विभिन्न संदर्भों में विश्लेषण प्रशंसनीय ही नहीं, बल्कि अकल्पनीय है।
 
वर्तमान में पत्रकारिता इसलिए चुनौती है, क्योंकि राजनीतिक सत्ता खुद एवं चुनावी जीत को संविधान से ऊपर मानने लगी है। सूचनाओं की तीव्रतम व्याख्याएं होने लगी हैं। न्यूज चैनल, अखबार और अखबार, चैनल बन चुके हैं। सोशल मीडिया से लोग दूसरों के इतने नजदीक हो गए कि अपनों से दूर होने लगे हैं। ऐसी स्थिति में पत्रकारिता का निर्भीक, निष्पक्ष एवं सम्मोहक होना नितांत आवश्यक बन गया है।
 
ब्रजेशजी की यह पुस्तक दर्शाती है कि पत्रकारिता सिर्फ सूचनाओं का सम्प्रेषण नहीं है बल्कि संवेदनशील, मुखर जनहितैषी आवाज है, जो समाज को आंदोलित करती है। पत्रकारिता सवाल एवं जनसरोकारों के मुद्दे उठाती है और इन सवालों से लोकतंत्र उन्नत होता है। पत्रकार किसी विशेष दल या व्यक्ति के लिए कलम उठाता है तो वह पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर लिखता है लेकिन जब वह जनसरोकार को अपनी लेखनी में उतारता है तो दिलों को छू लेता है। ब्रजेशजी लोगों के दिलों में बसते हैं, दलों में नहीं।
 
राजनीतिक रिपोर्टिंग पत्रकारिता के प्राण हैं, लेकिन अब चुनाव के इतर यह विधा करीब-करीब हाशिए पर चली गई है। सेंटर फॉर मीडिया स्टडीज के एक सर्वेक्षण के आधार पर हिन्दी एवं अंग्रेजी के 8 प्रमुख चैनलों पर प्राइम टाइम पर राजनीतिक कवरेज में 50% तक की गिरावट आई है। 
 
इसके मायने हैं कि राजनीतिक एवं पत्रकारिता का गठजोड़ जनता को पसंद नहीं है। ब्रजेश राजपूत की इस पुस्तक ने राजनीतिक रिपोर्टिंग का स्तर ऊंचा उठाया है एवं यह आम आदमी के विश्वास को जीतने में कामयाब रही है। इस पुस्तक में प्रेस या मीडिया की आजादी का मतलब किसी मीडिया हाउस, मीडिया पर्सन या कंपनी की आजादी नहीं, वरन जनसरोकारों के मुद्दे उठाने की आजादी बताई गई है।
 
यह पुस्तक राजनीति के विद्यार्थियों के लिए एक शोधग्रंथ के समान है। यह पुस्तक 3 खंडों में विभाजित है। प्रथम भाग में ब्रजेशजी ने चुनाव एवं रिपोर्टिंग की बारीकियों का विश्लेषण किया गया है। द्वितीय भाग में मध्यप्रदेश के विधानसभा चुनाव से संबंधित 13 लेखों, जो चुनावी परिदृश्य को परिभाषित कर रहे हैं, का अनूठा संकलन है। ये लेख ब्रजेशजी की प्रवाहमयी एवं धारदार, असरदार लेखनी की गहराई को प्रदर्शित करते हैं। इस पुस्तक का तीसरा भाग चुनावी आंकड़ों एवं चुनाव से संबंधित तस्वीरों से अलंकृत है, जो मध्यप्रदेश विधानसभा चुनावों की सतरंगी तस्वीर पेश करती है।
 
'चुनाव, राजनीति और रिपोर्टिंग' इस पुस्तक को पढ़ते हुए आपको लगेगा कि आप कोई फिल्म देख रहे हैं और एक के बाद एक दृश्य आपकी आंखों के सामने से गुजर रहे हैं और आप मंत्रमुग्ध हो उन्हें देख व सुन रहे हैं। अमूमन चुनावी चकल्लस का विश्लेषण इतना सजीव नहीं होता जितना कि ब्रजेशजी ने अपनी लेखनी से उसे जीवंत कर दिया है। 
 
इस पुस्तक में लेखक ने पत्रकारिता को एक नई रूपक शैली एवं विशिष्टता प्रदान की है। पुस्तक की भाषा सरल, प्रवाहमयी एवं साहित्यिक है। भाषा ने घटनाओं को संवेदनाओं में पिरोया है। यह उच्च कोटि की जीवंत पुस्तक भारतीय राजनीति, चुनाव एवं पत्रकारिता का एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है। इसके लिए ब्रजेशजी बधाई के पात्र हैं। 
 
पुस्तक का नाम- चुनाव, राजनीति और रिपोर्टिंग
लेखक- ब्रजेश राजपूत (ABP NEWS)
मूल्य- 195/
प्रकाशक- शिवना प्रकाशन, सीहोर 

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