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इस्कूल : ग्रामीण शिक्षा व्यवस्था के अनदेखे पहलूू पर आधारित

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प्रीति सोनी

अजय अग्रवाल द्वारा लिखी गई किताब इस्कूल, मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में स्थति सरकारी स्कूलों और उससे जुड़े माहौल व व्यवस्था के इर्दगिर्द घूमती है। एक ओर जहां ग्रामीण इलाकों में शिक्षा के लिए जागरूकता, प्रयास और गंभीरता की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है, तो दूसरी ओर इस क्षेत्र की राजनीतिक पक्ष पर भी लोगों का ध्यान केंद्रित करती है।

 
ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा के प्रति उदासीनता और बच्चों की स्कूल में अनुपस्थिति जैसी समस्याएं तो आम हैं ही, लेकिन इस पर स्कूल प्रशासन और शिक्षकों का रवैया भी उतना ही उदासीन नजर आता है। अक्सर ग्रामीण इलाकों में शिक्षा केंद्रों में यही स्थति देखी जाती है, जहां न तो पालक बच्चों की शिक्षा के प्रति उत्साहित होते हैं, और न ही शिक्षक अपने कर्तव्यों के प्रति। लेकिन इसके बावजूद, यदि शिक्षक इमानदारी से बच्चों तक शिक्षा पहुंचाने का प्रयास करे और उनके पालकों को भी शामिल किया जाए, तो तस्वीर बदलना संभव हो सकता है। परंतु आंतरिक क्षेत्रों में शिक्षा से जरूरी उनकी मूलभूत आवश्यकताएं हैं जो आढ़े आती हैं। 
 
इस्कूल, ग्रामीण क्षेत्रों की शिक्षा व्यवस्था को दर्शाती है, जहां एक तस्वीर स्कूल, बच्चे, पालक, स्कूल की व्यवस्थाएं और बच्चों के ज्ञान को दर्शाती हैं, वहीं दूसरी तस्वीर इस व्यवस्था में राजनीति की उपस्थिति को गहराई से व्यक्त करती है।
 
लेखक का लेखन मौलिक है, और आवश्यकतानुसार ग्रामीण भाषा में लिखे संवाद, लेखन को और भी मौलिकता प्रदान करते हैं, और पाठकों को जमीनी स्तर पर लेखन से जोड़ते हैं। भुवनेन्द्र जैसे इमानदार और कर्म के प्रति उदार व्यक्ति का किरदार, कहानी का केंद्र है, जो अपने कर्म को पूजा मानकर समर्पित है, लेकिन इस रास्ते में उसे कई अनियतिता और बाधाओं का सामना करना पड़ता है। राजनीति, रिश्वतखोरी और अन्य अनैतिकताओं का सामना वह कैसे करता है और किस तरह के लोगों का उसे संरक्षण मिलता है, यह अहम है।
 
इस्कूल की कहानी यह बताती है, कि गांवों में सही शिक्षा प्रणाली के लिए न केवल ग्रामीणों और स्कूल संचालकों को जागरूक होने की जरूरत है, बल्कि राजनीति और सरकारी नौकरी को आराम की जिंदगी मानकर बैठे-बैठे सेलरी लेने वाली मानसिकता पर शिकंजा कसने की जरूरत है।
 
पुस्तक : इस्कूल 
लेखक : अजय अग्रवाल 
प्रकाशन : ऑनलाइन गाथा 
कीमत : 198 


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