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इतवार छोटा पड़ गया : भावुक मन की सशक्त रचनाएं

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स्मृति आदित्य

किसी ने क्या खूब कहा है कि शब्द रत्न होते हैं, मोती होते हैं, हीरे, पन्ना, माणिक होते हैं... इनकी कीमत वक्त के साथ बढ़ती है। कम नहीं होती। शब्दों में ही वह ताकत होती है कि वे किस्मत के सितारे बदल देते हैं रत्नों की मानिंद।  प्रताप सोमवंशी साहित्य की दुनिया के चिरपरिचित हस्ताक्षर हैं। 


पिछले दिनों जब उनकी कृति इतवार छोटा पड़ गया प्रकाशित हुई तो कई पाठक पढ़कर इसी तरह चौंके कि अरे यह शेर तो खूब सुना है पता नहीं था कि प्रताप सोमवंशी का है। प्रताप खुद कहते हैं कि जब उनके शेर इस कदर प्रचलित हो गए तब दोस्तों के ही आग्रह पर उन्होंने अपनी ग़ज़लें और शेर एकत्र किए और पुस्तक रूप में प्रकाशित करने का सोचा। 
 
अकेले में हंसाने लग गया है 
बहुत ही याद आने लग गया है 
 
ऐसे ही कई सरल, सहज लेकिन गहरे और दमदार शेर हर पन्ने पर अंकित मिलते हैं और हम बतौर पाठक मुग्ध होते चले जाते हैं। 
 
प्रताप की लेखनी में ताजगी है, ऊर्जा है, मिठास है, सौंधी सी बयार है, अपनों का प्यार है। लेकिन हर शेर पाठकों के मन पर कुछ रख कर जरूर जाता है। कभी फूल तो कभी वजन, कभी तल्खी तो कभी मुस्कान, कभी अतीत तो कभी आने वाले समय की ताकीद...। 
 
उम्मीदों के पंछी के पर निकलेंगे 
मेरे बच्चे मुझ से बेहतर निकलेंगे 
 
यहां हर वो खुशबू है जिसमें सुधी पा ठक नहाना चाहता है। यहां मौसम है, ति‍तली है, ख्वाब है, मिट्टी है.... रिश्तों की आंच है, परिवेश का सच है, भोला सा मन है, चंदन सा बदन है, परिवार के 'शहद' संबंध है, दोस्तों की 'नमक' महफिल है, स्नेह का रस है, यश-अपयश है, सियासत की कड़वाहट भी है और रिवाजों की मुस्कुराहट भी। 
 
'राम तुम्हारे युग का रावण अच्छा था, 
दस के दस चेहरे सब बाहर रखता था' 
 
यह शेर सोशल मीडिया पर प्रति दशहरा इतना धूम मचाता रहा कि प्रताप स्वयं ने इसे समाज को समर्पित कर दिया। प्रताप के शेर और ग़ज़लों में इंद्रधनुषी रंगों की ऐसी सजीली आभा मिलती है जो हर रूचि, हर वर्ग के पाठक को तृप्त करती चलती है। 
 
यह जो लड़की पे हैं तैनात पहरेदार सौ
देखती हैं उसकी आंखें भेड़िये खूंखार सौ
 
भाभी बेमतलब रहे हम सबसे नाराज।
उसको हर पल ये लगे मांग न लें कुछ आज।।
 
वे अपने नन्हे दोहों और मासूम रचनाओं में भी अपने सामाजिक सरोकार नहीं भूलते। कोई उन्हें दुष्यंत कुमार के समकक्ष रखता है तो कोई आलोक श्रीवास्तव के साथ, कहीं उन्हें मुनव्वर का भाई बना दिया जाता है तो कहीं जावेद की तरह का शायर लेकिन उनकी किसी भी कवि या ग़ज़लकार से तुलना संभव नहीं है क्योंकि उनका अपना एक अलहदा अंदाज है। अपनी शैली है और बात को दिल के अंदर तक उतार देने की उनकी अपनी ताकत है।

उनका सबसे प्रबल पक्ष है सरलता। पानी की तरह उनके शेर सरल-तरल हैं जो बहते हुए भीतर तक उतर जाते हैं और मस्तिष्क की अरबों बारीक कोशिकाओं को कुछ देने की गुणवत्ता भी नहीं भूलते।

उन्हें पढ़ते हुए 'भावुक मन' की ऐसी झलक मिलती है जो जीवन की आपाधापी में हमसे हाथ छुड़ा कर भाग खड़ा होने को तैयार बैठा है, शायर ने उसे ही मजबूती से पकड़ कर रखा है और हर पन्ने पर वह हमें मुस्कुराता हुआ मिलता है किसी अबोध बालक की तरह।  पुस्तक हर रूप में पठनीय है... और सिर्फ पठनीय नहीं बल्कि संग्रहणीय है, क्योंकि बार-बार पठनीय है। इस पुस्तक को पढ़ने के लिए इतवार ही चुनें क्योंकि.... 
 
दर्जनों क़िस्से-कहानी ख़ुद ही चल कर आ गए 
उस से जब भी मैं मिला इतवार छोटा पड़ गया 
 
पुस्तक - इतवार छोटा पड़ गया
कवि: प्रताप सोमवंशी
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन
144 पृष्ठ
कीमत : 150 रुपए

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