कोई भी सर्व सत्तावादी जिस चीज से सबसे ज्यादा डरता है वह है व्यंग्य। वह व्यंग्य को बर्दाश्त नहीं कर पाता यहां तक कि कार्टून को बर्दाश्त नहीं कर पाता। ऐसे में व्यंग्य लिखना भारी जोखिम का काम है और वह मुकेश कुमार ने किया है। ये उनका दुस्साहस है कि उन्होंने फेक एनकाउंटर लिखा। ये विचार जाने-माने कथाकार एवं कवि उदयप्रकाश ने डॉ. मुकेश कुमार की किताब फेक एनकाउंटर के लोकार्पण के अवसर पर कही। शिवना प्रकाशन द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का लोकार्पण दिल्ली स्थित प्रेस क्लब ऑफ इंडिया के सभागार में हुआ।
कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे उदयप्रकाश ने कहा, मैंने इस किताब को पढ़ा है और मैं यह कह सकता हूं कि ये एक ऐसी किताब है जिसे शुरू करने के बाद रखना मुश्किल हो जाता है। मुकेश कुमार ने कभी भी सामाजिक सरोकारों को छोड़ा नहीं और वह प्रतिबद्धता फेक एनकाउंटर में भी देखी जा सकती है। उदयप्रकाश ने किताब की खूबियों पर रोशनी डालते हुए कहा कि सभी फ़ेक एनकाउंटर बहुत चित्रात्मक है, विजुअल है और इसका नाट्य रूपांतर करके कोई टेलीविजन शो किया जाए तो वह चैनलों पर चलने वाले कई व्यंग्यात्मक कार्यक्रमों से बेहतर होगा, वह अद्भुत होगा और उसे बनाया जाना चाहिए।
इससे पहले कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ओम थानवी ने मौजूदा समय की चुनौतियों, बढ़ती असहिष्णुता सत्ताधारियों के चरित्र का जिक्र करते हुए कहा कि मुकेश जी के सौम्य व्यक्तित्व की झलक इस किताब की भाषा और उनके कहने के अंदाज में भी है। शोर-शराबे के इस दौर में मुकेश ऐसा कर रहे हैं ये अच्छी बात है। उन्होंने कहा कि फेक एनकांउटर में काल्पनिक इंटरव्यू के जरिए उन्होंने मौजूदा दौर का खाका खींचा है और कहना होगा कि उनकी रेंज बहुत बड़ी है। उन्होंने ओबामा से लेकर मोदी तक सबके साथ एनकाउंटर किया है और साथ ही साथ पत्रकारों की स्थिति को भी उजागर किया है। थानवी ने कहा कि ये बहुत खतरनाक दौर है और इस किताब के बहाने उस दौर की भी चर्चा की जानी चाहिए, उसे भी जांचा-परखा जाना चाहिए।
कार्यक्रम में मुख्य वक्ता की हैसियत से हिस्सा ले रहे वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक प्रियदर्शन ने कहा कि वे फेक एनकाउंटर लगातार पढ़ते रहे हैं और उसे एक किताब के रूप में पढ़ना उनके लिए एक नया अनुभव था। उन्होंने कहा कि किताब में संकलित फर्जी एनकाउंटर झूठ को बेनकाब करते हैं। मुकेश जी ने व्यंग्य के शिल्प को बहुत करीने से साधा है और वह पारंपरिक शिल्प नहीं है। हम लोग व्यंग्य की जिस परंपरा की बात करते हैं ये उनसे हटकर हैं। वे पत्रकारिता के भीतर इंटरव्यू के मार्फ़त उन स्थितियों को ऐसे रख देते हैं जो अपने ढंग से विडंबनामूलक हैं और हम उन्हें व्यंग्य की तरह पढ़ने लगते हैं। मुझे अंदेशा था कि कहीं पूरी की पूरी किताब उसी वैचारिक लाइन पर न हो जिसके लिए लेखकों को बदनाम कर दिया गया है। मैंने पाया कि यह शिथिलता बिल्कुल भी नहीं है और इसमें सारे पक्ष आ गए हैं। ये शिकायत कोई नहीं कर सकता कि ये किताब किसी एक विचारधारा की ओर झुकी हुई है।
किताब के लेखक डॉ. मुकेश कुमार ने कहा कि हम एक फ़ेक समय में रह रहे हैं। इस समय मे सब कुछ फ़ेक है। मीडिया तो फ़ेक है ही, फ़ेक राष्ट्रवाद है, फ़ेक दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक प्रेम है। उन्होंने कहा कि नेता राजनीति फ़ेक है और इस वजह से लोकतंत्र भी फ़ेक लगने लगा है। इस फ़ेक को काटने के लिए उन्होंने इन फर्जी एनकाउंटर का सहारा लिया और उन्हें खुशी है कि इन्हें देश भर में खूब पढ़ा और सराहा गया।
सुपरिचित कवयित्री एवं शिवना प्रकाशन की निदेशक पारुल सिंह ने किताब का परिचय देते हुए कहा कि फेक एनकाउंटर अनूठा व्यंग्य संग्रह है और व्यंग्य पत्रकारिता की पहली पुस्तक है। ये व्यंग्य संग्रह पहले बनाए गए दायरों को तोड़कर आगे निकल जाता है। मुकेश कुमार ने बहुत सारे नए प्रयोग किए हैं और इसलिए भी साहित्य एवं पत्रकारिता जगत में इसकी चर्चा होनी चाहिए। उन्होंने मुकेश कुमार इसके लिए आभार व्यक्त किया कि उन्होंने ये व्यंग्य संग्रह प्रकाशन के लिए शिवना प्रकाशन को दिया।
लोकार्पण समारोह की एक बड़ी विशेषता जानी मानी टीवी एंकर आरफ़ा ख़ानम शेरवानी का संचालन रहा। अपने टीवी कार्यक्रमों की ही तरहअपने सधे हुए संचालन के ज़रिए उन्होंने किताब को मौजूदा संदर्भों, समस्याओं और विवादों से जोड़ते हुए बातचीत को सार्थक बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा की। उन्होंने किताब के कुछ अंश पढ़े और अपनी तीखी एवं चुटीली टिप्पणियों से मीडिया के चरित्र को उजागर किया भी किया।
आरफ़ा ने मुकेश कुमार की ऐंकरिंग की चर्चा करते हुए कहा कि मैं उन्हें बतौर एंकर अच्छे से जानती है वह आतंकित कर देने वाली एंकरिंग के विपरीत सौम्यता लिए हुए है। यही बात उनकी इस किताब में दिखती है। उन्होंने किताब के कुछ अंशों का पाठ भी किया। कार्यक्रम में साहित्य एवं पत्रकारिता के अलावा अन्य क्षेत्रों के सौ से अधिक लोग उपस्थित थे।