1 आदमखोर - आदिकाल में मनुष्य जंगलों में रहता, पशु-पक्षियों का शिकार करता, अपना जीवन-निर्वाह करता, यही जानवर प्रायः उस पर भी समय-समय पर हमला कर देते थे। इसलिए अपनी प्राण रक्षा के लिए हमेशा सतर्क रहना होता एवं सदैव ही सुरक्षित स्थानों की खोज में रहता था।
सारांश में बिना आत्मबल एवं कठिन परिश्रम के धरती पर जीवन संभव नहीं था। इसलिए ये वृद्ध एवं बच्चों को छोड़ सभी सामूहिक रूप से काम करते और अधिक-से-अधिक परिश्रम करते, उसकी इस सामूहिक रूप से कार्य करने की प्रवृत्ति ने कुछ चालाक एवं चतुर लोगों ने अपनी स्वार्थसिद्धि के लिए उसे अपनी दास्ता की बेड़ियों में जकड़ स्वयं को उस पर हावी होकर उसे इस्तेमाल करने लगा। इस तरह मनुष्य दो भागों में बंट गया - शोषक एवं शोषित।
2 चील घर - ‘चीलघर’ नाटक आज के युग के कड़वे सत्य को उजागर एवं जीवित करता है। ये एक ऐसा सत्य जो इतना क्रूर, जिसे कहीं से भी उठाया जा सकता है। कुछ समझ में नहीं आता, समस्त सामाजिक ढांचा अस्त-व्यस्त सा लगता है, जो अववाहन करता दिखाई देता है। इसका हल सिर्फ मेरे, आपके, हमारे हाथ में है एवं केवल हमसे संबंधित है, अन्य कोई कुछ नहीं कर सकता। इस जिम्मेदारी को केवल हमें ही उठाना होगा।
कभी बचपन में सुनते थे दादी मां की कहानी, या नानी मां की कहानी, जो वास्तविक रूप में हमारे मस्तिष्क में इस तरह से बैठ जाती थी, जिसे हम सारा जीवन कभी भुला नहीं पाते थे। हमने सुना है मां बच्चे को जन्म देने से पहले उसे इतना योग्य बना देती थी, कि आगे आने वाली परिस्थितियों से जूझने की शक्ति उसमें पहले से ही मौजूद रहती थी। अभिमन्यु का चक्रव्यूह में घुस जाना, गर्भ में ही प्रवेश करने का ज्ञान, एकलव्य को देखकर ही निशाना बांधने का ज्ञान उन सबको केवल अपनी माता द्वारा ही प्राप्त हो सका था। हमारे ग्रंथों में ऐसे बहुत से उदाहरण मिलते हैं।
3 कुक्कू डार्लिंग - नाटक का नायक अविनाश रूढ़िवादी समाज के खोखले नियमों से विद्रोह कर घर त्याग देता है। जिससे पिता को काफी आघात पहुंचता है। एक ही पुत्र होने के कारण उनके बाद परिवार की डोर को आगे कौन संभालेगा। परंतु वह इन तमाम बातों की चिंता किए बिना घर छोड़ देता है। बाहर निकल उसे समस्त समाज का ढांचा ही पूरी तरह से अस्त-व्यस्त दिखाई पड़ता है।
वह देखता है छुआछूत से ग्रस्त लोग, व्यक्तिगत लाभ के लिए अपने सारे सिद्धांतों को ताक पर रख देने वाले लोग, क्या गांव, क्या शहर सभी पूरी तरह से भ्रष्ट हो चुके हैं। इन तमाम दोषों की चिंता किए बिना आगे बढ़ता जाता है एवं जितना आगे जाता है उतना ही इस वातावरण को और भी अधिक खोखला पाता है।
प्रकाशक : वाणी प्रकाशन