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भक्ति आंदोलन और काव्य का लोकार्पण एवं परिचर्चा

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वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित की गई वरिष्ठ आलोचक गोपेश्वर सिंह की नवीनतम पुस्तक भक्ति आंदोलन और काव्य का लोकार्पण एवं इस पर परिचर्चा का आयोजन 201 फरवरी 2017 को दोपहर 2 बजे, दिल्ली विश्वविद्यालय स्थ‍ित हिन्दू कॉलेज के सेमिनार हॉल में किया गया है।



 
भक्ति काव्य हिन्दी साहित्येतिहास और आलोचना का केन्द्रीय विषय रहा है। तमाम अध्ययनों और निष्कर्षों के बावजूद यह विषय अब भी चुनौती बनकर खड़ा हुआ है। भारतीय जनमानस में इसकी सतत उपस्थिति साहित्येतिहासकारों को परिसीमित कर देती है। सामान्य जनता के चित्त में इसका निरंतर आलोड़न आलोचकों को भरमा देता है और इसी कारण जिज्ञासुओं को यह विषय आविष्ट-आमंत्रि‍त करता रहता है।
 
गोपेश्वर सिंह की किताब भक्ति आंदोलन और काव्य ऐसे समय में प्रकाशित हो रही है जब किस्म-किस्म की अस्मितावादी तरकीबें इस विरासत को हथियाने में एड़ी-चोटी एक कर रही हैं। नवउपनिवेशवाद और वैश्वीकरण के साये में सांस्कृतिक रूप से विच्छिन्न जिस पीढ़ी का आगमन हो रहा है वह पारंपरिक वर्चस्ववादियों और नए विमर्शवादियों के संकीर्ण उपक्रमों के पोषण हेतु बहुत अनुकूल है। संकट के इस घटाटोप का भेदन-उच्छेदन बड़ा दुष्कर कार्य है। गोपेश्वर सिंह भक्ति कविता से अनुराग रखते हैं। वे स्वयं किसी प्रकट-प्रच्छन्न निजी मनोरथ की पूर्ति के लिए भक्ति परियोजना में प्रवृत्त हुए प्रतीत नहीं होते। पूर्ववर्ती आलोचकों और अध्ययनों के संबंध में निपट श्रद्धा और भर्त्सना जैसे अतिवादी विकारों से बचते हुए वे अपना रास्ता खुद बनाते हैं। मूल पाठ में उचित भरोसे के साथ सार्थक का रेखांकन उनके भक्ति अध्ययन का वैशिष्ट्य है।
 
वाणी प्रकाशन अपनी एक ख़ास प्रस्तुति में इस पुस्तक का लोकार्पण और परिचर्चा आयोजित करने जा रहा है। दिल्ली विश्वविद्यालय के अत्यन्त प्रतिष्ठित हिन्दू महाविद्यालय के सेमिनार हॉल में आयोजित इस विशेष कार्यक्रम में गोपेश्वर सिंह की पुस्तक पर चर्चा और विमर्श में भाग लेंगे वरिष्ठ पत्रकार राजकिशोर, आलोचक और अध्यापक बजरंग बिहारी तिवारी, रामेश्वर राय और दिनेश कुमार। इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करेंगे वरिष्ट आलोचक मैनेजर पाण्डेय। इस कार्यक्रम में वाणी प्रकाशन के प्रबन्ध निदेशक अरुण माहेश्वरी भी उपस्थित रहेंगे।
 
गोपेश्वर सिंह हिन्दी से एम.ए. और पीएच.डी करने के बाद 1974 में जे.पी. आंदोलन में सक्रिय रहे और कई बार जेल-यात्रा भी की। 1983 से अध्यापन में सक्रिय हैं। उन्होंने पटना विश्वविद्यालय (पटना) एवं सेंट्रल यूनिवर्सिटी (हैदराबाद) में करीब दो दशक तक अध्यापन के बाद सितंबर 2004 से दिल्ली विश्वविद्यालय में अध्यापन आरंभ किया और 2010 से 2013 तक विभाग के अध्यक्ष भी रहे। वे साहित्य के साथ सामाजिक-सांस्कृतिक विषयों पर हिन्दी की प्रायः सभी महत्त्वपूर्ण पत्र-पत्रिकाओं में निरंतर लेखन करते हैं। ‘नलिन विलोचन शर्मा’ (विनिबंध), ‘साहित्य से संवाद’ और ‘आलोचना का नया पाठ’ उनकी प्रमुख पुस्तकें हैं। इसके अलावा उन्होंने छः पुस्तकों का संपादन भी किया है। हिन्दी आलोचना में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें आचार्य परशुराम चतुर्वेदी सम्मान तथा रामविलास शर्मा आलोचना सम्मान प्रदान किया गया है।
 
हिन्दी के वरिष्ठ आलोचक मैनेजर पाण्डेय इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करेंगे। मैनेजर पाण्डेय इस समय हिन्दी में सजग आलोचकों की छीजती जा रही परंपरा में एक गहरी आशा और आश्वस्ति के रूप में उपस्थित हैं। उन्होंने न केवल आलोचना में, बल्कि सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक मोर्चों पर सक्रिय रहते हुए हिन्दी की व्यापक सजग चेतना का प्रतिनिधित्व किया है और लगातार अपनी लेखनी और शब्दों से एक नई दिशा दिखाने का काम किया है। अब तक आलोचना की उनकी अनेक पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं जिनमें ‘भक्ति आंदोलन और सूरदास का काव्य,’ ‘साहित्य और इतिहास दृष्टि,’ ‘संकट के बावजूद,’ ‘आलोचना का समाजशास्त्र,’ ‘अनभै सांचा,’ ‘आलोचना में सहमति-असहमति,’ ‘हिन्दी कविता का अतीत और वर्तमान,’ ‘भारतीय साहित्य में प्रतिरोध की परम्परा’ और ‘उपन्यास और लोकतंत्र’प्रमुख हैं।
 
कार्यक्रम में पुस्तक पर होने वाली परिचर्चा में मुख्य वक्ता के रूप में वरिष्ठ पत्रकार राजकिशोर भाग ले रहे हैं। राजकिशोर जी ने पत्रकारिता, संपादन और लेखन का एक लम्बा सफर तय किया है और अपनी प्रतिक्रियाओं से लगातार हिन्दी क्षेत्र की जनता का ध्यान आकर्षित किया है। उन्होंने वाणी प्रकाशन से प्रकाशित ‘आज के प्रश्न’ शृंखला की पुस्तकों का सम्पादन किया है जिसमें आज के समय, समाज और संस्कृति के ज्वलंत मुद्दों को समेटा गया है।
 
कार्यक्रम में भाग लेने वाले दूसरे वक्ता बजरंग बिहारी तिवारी दिल्ली विश्वविद्यालय के देशबन्धु कॉलेज में हिन्दी के प्राध्यापक हैं। उन्होंने दलित मामलों से संबंधि‍त अपने लेखन और चिंतन से एक निर्भीक आलोचक के रूप में अपनी पहचान बनाई है। भक्ति आंदोलन उनकी विशेषज्ञता का मुख्य क्षेत्र है।
 
रामेश्वर राय दिल्ली विश्वविद्यालय के हिन्दू कॉलेज में हिन्दी के प्राध्यापक हैं और अपनी अध्यापन कला से छात्र-छात्राओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं। दिनेश कुमार हिन्दी के युवा आलोचक और टिप्पणीकार हैं।


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