कवयित्री शैल कुमारी की कविता बदलते समाज के तनावों और दबावों के बीच मनुष्य की जिजीविषा और ऊर्जा को स्वर देती है। इधर उनके दो नए काव्य संग्रह 'अक्कड़-बक्कड़ बम्बे बो' तथा 'कितना पानी' आए हैं। ये काव्य संग्रह काव्य जगत में उनकी वैचारिक भावभूमि के विस्तार को प्रस्तुत करते हैं। कोई कवि अपने समय को किस तरह देखता है यह काफी हद तक उसकी काव्य संकल्पना को व्यक्त करता है।
पुरुष सत्तात्मक समाज जब-जब स्त्री के स्वरूप को नकारता है तब-तब स्त्री विमर्श का नया अध्याय शुरू हो जाता है। पुरुष सत्ता के इसी वर्चस्व को नकारते हुए शैल कुमारी का पहला काव्य संग्रह आज की नई सदी में अपने संकल्पों को लिए हुए, अपनी राह स्वयं खोजती स्त्री में आए नए बदलावों को स्वर देता है। ऐसे समय जबकि 'घर के अंदर', 'घर के बाहर', हर गली-कूचे पर बैठे है ऐसे गिरोह, जो उसकी मुस्कान पर निशाना साधे हैं।' तो भी आज की स्त्री तनिक भी विचलित नहीं होती।
ऐसे कट्टर समय में जबकि घोषित किया जा चुका हो कि 'अपने होने को साबित करना खुले आम बगावत है' तो ऐसे में बरसों से अपनी माँ से परी देश की कहानियाँ, त्याग-बलिदान की कथाएँ, मरजाद और लीक की नसीहतें सुनने वाली इन लड़कियों के चेहरों पर नई इबारतें उभर रही हैं।
संग्रह की कुछ कविताएँ मस्तिष्क में हलचल पैदाकर हृदय के एकांत में दस्तक देती हैं। कवयित्री पूरे दृढ़ और लगभग चुनौती भरे स्वर में इस पितृसत्तात्मक समाज के शोषण, अन्याय व उत्पीड़न को नकारते हुए कहती है-'कोमल नहीं है औरत.. खुरदरे हाथ, और जकड़े हुए मन, कब गँडासा उठा लेंगे कोई नहीं जानता।' कविता वही है जो मानवीय संवेदनाओं को विस्तार दे और हर हृदय से संवाद करे। अपने दूसरे काव्य संग्रह 'कितना पानी' में अपने समय पर कवयित्री की चौकन्नी निगाह है वह अपने आसपास आए बदलावों को अनदेखा नहीं करती, रुककर सोचती है, बेचैन होती और उन्हें स्वर देती है। कवयित्री जानती है उपभोक्तावादी समय में प्रेम, पहचान, खुशियां, संबंधों में तरलता और बच्चों की मासूमियत कहीं खो गई है तो ऐसे में अपनी तरल संवेदनशीलता का प्रमाण देती कवयित्री इन सबको कहीं से खोज लाती है और अपनी कविता में स्थान देती है।
आज समय और समाज का नेतृत्व वे लोग कर रहे हैं जो समय के सबसे बड़े हत्यारे हैं और अपने सुखों को तलाशती सरल जनता उन्हीं के पीछे भागती है। काव्य चातुर्य, व्यर्थ के उलझाव और जटिलता से दूर सरलता और भावों के सहज उच्छ्लन के रूप में ये कविताएँ लिखी गई हैं।
पुस्तक : अक्कड़ बक्कड़ बम्बे बो और कितना पानी कवयित्री : शैल कुमारी प्रकाशक : स्वराज प्रकाशन मूल्य : 150 रुपए