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महेंद्र तिवारी
औरंगजेब ने महाकाल मंदिर (उज्जैन, मप्र) में घी के दीये जलाए थे। जन-गण-मन... में कुल पाँच पद हैं लेकिन राष्ट्रगान के रूप में इसका पहला ही पद लिया गया है। गाँधी-नेहरू विचारधारा के विरोध के बावजूद सुभाषचंद्र बोस ने आजाद हिंद फौज में दो ब्रिगेड का नामकरण इन्हीं दो नेताओं के नाम पर किया था।हिन्दुस्तान से जुड़ी ऐसी कई रोचक और अहम जानकारियों से रूबरू कराती है 'अतुल्य भारत'। डॉ. भगवतशरण उपाध्याय और राजशेखर व्यास के लेखों से सजी इस पुस्तक में भारत की संस्कृति, सभ्यता, कला, संगीत और इतिहास आदि हर पहलू को सरल शब्दों में सुंदर तरीके से उकेरा गया है।देश को करीब से जानने की हसरत रखने वालों के लिए 'अतुल्य भारत' अच्छा विकल्प हो सकती है। महज 232 पृष्ठों में लेखकद्वय ने हर क्षेत्र को छूने की कोशिश की है। इसमें वे काफी हद तक कामयाब भी रहे हैं। किताब का हर पन्ना कहीं न कहीं शीर्षक से मेल खाता और न्याय करता नजर आता है। इसमें गाँधी की जीवन झाँकी है तो विवेकानंद का संदेश भी। अजंता-एलोरा की तारीफ है तो हिमालय का यशोगान भी। अतुल्य भारत न केवल पाठक की जिज्ञासा शांत करती है, वरन उसकी सोच और ज्ञान को विस्तार भी देती है। पहला अध्याय 'मुझे अपने देश पर गर्व है' से ही पुस्तक बाँधने में सफल हो जाती है। |
देश को करीब से जानने की हसरत रखने वालों के लिए 'अतुल्य भारत' अच्छा विकल्प हो सकती है। महज 232 पृष्ठों में लेखकद्वय ने हर क्षेत्र को छूने की कोशिश की है। इसमें वे काफी हद तक कामयाब भी रहे हैं। |
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राजशेखर व्यास ने जिस व्यापकता से माटी की वंदना की है, वाकई मन प्रमुदित हो जाता है। ऐसा प्रतीत होता है, मानो उपमाओं के अलंकरण से भारत माता की भावपूर्ण आरती उतारी जा रही हो।
'तं वेधा विदधे नूनं महाभूसमाधिना' में राष्ट्रपिता का आजादी के लिए संघर्ष है। हमारा भारतीय ज्योतिष विज्ञान में ज्योतिष को विज्ञान आधारित बताते हुए इसका महत्व प्रतिपादित किया गया है। '...और शरद जोशी का ये भारत!' में समाज में कला की आड़ में होती धन उगाही और वोटों, सामाजिक मूल्यों पर व्यंग्य है। 'कौन है हीरो' में एक नि:शक्त सैनिक की पीड़ा और उसका योगदान चित्रित किया गया है।
मध्यप्रदेश से जुड़ाव होने के कारण लेखक ने तीन-चार आलेख उज्जैन को समर्पित कर दिए हैं। बाद के पृष्ठों में अमूमन हर जगह राजशेखर व्यास अपने पिता पं. सूर्यनारायण व्यास का उल्लेख करना नहीं भूलते।
कुछ लेख जैसे 'एक स्वाभिमानी भारतीय', 'राष्ट्रप्रिय एक राष्ट्रपति' व भारत की एक प्राचीन नगरी अतिरिक्त रुप से समायोजित लगते हैं। इनके स्थान पर लेखक के ही अन्य नवीन आलेख होते तो बेहतर होता।
इस सबके बावजूद भारतीय पत्रकारिता : आजादी से पहले और बाद', भारत का अधूरा सपना-सुभाष, 'अग्नि की तरह चारों ओर फैल जाओ' और आजाद के सपनों का भारत आदि लेख वाकई श्रेष्ठ बन पड़े हैं। इन्हें पढ़कर कहा जा सकता है कि लेखक ने देश को जानने-समझने की सार्थक सौगात पाठकों को दी है।
भाषा-शैली, शब्दों के प्रवाह और विषय केंद्रित लेखन ने 'अतुल्य भारत' को अधिक रोचक बना दिया है। साहित्यप्रेमियों को यह पुस्तक एक मर्तबा अवश्य पढ़ना चाहिए।
पुस्तक : अतुल्य भारत
लेखक : डॉ. भगवतशरण उपाध्याय, राजशेखर व्यास
प्रकाशक : ज्ञानदीप प्रकाशक
कीमत : 300 रुपए