पंकज जोशी
पुरातन कथाओं को पढ़ना हमेशा ही हर पाठक के लिए एक नई सीख होती है। महाभारत काल के ययाति की कथा को लेखक ने बड़े सहज रूप से काग़ज़ों पर उतार दिया। इस कथा में उन्होंने अपनी कल्पनाओं को भी बड़ी सुंदरता से बुना है। जिस प्रकार कालिदास ने 'अभिज्ञान शाकुंतलम्' में अपनी कल्पना को जोड़कर एक अद्भुत कृति भविष्य को दी, उसी प्रकार ‘ययाति’ में भी विष्णु सखाराम खांडेकर ने कुछ पात्रों के साथ काल्पनिक अध्यायों को सजाकर एक संपूर्ण नई कथा रच दी है। विशेष यह है कि यह कथा वर्तमान स्थितियों में भी उतनी ही प्रासंगिक लगती है, जितनी इसकी रचनाकाल में रही होगी।आज के इस भौतिकतावादी युग में भी ययाति की पुरातन कथा मनुष्य जीवन के उतार-चढ़ाव और उसकी मंशाओं को सशक्त रूप से स्पष्ट करती है। लेखक के शब्दों में मनुष्य जीवनभर अपने सुख के लिए हरसंभव प्रयास करता है, किंतु जीवन के कालचक्र के जीवन की अंधी दौड़ में हर सुख व विलास पाने की जद्दोजहद में जुटा हुआ था। विष्णुजी ने ययाति को केंद्र में रखकर मनुष्य की इन्हीं सब दशाओं और उसके परिणामों को चित्रित करने व उसे एक सीख के तौर पर प्रस्तुत करने के मन से यह कृति साहित्य जगत को दी है। वे अपनी कृति के माध्यम से हर स्थिति में मनुष्य की संभावित मनोवृत्ति को सफलतापूर्वक पाठक तक पहुँचाने की चेष्टा करते हैं।आज के इस भौतिकतावादी युग में भी ययाति की पुरातन कथा मनुष्य जीवन के उतार-चढ़ाव और उसकी मंशाओं को सशक्त रूप से स्पष्ट करती है। लेखक के शब्दों में मनुष्य जीवनभर अपने सुख के लिए हरसंभव प्रयास करता है, किंतु जीवन के कालचक्र और परिस्थितिवश वह कब किस राह पर आगे बढ़ने लगता है, यह पढ़ना रोचक लगता है। आप अपने धर्म के मार्ग पर कब तक चल सकते हैं? क्या परिस्थितियाँ वाकई मनुष्य की अच्छाइयों को समाप्त कर सकती है? अपने आदर्शों, मूल्यों पर इंसान कहाँ तक अडिग खड़ा रह सकता है? क्या हमारा स्वार्थ तथा सुख ही सर्वोच्च है? स्वयं के मन, वचन और कर्म पर नियंत्रण होना संभव और स्वाभाविक है या यह मात्र एक कोरी कल्पना ही है? ययाति से जुड़ते ही पाठक इसी ताने-बाने में बँध जाता है।पाठक इस उपन्यास के किसी भी किरदार को अपने जीवन में पा सकता है। कभी वह खुद को ययाति समझ बैठता है, तो कभी शर्मिष्ठा के गुणों को खुद में ढूँढने का प्रयास करता है। देवयानी की कुटिलता और चंचलता पर वह कभी मोहित होता है, तो कभी कच, यति और राजमाता जैसे पात्रों की मानसिकता में उलझकर रह जाता है। ययाति का हर पात्र अपने प्रेम, विश्वास, आदर्श, धर्म, आनंद, स्वार्थ व स्वाभिमान के लिए एक अलग मंच पर खड़ा मिलता है, एक अलग ऊँचाई पर। |
आज के इस भौतिकतावादी युग में भी ययाति की पुरातन कथा मनुष्य जीवन के उतार-चढ़ाव और उसकी मंशाओं को सशक्त रूप से स्पष्ट करती है। लेखक के शब्दों में मनुष्य जीवनभर अपने सुख के लिए हरसंभव प्रयास करता है, किंतु जीवन के कालचक्र .... |
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जिस प्रकार एक गुलदस्ते के फूल अलग-अलग रंग लिए अलग-अलग आकार के होते हैं, पर वे सब उस एक गुलदस्ते में एक ही महक देते हैं, ठीक उसी प्रकार इस ‘ययाति’ के हर पात्र का रंग अलग है, अनुभव भिन्न है, जीवन पृथक है, किंतु फिर भी ये सभी पाठक के मन पर अलग छाप छोड़ते हुए भी पाठक को मनुष्य जीवन के धर्म-कर्म के यथार्थ से परिचित कराते हैं।
विष्णुजी ने अपना पूरा उपन्यास तीन प्रमुख पात्रों पर केंद्रित रखा है। हस्तिनापुर के महाराज ययाति, उनकी पत्नी शुक्राचार्य-कन्या देवयानी और परिस्थितिवश राजकन्या से दासी बनी शर्मिष्ठा। ये तीनों पात्र एक-दूसरे से गहरे अंतर्संबंध के चलते कथा को अपने-अपने शब्दों में आगे बढ़ाते हैं। इनके अतिरिक्त आरंभ में कच, कुछ समय बाद राजमाता, ययाति के मित्र माधव और यति भी इस कथा को दृढ़ता प्रदान करते हैं।
प्रमुख पात्र अपने पक्ष सुनाते हैं, किंतु कच, यति और राजमाता जैसे पात्र अपना विशेष महत्व रखते हैं। इन्हें कथा में अधिक स्थान नहीं है किंतु यही वे पात्र हैं, जो कथा की गूढ़ बातों को सामने लेकर आते हैं। इनकी बातों से पाठक का अंतर्मन निश्चित ही प्रभावित होता है।
ययाति एवं देवयानी अपने कर्मों के माध्यम से स्वार्थ को अत्यंत सहजता से परिभाषित करने में सक्षम हैं। लेखक ने अपनी रचनाधर्मिता के कौशल से इसमें कुटिलता को भी स्वच्छ रूप में रखा है। पाठक अपने स्तर पर स्वार्थ और कुटिलता को समझने का प्रयास करने लगता है। कथा के सार में विष्णुजी स्वयं के साथ-साथ परिवार, प्रजा और समाज के हित को प्रमुखता देने का संदेश देते हैं। इन्हें नज़रअंदाज़ करने के परिणामों को भी वे बखूबी स्पष्ट करते हैं।
समाज प्राचीनकाल से अपने संस्कारों और रीतियों पर चलता आ रहा है। कई प्राचीन कथाएँ मानव बुद्धि के विकास के लिए मौजूद हैं। मनुष्य उन्हें सुनते हैं, किंतु उनसे सीख नहीं ले पाते। स्वयं की चोट पर दवा लगने पर ही उस चोट का आभास मनुष्य कर पाता है। ययाति अपनी कहानी इन्हीं शब्दों से आरंभ कर उसे अंतिम सत्य तक ले जाता है। अंत के सार वाक्य ‘सुख में दु:ख में हमेशा एक बात गाँठ बाँध लो, काम और धर्म ही महान पुरुषार्थ हैं, किंतु इनमें स्वच्छंदता आने पर सब नाश हो जाता है। धर्म ही इन्हें नियंत्रित कर सकता है।’ से संपूर्ण कथा की ऊँच-नीच से क्षुब्ध पाठक का मन शांत होता है।
मोरेश्वर तपस्वीजी के अनुवाद में मूलत: मराठी कृति होने का कोई पुट नहीं दिखता है। यांत्रिक और भौतिक समृद्धि से युक्त आधुनिक जीवन के प्राचीन सत्य को उजागर करने वाली पुस्तक ‘ययाति’ को पाठक भी 150 रुपए के मूल्य में अनुभव करना सहर्ष स्वीकार करेगा। इस उपन्यास को ज्ञानपीठ व साहित्य अकादमी पुरस्कार मिलना भी पाठकों की इसमें रुचि का एक अतिरिक्त विषय माना जाएगा।
पुस्तक : ययाति
लेखक : विष्णु सखाराम खांडेकर
अनुवादक : मोरेश्वर तपस्वी
प्रकाशन : राजपाल एंड सन्स, नई दिल्ली
मूल्य : 150 रुपए