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'इसरो' से 'बदलती जिंदगी'

पुस्तक समीक्षा

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प्रदीप कुमार
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भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान कार्यक्रम (इसरो) की हाल की कामयाबियों के चलते भारत अंतरिक्ष अनुसंधान के मामले में दुनिया के गिने-चुने देशों में शामिल है। चाहे वह अंतरिक्ष के अपने उपग्रहों को स्थापित करने की बात हो या फिर दूसरे देशों के उपग्रह को बाजार के मुकाबले सस्ते दामों में अंतरिक्ष तक ले जाना हो, इसरो का काम उम्मीद से बढ़कर साबित हुआ है लेकिन क्या इसरो के कामकाज का दायरा महज इतने तक सीमित है?

इसरो कैसे आम भारतीयों के जीवन को बेहतर बनाता है इसका दस्तावेज है वरिष्ठ नौकरशाह एस.के. दास की किताब 'टचिंग लाइर्व्स'। पेंगुइन की इस किताब को यात्रा बुक्स ने कहीं ज्यादा विस्तृत पाठक वर्ग के सामने में 'बदलती जिंदगी' शीर्षक से पेश किया है। दरअसल, एस.के. दास ने अपनी आँखों से देश के दूरदराज के इलाकों में इसरो के कार्यक्रम से होने वाले अकल्पनीय बदलावों को देखा और उसका स्थानीय समाज पर पड़ने वाले असर को महसूस किया और फिर अपनी लेखनी से एक दिलचस्प रिपोर्ताजनुमा किताब लिख डाली।

पुस्तक में कुल तेरह अध्याय हैं जो देश के 13 अलग-अलग इलाकों में इसरो के कार्यक्रमों से होने वाले विभिन्न बदलावों को रेखांकित करते हैं। पुस्तक पढ़ते हुए दो चीजें तो अपने आप जुड़ती चली जाती हैं। हर इलाके का स्केच एस.के. दास ने बखूबी खिंचा है, लिहाजा अपने भारत के अलग-अलग इलाकों के बारे में आपको जानने का मौका मिलता है।

इलाके की मुश्किलें, वहाँ की खासियतें, लोगों के रहन-सहन ये सब किस्सागोई के अंदाज में एस.के. दास बताने में कामयाब रहे हैं। इसके अलावा व्यवस्थागत खामियों का सच भी आपको दिखेगा लेकिन अवराधों से इसरो के कार्यक्रम से जुड़े लोग कैसे निपटते हैं यह जानकर एक सकारात्मक ऊर्जा हमारे आपके अंदर भी समाहित होती है।

एक दिलचस्प बात यह पता चलती है कि इसरो का निर्माण एक गिरजाघर में किया गया। इसरो के विकास और उसके फैलते दायरे को समझाने के बाद एस.के. दास शुरुआत करते हैं इंदौर के समीप पड़ने वाले जिले झाबुआ से। झाबुआ में इसरो ने लोगों को शिक्षित बनाने के लिए अलीराजपुर गाँव में टीवी सेट स्थापित किए थे। टीवी प्रसारण के जरिए लोगों में शिक्षा और जागरूकता के स्तर को सुधारने की कोशिश ने कैसे लोगों के जीवन को बदलकर रख दिया इसका दिलचस्प खाका एस.के. दास खींचने में कामयाब होते हैं।

दरअसल, इसरो अपने उपग्रहों की मदद से देश के दूर दराज इलाकों के गरीब-गुरबों के मुश्किलों का हल भी तलाशता है। मसलन उड़ीसा के कोरापुट जिले को ही लें जो देश के सबसे निर्धन इलाकों में है। यहाँ पानी का घोर संकट है। लोग पीने के पानी की तलाश में 5-5 किलोमीटर दूर तक जाते हैं।

जमीन के नीचे कहाँ पानी हो सकता है इसको उपग्रह की मदद से तलाश कर इसरो ने यहाँ कई जगह पानी के ट्यूबवेल लगाए हैं। जिसके चलते इसरो के कर्मचारियों को यहाँ की औरतें भगवान समझती हैं। अपने दौरों के लिए एस.के. दास कर्नाटक के चमराजनगर भी पहुँचते हैं।

चमराजनगर वीरप्पन के ठिकानों में एक रहा था, जहाँ का जनजीवन अरसे तक दहशत के साए में लिपटा रहा। इसरो ने यहाँ के बच्चों को टीवी कार्यक्रमों के जरिए शिक्षित करने का बीड़ा उठाया हुआ है। ऐसे ही समुद्रतटीय इलाकों में तूफान की सूचना लोगों को इसरो की मदद से ही मिल पाती है। लेखक ने लक्षद्वीप में मछुआरों की मदद वाले इसरो कार्यक्रम का भी दौरा किया है।

सुदूर त्रिपुरा में असाध्य बीमारियों के मरीजों को टेलीमेडिसिन के जरिए कोलकाता और बेंगलुरु में बैठे चिकित्सकों की सुविधा मिल जाती है। एस.के. दास ने गढ़वाल की हिमालय पर्वत श्रृंखलाओं में तीर्थयात्रियों की मदद करने वाला कार्यक्रम रहा हो या फिर इसरो प्रमुख माधवन नायर का बनाया खास कार्यक्रम स्वचालित मौसम केंद्र हो या फिर उत्तर प्रदेश के 28 जिलों में एक लाख नब्बे हजार हेक्टेयर की सोडियम से प्रभावित भूमि पर, जो सालोसाल से बंजर बनी थी, और जिसे इसरो ने खेती योग्य बनाया, सबकी सार्थकता को मौके पर जाकर अपने नजरिए से मापते परखते हैं। सरकारी पद पर रहे दास अपने इस किताब में स्थानीय सरकारी तंत्र की खामियों को भी बताने से नहीं चूकते हैं।

दरअसल, हिंदी में इस तरह की पुस्तकों का अभाव रहा है, कई बार किताबें आती भी हैं तो इतनी दुरूह और वैज्ञानिक शब्दावलियों से भरी होती हैं कि उसमें आम पाठक का जुड़ाव नहीं हो पाता है लेकिन 'बदलती जिंदगी' इनमें अपवाद है। इसरो के कार्यपद्धति से लेकर उसकी कायाबियों के किस्से को एस.के. दास ने आम लोगों के जरिए उनकी ही बोलचाल की भाषा में पेश किया है। अनूदित होने के बाद भी पुस्तक में कथ्य प्रवाह बना हुआ है।

पुस्तक : बदलती जिंदगी
लेखक : एस.के. दास
प्रकाशक : पेंगुइन बुक्स, यात्रा बुक्स
मूल्य : 250 रुपए

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