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सूर्यकांत नागर
कलाधर्मी स्वतंत्र कुमार ओझा पर केंद्रित पुस्तक 'वह दीप अकेला स्नेह भरा' से गुजरने पर पता चलता है कि श्री ओझा विलक्षण प्रतिभा के धनी हैं। रूपांकन कलाओं के क्षेत्र में उनका अवदान महत्वपूर्ण है। आवाज के धनी, श्रेष्ठ गायक-वादक, नाट्यकर्मी, दृष्टि संपन्न निर्देशक, चिंतक और लेखक श्री ओझा ने अपने कर्म से अपनी पहचान बनाई, रेडियो जैसे सरकारी माध्यम में कोई चार दशक सेवारत रहकर।
तीन खंडों में विभाजित इस किताब के प्रथम खंड में श्री ओझा रचित आलेख हैं। आलेखों में एक ओर कला संबंधी उनके विचारों का पता चलता है, वहींदूसरी ओर देश के शीर्षस्थ संगीतकारों से उनके संपर्क का। दूसरे खंड में प्रभु जोशी, जीवनसिंह ठाकुर, कृष्णकांत दुबे और हेमंत उपाध्याय के श्री ओझा के व्यक्तित्व और कृतित्व पर विचारपरक लेख हैं। सभी का मत है कि सुगम संगीत और नाटक के क्षेत्र में तो उनकायोगदान महत्वपूर्ण है ही, उनकी खनकती आवाज का भी कोई विकल्प नहीं है।
रेडियो नाटक के क्षेत्र में भी वे प्रयोगधर्मी निदेशक सिद्ध हुए। स्वयं श्री ओझा के अनुसार खोजने का नाम ही कला है। किताब के अंतिम खंड में श्री ओझा की आकाशवाणी, दूरदर्शन आदि की प्रस्तुतियों का लेखा-जोखा है। इसमें उनकी प्रस्तुतियों के डिस्क रिकार्ड, कैसेट, एलबम आदि शामिल हैं। इस पुस्तक को पढ़ना एक सुखद अनुभूति से गुजरना है। पुस्तक का संपादन श्री कृष्णकांत दुबे ने किया है।
* पुस्तक : वह दीप अकेला स्नेह भरा
* लेखक : कृष्णकांत दुबे
* प्रकाशक : सुखमणि प्रकाशन, 109, श्रीनगर मेनरोड, इंदौर
* मूल्य : रु. 80