'एक जगह साथ' (कविता संग्रह) में कवि विश्वनाथ कदम ने आज की भागदौड़ भरी जिंदगी की जद्दोजहद, अतीत और वर्तमान, मानव समाज में हो रहे परिवर्तन, पारिवारिक सामंजस्य की कमी, भ्रष्टाचार, बाजारवाद एवं नारी की दुर्दशा को बड़े ही मार्मिक एवं सूझबूझ भरे अंदाज में प्रस्तुत किया है। यह निश्चित तौर पर पठनीय है।
साथ ही पाठकों को झकझोरने एवं जिंदगी के प्रति विचारने को मजबूर करता है। 'मित्र के आपातकाल' शीर्षक से लिखी कविता में बिगड़ते संबंधों एवं स्वार्थी दुनिया के मुखौटे का चित्रांकन मतलबी मित्रों के रूप में सटीक ढंग से किया है।
'उसने कहा' कविता में जहां व्यक्ति के नैतिक पतन, ह्रदय परिवर्तन एवं जीवन का मूल्यांकन करने तथा स्वविवेक से जीने की ओर प्रेरित किया गया है। वहीं 'बिना धुरी के' कविता में सच्चाई से कोसों दूर, दिखावटीपन, झूठी वाहवाही लूटने, अपनी जमीन छोड़कर आकाश में उड़ने की अंधी चाह में व्यक्ति की भटकन को प्रस्तुत किया है।
'बाजार' कविता बढ़ते बाजारवाद और कर्जदार, भौतिक वस्तुओं के प्रति आकर्षण और कर्जदारों की पीड़ा का मार्मिक चित्रण है।
केंचुआ- लिखना चाहता हूं, एक कवि की लेखन के प्रति व्यथा का सजीव एवं ज्वलंत चित्रण है कविता का आरंभ एवं अंत, जो ना-ना कहते हुए भी बहुत कुछ कह जाता है और सिद्व करता है कि यह पीड़ा केवल उसकी नहीं, बल्कि पूरे समाज की है।
पिता के नाम- कविता में स्वाभिमानी जीवन जीते व्यक्ति बुढ़ापे की व्यथा का करुण व मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया है। दुनियादार शीर्षक से लिखी कविता कवि ने एक पढे-लिखे व्यक्ति की मनोदशा को व्यंग्यात्मक रूप में समाज के सामने रखने का सराहनीय प्रयास किया है। कविता रोचक और ज्ञानवर्द्वक होने से पठनीय बन पड़ी है।
मोठी आई- कविता परिवार को समूह में रहने की प्रेरणा देती हैं। कुल मिलाकर एक सरल सहज काव्य संग्रह 'एक जगह साथ' कई रंगों की कविताओं का सुख देता है।
पुस्तक - एक जगह साथ (कविता संग्रह) लेखक - विश्वनाथ कदम