महेंद्र तिवारी
सत्ता सर्वकालिक रूप से शक्ति की परिचायक रही है। कभी सत्य का आग्रह इसकी प्राप्ति का माध्यम बना तो कभी विधि विरूद्ध आचरण ने शासकों की इससे शत्रुता करवाई। राजतंत्र से, तानाशाही अथवा जनशक्ति। शासन की हर प्रणाली में इसे लेकर संघर्ष समय-समय पर सामने आते रहे हैं।'
साध्वी की सत्ता कथा' भी ऐसे ही एक राजनीतिक संघर्ष से रूबरू कराती है। यह अतीत के अस्पर्शी कालखंड से निकली एक महिला संत की कहानी है। वह संत जो अपने आध्यात्मिक आलोक के साथ पूजा की अधूरी और गहराई में दबी अच्छे शासन की इच्छाओं को पूरा करने के लिए सियासी रण में कूद पड़ती हैं। वे कूच करती हैं कठिनाइयों से अटी पड़ी ऐसी कंटकपूर्ण राह की ओर, जहाँ षड्यंत्र, स्वार्थ, पाखंड और असत्य कदम-कदम पर मुँह बाएँ खड़े हैं।वास्तव में यह सत्य की साक्षात प्रतिमूर्ति बनी साध्वी की ऐसी कहानी है, जिसमें सत्ता की अभिलिप्सा में डूबे राजनयिकों की नैतिक क्षीणता का चित्रण है। पुस्तक बताती है कि सद्मार्गी विचारधारा और महान विभूति के प्रति गणतंत्र की श्रद्धा का सुमेरू कितना ऊँचा हो सकता है।उन्नीस अध्यायों में विभक्त विजय मनोहर तिवारी की यह कृति शुद्ध रूप से समय के कैनवास पर राजनीति की सच्ची आकृति उकेरती है। लेखक ने अपने श्रेष्ठ प्रस्तुतिकरण के बूते कथा की तात्कालिकता को बरकरार रखा है।उच्चस्तरीय भाषा शैली और उम्दा शब्दों का चयन रचना की जान है। लेखक ने कहानी को सफा-दर-सफा इस तरह संजोया है कि सारे पात्र आँखों के सामने जीवंत मंचन नजर आते हैं। पुस्तक रोचकता के सेतु को दोनों सिरों से थामे रखती है। |
'साध्वी की सत्ता कथा' भी ऐसे ही एक राजनीतिक संघर्ष से रूबरू कराती है। यह अतीत के अस्पर्शी कालखंड से निकली एक महिला संत की कहानी है। वह संत जो अपने आध्यात्मिक आलोक के साथ पूजा की ... |
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यद्यपि लेखक कहानी की शुरुआत में ही स्पष्ट कर देते हैं कि उनका यह साहित्यिक सृजन आज का नहीं है। इसका मौजूदा दौर से कहीं कोई संबंध नहीं है, तथापि घटनाक्रम जैसे-जैसे आगे बढ़ता है, कहानी वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य के एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व से मेल खाती दिखाई देती है।
कहीं-कहीं तो ऐसा प्रतीत होता है कि लेखक ने इसी खास चेहरे को ध्यान में रखकर पुस्तक को गढ़ा है। राजनीति में रुचि रखने वाले पाठकों के लिए 'साध्वी की सत्ता कथा' बेहतर विकल्प हो सकती है।
उपन्यास : एक साध्वी की सत्ता कथा
लेखक : विजय मनोहर तिवारी
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
मूल्य : 150 रु.