नृपेन्द्र गुप्ता ..
एक परिवार में केवल व्यक्ति ही नहीं रहते, उनकी भावनाएँ, विचार और व्यक्तिगत निष्ठाएँ भी रहती हैं। गुरुचरण दास ने अपने उपन्यास 'कहानी एक परिवार की' में इन सब बातों को मसालों की तरह भरपूर उपयोग किया है। कहानी में एक पंजाबी परिवार की कई पीढ़ियों की भावनाओं और घटनाओं को अद्भुत ढंग से एक माला में पिरोया गया है। गुरुचरण दास का यह उपन्यास तीन भागों में बँटा है। तीनों भाग एक-दूसरे से जुड़कर भी अलग है। इसका पहला भाग कहानी की जान है। आजादी के बाद पाकिस्तान में शामिल लायलपुर में रह रहे एक संभ्रात हिन्दू परिवार पर आधारित यह भाग पाठक को बरबस ही उस परिवार से जोड़ देता है। इसमें कभी खुशी कभी गम की तर्ज पर उस परिवार के साथ होने वाली प्रत्येक घटना पर विस्तार से प्रकाश डाला है।यह परिवार अभिन्न भारत का ही हिस्सा है, इस बात को ध्यान में रखते हुए कहानी के एक पात्र करण को स्वतंत्रता आंदोलन से भी जोड़ा गया है। लायलपुर के मशहूर वकील और परिवार के मुखिया दादा दीवानचंद (बाऊजी) की अंग्रेजपरस्ती, करण से लगाव और वैचारिक मतभेद, बँटवारा आदि घटनाओं के कारण यह भाग बहुत उतार-चढ़ाव भरा है। बाऊजी, भाबो, तारा, सेवाराम, और गुरुजी की बातें और देशराज के खत देश में उस समय की हलचल बयान करने के साथ ही पाठकों के मन पर गहरा प्रभाव छोड़ती है। |
.. भारत-पाक बँटवारे के प्रभाव को लेखक बहुत संजीदगी से पेश किया है। कहानी के पात्र एक तरफ नेहरू, गाँधी और माउंटबेटन |
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भारत-पाक बँटवारे के प्रभाव को लेखक बहुत संजीदगी से पेश किया है। कहानी के पात्र एक तरफ नेहरू, गाँधी और माउंटबेटन को इस दर्दनाक घटना का दोष देते हैं,वहीं उनके ही मन में इन नेताओं के प्रति संवेदना का भाव भी उपजता है। हामीद और अनीस दोनों ही कहानी में इत्र सी खुशबू घोलते प्रतीत होते हैं, वे इस परिवार के लिए तारणहार की भूमिका निभाते हैं।
यह भाग वैचारिक रूप से बहुत सशक्त है, इसमें हिन्दु-मुस्लिम मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की गई है। साथ ही महिलाओं द्वारा नौकरी, आध्यात्म आदि मुद्दों पर भी प्रकाश डाला गया है। अर्जुन के जन्म और बँटवारे की संभावना दोनों घटनाएँ कहानी में कुछ नया होने की उम्मीद को बनाए रखती है।
कहानी का दूसरा भाग बँटवारे की त्रासदी के बाद का है। यह भाग पूरी तरह से तारा और उसके परिवार पर केंद्रित है। उस दौर में शिमला में होने वाली पार्टियों और धनाढ्य वर्ग के लोगों में होने वाली बातचीत को बेहतर ढंग से बताया है। यहाँ पहले भाग में देश की स्वतंत्रता के लिए लड़ने वाले करण का पतन घोर आश्चर्य उत्पन्न करता है। करण और प्रीति के बीच धीरे-धीरे बढ़ती दोस्ती पाठक को पुस्तक से जोड़ती है। प्रीति के जाने के बाद अकेले पड़े अर्जुन को जिस तरह बाऊजी सहारा देते हैं, वह परिवार के महत्व को बताता है।
बाऊजी और भाबो इस भाग में पीछे कहीं छूट जाते हैं। जब भी उनका जिक्र आता है पाठकों को लयालपुर याद आ जाता है।
इसका तीसरा और अंतिम भाग का केंद्र अर्जुन है। वह जिस तेजी से सफलता की सीढ़ी चढ़ते हुए बाजार में अपने उत्पाद को लोकप्रिय बना देता है। यहाँ उसकी मुलाकात फिर प्रीति से होती है, जिसे करण छोड़ चुका है। दोनों में फिर प्यार हो जाता है और वे शादी भी कर लेते है। बाऊजी, भाबो, सेवाराम, तारा आदि सभी कड़ी को उनके मुकाम तक पहुँचाने में लेखक सफल रहा है। यह भाग एक पीढ़ी द्वारा दूसरी पीढ़ी को परिवार की बागडौर सौंपने की कहानी है।
गुरुचरण दास ने कहानी में बढ़ी खूबसूरती से परिवार के महत्व को बयान किया है। देश में घट रही घटनाओं को लेखक भूला नहीं है बल्कि उसे परिवार से जोड़कर उपन्यास को जीवंत बना दिया है। परिवार की प्रगति और देश का विकास दोनों यहाँ कदमताल करते नजर आते है। कहानी संदेश देती है कि यदि देश और परिवार दोनों को ही कुशल नेतृत्व मिले तो देश का भाग्योदय और अच्छे परिवार का निर्माण हो सकता है।
नरेंद्र सैनी ने हिंदी में कहानी को बेहतर ढंग से प्रस्तुत किया है। वे लेखक की बात को पाठकों तक उसी रूप में पहुँचाने में सफल रहे हैं। भाषा का प्रवाह, स्तरीय शब्दावली और बेहतर प्रस्तुति कहानी से पाठकों को जोड़े रखती है। गुरुचरण दास का उपन्यास भले ही खत्म हो गया हो मगर अर्जुन की कहानी अभी जारी है- एक खुशहाल और अच्छे परिवार की कहानी।
उपन्यास : कहानी एक परिवार की
लेखक : गुरुचरण दास
अनुवादक : नरेंद्र सैनी
कीमत : 225 रु
प्रकाशक : पेंगुइन बुक्स, नई दिल्ली
प्रकाशक : पेंगुइन बुक्स