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कुछ मिश्री कुछ नीम : काव्य-संग्रह

कागज पर मुक्तक बोलते हैं

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हमें फॉलो करें कुछ मिश्री कुछ नीम : काव्य-संग्रह
स्वाति शैवाल
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भावनाओं और विचारों के नन्हे-नन्हे अंश... अपने आप में एक कहानी-सी कहते...। कभी व्यवस्थाओं के खिलाफ आवाज उठाते तो कभी धीमे से एक नेहभरी आँच जगा जाते...। कभी होली के रंग बिखेरते तो कभी आषाढ़ में बादलों के न बरसने की शिकायत करते...। चन्द्रसेन विराट के मुक्तकों के इस नए संकलन में ऐसे कई मुक्तक आप तक अपनी बात पहुँचाने को बेताब नजर आते हैं।

संकलन का शीर्षक है-'कुछ मिश्री कुछ नीम।' शीर्षक की ही तर्ज पर संकलन को दो भागों में बाँटा गया है। पहला भाग मिश्री पगा है तो दूसरा नीम की तरह थोड़ा कड़वा, लेकिन पते की बात कहता हुआ प्रतीत होता है। यहाँ समाज में नारीत्व के बदलते परिमाण तथा स्त्रीत्व के ठोस, सकारात्मक एवं मजबूत पहलुओं की भी बात की गई है और प्रेम के विभिन्न रंगों को भी शब्द दिए गए हैं।

हिन्दी गीत तथा कविता के क्षेत्र में चन्द्रसेन विराट अनजाना नाम नहीं। यूँ उन्होंने और भी कई विधाओं में रचना सृजन किया है, लेकिन कविताओं और गीतों को कागज पर उकेरने के मामले में वे विशेषतौर पर जाने जाते हैं। संकलन में स्थित मुक्तक स्वयं इसकी बानगी है। देखिए-

शब्द के तापघर में रहते हैं
दर्द आदर के साथ सहते हैं
छटपटाते हैं हम कई दिन तक
तब कहीं एक शेर कहते हैं।

ठीक इसी प्रकार बारिश से सूख रही धरती और कंठों की बात करते हुए वे कहते हैं-

प्यासे कंठों को परस जा पानी
कबसे रूठा है, हरस जा पानी
सूखा आषाढ़ न जाए अब तो
खूब जम-जम के बरस जा पानी

उक्त दोनों ही मुक्तक मिश्री वाले खाते के हैं, जो प्रेम के उछाह से लेकर विछोह की उदासी तक की कहानी कहते हैं। इसके बाद नीम वाले हिस्से में आते हैं कुछ कटाक्ष और तीखे तेवर, जो दुनिया के असली चेहरे को दिखाते हैं और दुनियावी किस्सों की असलियत बखान करते हैं। बानगी देखिए-

हमको खतरे से सावधान करे
हर समस्या का हल प्रदान करे
कोई धन्वंतरि बने अब तो
देश के रोग का निदान करे

बढ़ते शहर और उजड़ते जंगलों के बीच भागते इंसान की भी व्यथा सुनिए-

रोजमर्रा के सपन बुनता है
शहरी, पैसे का गणित गुनता है
कूक कोयल की कहाँ शहरों में
चीख हॉर्नों की विवश सुनता है

नारी की प्रशंसा में कहा मुक्तक भी देखिए-

अपनी निजता की खुद विधायक है
वह हुनरमंद और लायक है
आज जीवन के मंच पर नारी
नायिका नहीं है, नायक है

कुल मिलाकर ये मुक्तक इतनी गहराई भरी बात कह जाते हैं कि पूरी कविता पर भारी पड़ जाते हैं। यही इनकी खूबसूरती है।


पुस्तक- कुछ मिश्री कुछ नीम
लेखक- चन्द्रसेन विराट
प्रकाशक- समान्तर पब्लिकेशन, तराना (उज्जैन)
मूल्य- 250 रु.

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