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गाँधी के मूल्यों का सहज प्रतिबिंब

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गाँधी एक व्यक्ति नहीं विचार है। आखिर क्या था उस व्यक्ति में, जिसे पूरे संसार ने महात्मा के रूप में स्वीकार किया। वह व्यक्ति जिसके बारे में यह कहा गया कि वह पूर्णतः मौलिक क्रांतिकारी थे और जिन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ने की एक कठोर शैली ढूँढ़ निकाली थी, जिसकी मौलिकता की पूरी दुनिया में कोई मिसाल नहीं है।

सच पूछें तो गाँधीजी भारतीयता के प्रतीक थे क्योंकि उन्होंने आम आदमी की आत्मनिर्भरता, सरलता, नैतिकता, कर्तव्यनिष्ठा, सादगी और सहजता को अपने जीवन में उतारने की कोशिश की, उसे किसी पर आदर्श बनाकर थोपा नहीं । इसी बात ने गाँधीजी को एक व्यक्ति से ऊपर उठाकर एक विचार बना दिया। भले ही वे आज हमारे बीच मौजूद नहीं हैं, लेकिन उनके विचार आज भी कायम हैं।

हम जब भी ऐतिहासिक दृष्टि से किसी व्यक्ति के बारे में बातचीत करते हैं तो हमें उस व्यक्ति के जीवन काल की परिस्थितियों का भान होना बहुत आवश्यक है। आज आजादी के 60 वर्ष बाद बेशक शहरों में चमक-दमक बढ़ गई है, लेकिन अपराधों में होने वाली बढ़ोतरी, समाज में पनपने वाला असंतोष, लगातार घटित होने वाली आतंकवाद की घटनाएँ, गिरते हुए सामाजिक मूल्य और निरंतर नैतिक पतन की इस प्रक्रिया में फिर से हमें गाँधीजी की ओर ही देखना होगा। उनके विचारों को अपनाना होगा, क्योंकि आज का भौतिकवादी युग, गाँधीगिरी युग ही है, लेकिन आवश्यकता है तो सिर्फ गाँधीजी के बताए गए मार्ग पर चलने की ।

इसका ताजा उदाहरण पिछले दिनों आई फिल्म 'लगे रहो मुन्नाभाई' है। इस फिल्म में गाँधीजी के आदर्श को आम आदमी की जिंदगी में उतारा गया है उसे केवल आदर्श बनाकर थोपा नहीं गया। अगर आप भी उनके विचारों को अपने जीवन में उतारेंगे तो आपको समस्याओं का समाधान आसानीसे मिल जाएगा।

गाँधीजी के उच्च विचारों को आम आदमी तक पहुँॅचाने के लिए गाँधी और गाँधीगिरी पुस्तक प्रस्तुत है। जब आप इस पुस्तक से गुजरेंगे तो आपको महसूस होगा कि गाँधी जैसे विराट व्यक्तित्व पर यदि हजार पृष्ठों की पुस्तक भी लिखी जाए तो भी उनके व्यक्तित्व की केवल एक ही झलक मिल सकती है। इस पुस्तक में गाँधी के जीवन सागर में से कुछ बूँदें निकालने की कोशिश की है।

पुस्तक : गाँधी और गाँधीगिरी
प्रकाशन : डायमंड बुक्स, एक्स-30 ओखला इंडस्ट्रियल एरिया, फेज-2, नई दिल्ली
लेखक : प्रवीण शुक्ल
पेपर बैक संस्करण : 95 रुपए
हार्ड बाउंड संस्करण : 195 रुपए

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