वेद अपौरुषेय है। माना जाता है कि किसी मनुष्य ने इसकी रचना नहीं की है। इनकी उत्पत्ति ईश्वरीय सत्ता की देन है। दिव्यात्मा सिद्ध ऋषियों की देन है।सृष्टि के इन प्रथम मुद्रित ग्रंथों की उपादेयता इसलिए भी विलक्षण है क्योंकि ये हमारी संस्कृति का सशक्त आधार हैं। हमारी आचरण संहिता हैं। वेद चार हैं यह हम सभी को ज्ञात है, किंतु इन वेदों के अंगों-उपांगों, स्मृति ग्रंथों और पुराणों की जानकारी हममें से कितने 'प्रबुद्ध' कहे जाने वाले व्यक्तियों को है? बेहद न्यायप्रियता से उत्तर दिया जाए तो हम रिक्त, निरुत्तर, शब्दहीन और पता नहीं क्या-क्या हो जाएँगे। प्रश्न यह भी उठता है कि अगर वर्तमान या आने वाली पीढ़ी को यह ज्ञान नहीं है तो इसकी दोषी वह पीढ़ी भी कही जाएगी जिसने इस अनमोल विरासत को सहजतम तरीके से विस्तारित करने की चेष्टा नहीं की। किंतु महू स्नातकोत्तर महाविद्यालय से वाणिज्य के सेवानिवृत्त प्रोफेसर डॉ. रामकृष्ण सिंगी ने एक पूरी पीढ़ी को इस आरोप से बचा लिया। हाल ही में साहित्य संसार में उनकी पुस्तक 'चारों वेद' ने अपनी 'नाजुक' आहट से 'प्रभावी' उपस्थिति दर्ज कराई है। नाजुक इसलिए कि मात्र 29 पृष्ठ की इस सलोनी पुस्तक को हाथ में लेकर सुकून मिलता है और प्रभावी इसलिए कि इसके भीतर समाए अथाह 'ज्ञान रत्न' हमें हमारी ही संस्कृति की बहुमूल्य जानकारी से समृद्ध कर देते हैं। |
वेद चार हैं यह हम सभी को ज्ञात है, किंतु इन वेदों के अंगों-उपांगों, स्मृति ग्रंथों और पुराणों की जानकारी हममें से कितने 'प्रबुद्ध' कहे जाने वाले व्यक्तियों को है? |
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बेहद सहज और स्पष्ट अंदाज में पुस्तक पाठक को उस वैदिक काल में ले जाती है जब वेदों की रचना समाज को सुगठित स्वरूप देने के उद्देश्य से की गई थी। तब जब 16 कलाओं से संपन्न मानव को संस्कारित और सुविज्ञ बनाने का प्रण निर्धारित किया गया था।
ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद के भीतर हमारी संस्कृति और हमारी विराट धरोहर का बहुमूल्य खजाना छिपा है।
पुस्तक बेहद सरलता से प्रथम पृष्ठ पर ही बता देती है कि चार वेदों के अंतर्गत उनके उपवेद आते हैं, जिनमें हमारे पारंपरिक ज्ञान की अनमोल संपदा वर्णित है। जैसे -ऋग्वेद का आयुर्वेद, यजुर्वेद का धनुर्वेद, सामवेद का गंधर्व और अथर्ववेद का स्थापत्य उपवेद है।
हमारे 6 वेदांग हैं-
शिक्षा ,कल्प ,व्याकरण, निरूक्त ,छंद, ज्योतिष
इसी तरह 6 दर्शनशास्त्र हैं-
सांख्य,योग,वेदांत, मीमांसा, न्याय,वैशेषिक
कुल 18 स्मृति ग्रंथ हैं जिनमें प्रमुख हैं
मनुस्मृति
याज्ञवल्क्य स्मृति
पाराशर स्मृति
आपस्तंब स्मृति
हमारे उपनिषद की संख्या लगभग 108 है, जिनमें प्रमुख रूप से 11 माने गए हैं।
इसी तरह हमारी यशस्वी परंपरा के वाहक पुराण ब्रह्म, पद्म, विष्णु, शिव, नारद, श्रीमदभागवद्, मार्कण्डेय, अग्नि, गरुड़, ब्रह्मांड, भविष्य, लिंग, ब्रह्मवैवर्त्त, वराह, स्कंद, वामन, कर्म, मत्स्य हैं। रामायण, महाभारत हमारे काव्य ग्रंथ हैं। इनके सारग्रंथ राम चरितमानस और श्रीमद्भगवदगीता कहे गए हैं।पुस्तक में बेहद सहजतम तरीके से वेदों के मंत्रदृष्टा ऋषि, आराध्य देवता और प्रयुक्त छंद की संक्षिप्त जानकारी दी गई है। साथ ही छंदों में कल्पित देवताओं की स्तुतियाँ भी वर्णित हैं। सुबोध हिन्दी में इंद्र, अग्नि, मरुत्त सविता (सूर्य) को किए जाने वाले आह्वान, याचनाएँ और कामनाएँ अनूदित कर प्रस्तुत की गई हैं। जैसे- ''हे अग्ने, हमारे इस यज्ञ को देवों को दे दो। हमारी हवियों का सेवन करो। हे अग्ने, तुम शुद्ध हो। इस यज्ञ में तुम्हारे तथा देवों के लिए घी की बूँदें टपक रही हैं।''''
हे घन रूप इन्द्र ! तुम्हारे दान और रक्षाओं से हम कभी वंचित न हों। 'हे सोम! हमको अपयश से बचाओ तथा पापों से हमारी रक्षा करो। 'हे उषे ! तू अत्यंत अन्न वाली है।''उस अद्भुत अन्न को हमारे निमित्त लाओ जिससे हम अपने परिवार का पोषण करें। गौ, अश्व, प्रकाश, सत्यवाणी से युक्त उषे, तू हमारे लिए संपन्नता लेकर आ। |
पुस्तक में बेहद सहजतम तरीके से वेदों के मंत्रदृष्टा ऋषि, आराध्य देवता और प्रयुक्त छंद की संक्षिप्त जानकारी दी गई है। साथ ही छंदों में कल्पित देवताओं की स्तुतियाँ भी वर्णित हैं.... |
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पुस्तक में चारों वेदों का संक्षिप्त और प्रभावी अनुशीलन निश्चित रूप से विशिष्ट उपलब्धि कही जाएगी। वर्तमान में जहाँ संस्कृति और इतिहास की विरासत को विस्मृत कर देना एक फैशन बन गया है, ऐसे विषम दौर में उस अनमोल ज्ञान संपदा का इतने सुंदर रूप में आना एक संतोष प्रदान करता है।
सुखद आश्चर्य का विषय यह है कि लेखक जाने-माने टैक्स सलाहकार हैं। कॉमर्स के सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं और उनकी वेदों में गहन रुचि स्वयं तक सीमित न रहकर इस आकर्षक रूप में अभिव्यक्त हुई है।
वेद और वेदों में वर्णित अथाह ज्ञान संपदा का यह पवित्र प्रसाद निश्चित रूप से नवीन पीढ़ी के लिए शिरोधार्य है, सम्माननीय और संग्रहणीय है। वेदों को श्रुति-स्मृति परंपरा के द्वारा पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित किया गया था। अर्थात सुनकर और स्मरण रखकर हमारे पूर्वजों ने आने वाली पीढ़ी को ज्ञान का दीपक सँजोए रखने की शिक्षा दी।
कहना न होगा कि डॉ. सिंगी ने उसी यशस्वी परंपरा का विनम्र निर्वाह किया है, ताकि समाज को सुगठित, समन्वित और सुसंस्कारित बनाए रखने का जो लक्ष्य पूर्वजों ने निर्धारित किया था, उस तक पहुँचा जा सके। उस आचरण संहिता का शतांश पालन भी हमें श्रेष्ठ नागरिक बनने की राह दिखा सकता है।
लेखक का यह प्रयास स्तुत्य है। अपने पुत्र-पौत्रों को भगवत् प्रसाद स्वरूप समर्पित यह पुस्तक हृदय से स्वागतयोग्य है।
पुस्तक - चारों वेद (चार वेदों का परिचयात्मक अनुशीलन)
लेखक - डॉ. रामकृष्ण सिंगी
प्रकाशन - सुशील प्रकाशन