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चोर मचाए शोर

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- नूपुर दीक्षि

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विमल कुमार की पुस्‍तक 'चोर पुराण' का नाम कुछ अजीब लगता है। नाम से ही स्‍पष्‍ट है कि पुस्‍तक व्‍यंग्‍यात्‍मक लहजे में लिखी गई है। इस किताब में लेखक ने चोर का उदाहरण लेकर समाज के हर तबके में उपस्थित सफेदपोश लोगों पर कटाक्ष किया है। राजनीतिज्ञ, पुलिस, प्रशासनिक अधिकारी सभी के भीतर कहीं-न-कहीं एक चोर छिपकर बैठा हुआ है।

मंदिरों में की जाने वाली बिजली की चोरी हो या योजनाओं के क्रियान्‍वयन में होने वाली हेराफेरी। हर तरह की चोरी का इस चोर पुराण में वर्णन किया गया है

लेखक ने सरल भाषा में चोर के माध्‍यम से पूरी व्‍यवस्‍था पर व्‍यंग्‍य कसा है। राह चलते जेब काटने वाला या पर्स छीनने वाला चोर तो कम-से-कम खुलेआम खुद को चोर बताते हुए, पर्स में रखे दो-तीन सौ रुपए ही चुराता है। इस चोरी के बदले खूब गालियाँ सुनता है और पकडे़ जाने पर बुरी तरह मार खाता है। व्‍यवस्‍था में नकाबों के पीछे छिपे चोर लाखों लोगों की गाढ़ी कमाई हजम कर जाते हैं पर कोई एक आवाज तक नहीं करता है।

चोर प्रवृत्ति के इन लोगों ने कला, संगीत और साहित्‍य को भी नहीं बख्‍शा है। इन चोरों ने चोरी से ही बड़ी-बड़ी डिग्रियाहासिल कीं, इन्‍हें पाने के बाद बड़पदों पर अपना कब्‍जा जमाया और अब वे अपनी चोर विद्या का जमकर इस्‍तेमाल कर रहे हैं। कहीं स्‍कॉलरशिप चुराने में जूनियर चोरों की मदद कर रहे हैं तो कहीं पीएचडी की थीसिस चुराने में चोरों की मदद कर रहे हैं। इनकी शिकायत भी नहीं की जा सकती क्‍योंकि शिकायत सुनने वाला भी इन्‍हीं का मौसेरा भाई है

हर क्षेत्र में हो रही हर तरह की चोरी पर लेखक ने कटाक्ष किया है। कहीं व्‍यंग्‍य, कहीं दार्शनिकता तो कहीं शुद्व मनोरंजक शैली में लिखी यह किताब वाकई चोर पर लिखे किसी पुराण की तरह ही लगती है। किताब में चोर का मंगलाचरण, चोर वंदना और चोर आरती भी है

पुस्‍तक- चोर पुराण
लेखक- विमल कुमार
मूल्‍य- 150
प्रकाशक- पेंगुइन

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