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छुट्टी के दिन का कोरस

परित्यक्त ईश्वर की तलाश में एक दिन

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हिमांशु पंड्या
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समकालीन हिंदी कथा साहित्य के प्रमुखतम हस्ताक्षरों में से एक प्रियंवद का तीसरा और महत्वाकांक्षी उपन्यास 'छुट्टी के दिन का कोरस' विवान विंसेंट डगलस के जीवन की छुट्टी के एक दिन की कथा है। 'शेखर : एक जीवनी' की तरह ही इस एक दिन में ही हम लोग उसके समूचे जीवन के अंधेरे-उजाले कोनों में झाँक आते हैं। 72 वर्षीय वृद्ध विवान, जो एक अंगरेज जमींदार पिता और हिंदू माँ की संतान हैं, आज मय्यत कमेटी के दफ्तर में अकेला रहता हुआ लावारिस लाशों के अंतिम संस्कार का काम कर रहा है।

अकेलेपन और गुमनामी का जीवन बिता रहा विवान अपनी जिजीविषा स्मृतियों से प्राप्त करता है। ये असंबद्ध और विश्रृंखलित स्मृतियाँ बेहद रोमांचकारी और उतार-चढ़ाव से भरे उसके जीवन और क्रमशः उसके पिता और पूर्वजों की कथाओं तक जाती हैं। इसमें विवान की प्रतीक्षाएँ हैं, उन लोगों की प्रतीक्षाएँ हैं, जिनसे मिल पाना अब संभव नहीं और इसलिए ये प्रतीक्षाएँ स्थायी रूप लेकर विवान के अंत में समा गई हैं।

प्रियंवद अनेक कथा सरंचनाओं का एक अद्भुत कोलाज रचते हैं, जिनमें इतिहास के महा-आख्यान से निकलकर मोहम्मद अली, माहरुख, विवमॉट डगलस, रामू, फजलू जैसे पात्र अपने अधूरेपन और साधारणता के साथ हमारे सामने आकर इतिहास के पाठ के अधूरेपन को उद्घाटित करते हैं।

यह उपन्यास उन अनेक साधारण चरित्रों के कारण उल्लेखनीय है जो उपन्यास में अपने विलाप की स्थायी छाप छोड़ जाते हैं । विवान की अपने 'स्व' की पहचान की तलाश के लिए उल्लेखनीय है और सबसे उल्लेखनीय है 'परित्यक्त ईश्वर' की व्यंजना के लिए। विवान के साथ उसका परित्यक्त ईश्वर है, यह उसकी माँ के साथ भी था।

विवान को पकड़े जाते समय पहले बार 'स्रष्टा और नियंत्रक ईश्वर की प्रतीति' होती है। प्रियंवद ईश्वरत्व में भी पूर्णता और नियंत्रण को सर्वसत्तावाद के साथ जोड़कर उपन्यास का सर्वाधिक राजनीतिक बयान देते हैं। यह खंडित ईश्वर है जो मनुष्य के अधूरेपन में उसके साथ है, यह परित्यक्त ईश्वर है जो मनुष्य के अकेलेपन की नियति में उसके साथ एकाकार होता है। मनुष्य का दुख, उसकी स्मृतियाँ उसकी आँखों की बूँद हैं जो ईश्वर की लिपि है। वृद्ध विवान का आत्मशोधन उपन्यास का सर्वाधिक प्रभावी अंश है।

इसमें उस कमरे के बाहर के दृश्यों का कोलाज एक अविस्मरणीय दृश्य की सृष्टि करता है। छुट्टी के इस दिन की शुरुआत एक 'कील' ढूँढने के लक्ष्य से होती है, जिसे अंत में एक सूखी नदी के छोर पर जाकर धार के नीचे विवान चुरा पाता है। विवान अंत में उस कोरस में शामिल होता है, जो जीवन की महागाथा से बना है। यह अवसाद के रचनात्मक रूपांतरण की यात्रा है।

पुस्तक : छुट्टी के दिन का कोरस
लेखक : प्रियंवद
प्रकाशक : भारतीय ज्ञानपीठ
मूल्य : 250 रुपए

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