- राजीव सारस्वत
महानगर के काव्य मंचों पर सुपरिचित नाम 'खन्ना मुज़फ़्फ़रपुरी' का ताजा ग़ज़ल संग्रह 'तन्हा-तन्हा मुझे हयात मिली', जो कुछ ही दिन पहले शायर हुआ है, जिसे आशीर्वाद राजभाषा सम्मान समारोह में 'संगीतकार खय्याम ने लोकार्पित किया।
लंबे अरसे तक बैंक सेवा के बाद अब खन्ना मुज़फ़्फ़रपुरी पूरी तरह से शायरी के आगोश में हैं। एक उम्दा ग़ज़लकार होने के साथ ही खुशमिजाजी और इंसानियत भी उनके स्थायी जेवर हैं। उनकी शख्सियत का आईना-सा है, उनका कलाम भी जरा गौर करें : 'पहले मुझको रुलाया गया, फिर खिलौना थमाया गया' राजनीति पर उनकी लेखनी यूँ चली है : 'वह कुर्सियों का खेल 'खन्ना' अजीब था, जितने सियासी लोग थे-सब मालदार थे।'
जमाने की तस्वीर खींचते हैं : 'तबसेरा है मेरी निगाहों पर, शर्म आती नहीं गुनाहों पर।' एक और नायाब शेर देखें : 'गम भुलाने को लोग पीते हैं और हम गम को पी के जीते हैं।' दर्द का चित्र यूँ उभरा : 'जब भी हमने ग़ज़ल सुनाई है, जाने क्यों आँख डबडबाई है।' इसी क्रम में आगे देखें : दर्द इंसानों को दे जाते हैं लोग और पत्थर पूजने आते हैं लोग।' सच की तस्वीर बयाँ यूँ की है : 'जीते जी जिनको भूल जाते हैं, बाद मरने के याद आते हैं।'
नसीहत भी देना नहीं भूले- 'दो पाँव है हुजूर तो चलना भी जानिए, वरना किसी चौपाये को उस्ताद मानिए।' पुस्तक का शीर्ष शेर यूँ है : 'शहर में दिन न घर में रात मिली, तन्हा-तन्हा मुझे हयात मिली।' कुछ मिलकर पूरा गजल संग्रह जो उनके तजुर्बों का निचोड़-सा है, वाकई संग्रहणीय बन पड़ा है। कलाम में सादगी झलकती है।
पुस्तक : तन्हा-तन्हा मुझे हयात मिली
लेखक : खन्ना मुज़फ़्फ़रपुरी