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'ति‍तलियाँ आसपास'

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हमें फॉलो करें 'ति‍तलियाँ आसपास'
- डॉ. सतीश दुब

Aziz AnsariWD
हिन्दी और उर्दू में साधिकार सृजनरत रचनाधर्मियों के बीच अज़ीज़ अंसारी एक सुपरिचित नाम है। अपने कार्यक्षेत्र की जिम्मेदारी का निर्वाह करते हुए अज़ीज़ भाई ने लेखकीय दुनिया से अपने को अलहदा नहीं किया। पूरे देश के महत्वपूर्ण मुशायरों और कवि सम्मेलनों में शिरकत कर इस शख्स ने मालवा की उर्वरा-शक्ति को पहचान दी।

अपने समय में व्याप्त आपाधापी की तमाम विसंगतियों से संबद्ध विद्रूप यथार्थ के यथातथ्य चित्रण की अपेक्षा अज़ीज़ अंसारी अपने लेखन में मनुष्य के उस पक्ष को तराशते हैं जो उसकी सहजात प्रवृत्ति इंसानियत से संबद्ध है। इनकी इस कथ्यगत सोच के साक्ष्य में सद्य प्रकाशित कृति 'तितलियाँ आसपास' की रचनाओं को देखा जा सकता है।

'तितलियाँ आसपास' में तकरीबन एक सौ पैंसठ रचनाएँ संकलित हैं। रचनाओं को तराशने में कवि ने त्रिपदीय फार्मेट का प्रयोग कर कविता-जगत में इस शैली की याद ताज़ा की है।
  हिन्दी और उर्दू में साधिकार सृजनरत रचनाधर्मियों के बीच अज़ीज़ अंसारी एक सुपरिचित नाम है। अपने कार्यक्षेत्र की जिम्मेदारी का निर्वाह करते हुए अज़ीज़ भाई ने लेखकीय दुनिया से अपने को अलहदा नहीं किया।      
जीवन में निहित रस के आस्वादन के लिए जरूरी है ठहरकर उसके आनंद को ठीक से समझा जाए उसी प्रकार जैसे तितलियाँ फूलों पर ठहरती हैं, तब तक जब तक कि वह उसके रस का पान कर तृप्ति महसूस नहीं कर ले।

जाहिर है इस अर्थ में ति‍तलियाँ प्रतीक का प्रयोग अज़ीज़ अंसारी की सूक्ष्म सोच की अनूठी और सराहनीय कल्पना है। इसे यूँ भी कहा जा सकता है कि उर्दू-हिन्दी में यह प्रथम प्रयोग है।

संग्रह में ति‍तलियाँ रचनाएँ जीवन-उपवन में वहाँ उड़ती-मंडराती हुई अपने रंग-बिरंगे पंखों और फरफराहट के साथ दिखाई देती हैं जहाँ स्कूल जाते बच्चे हैं, कर्तव्यनिष्ठ व्यक्ति, जीवन को सही अर्थ देता समाज, नफरत के माहौल को चुनौती देते लोग या वतन की ज़मीं को सजदा करती भीड़ मौजूद है।

शुरुआती सफे पर ही ऐलान करते हुए शायर कहता है - 'सबको इक यार की ज़रूरत है। पेट भरता है रोटियों से मगर/रूह को प्यार की जरूरत है।'

संसार में विभिन्न क्षेत्रों से मिलने वाले दर्द, उपेक्षा, निरुत्साह से निजात पाने का श्रेष्ठ तरीका है व्यक्ति वचनबद्धता पर कायम रहे - इस जहाँ में तू सबसे अच्छा हो/ तू अगर सारे ग़म उठाकर भी /अपने कौल ओ अमल का सच्चा हो/' बलात थोपी जाने वाली बाध्यताएँ व्यक्ति को विचलित कर देती हैं। इसलिए बेहतर है उसे उसकी मर्जी के मुआफिक जीने दिया जाए अन्यथा 'वह झुकेगा तो टूट जाएगा।'

संग्रह की तसलीसें पढ़ते हुए जो संप्रेष्य प्रभाव मन-मस्तिष्क पर छा कर जीने का सुकून देता है। वह ऐसा लगता है मानों तपन के माहौल में ठंडी बयार का अचानक आया झोंका शरीर के रोम-रोम में हलचल मचा गया हो।

शब्दों की क्लिष्टता या दुरूह अर्थग्राह्य क्षमता से परे संग्रह की रचनाएँ हर श्रेणी के पाठकों को साहित्य के संदेशमूलक सरोकारों से परिचित कराने का माद्‍दा रखती है।

एक ही जिल्द में उर्दू और देवनागरी लिपि के नए प्रयोग रूप में प्रस्तुत यह कृति पाठकों के बीच विशिष्ट पहचान बनाएगी, ऐसा विश्वास है।

पुस्तक : तितलियाँ : आसपास
* रचयिता : अज़ीज़ अंसारी
* प्रकाशक : सुरखाब पब्लिकेशन्स
कमरी मार्ग, उज्जैन
मूल्य : 120/-

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