दलित समाज के साथ ज्यादतियों के सिलसिले भारत में उतने ही पुराने हैं जितना कि हमारा इतिहास। इसके लिए पूरे तौर पर जिम्मेदार हमारी वर्ण व्यवस्था रही है। हालाँकि जिस दौर से हम गुजर रहे हैं, उसमें ये सारी बातें बेमानी हैं लेकिन उन दक्षिणपंथी ताकतों के लिए जरूरी भी हैं, जो भारत की रूह यानी एकता, इत्तेहाद को तार-तार करने की कोशिश में लगी हैं। इस किताब की प्रेरणा विश्व हिन्दू परिषद नेता अशोक सिंघल की वह टिप्पणी (15 जून 1995 को 'हिन्दुस्तान टाइम्स' में प्रकाशित) है जिसमें वर्ण व्यवस्था या दलितों पर ज्यादती के लिए मुस्लिमों को जिम्मेदार ठहराया गया है।
इस टिप्पणी का प्रभाव यह हुआ कि लेखक इंतिजार नईम इस अध्ययन में लग गए कि भारत की वर्ण व्यवस्था में दलितों के साथ ज्यादतियों की शुरुआत कब और कैसे हुई। किताब को कुल 8 हिस्सों में लिखा गया हैः (1) आरोप, (2) अलगाव, (3) अधिकार, (4) दमन, (5) दर्द, (6) अत्याचार, (7) आक्रोश व (8) शांति। इस किताब को लिखने में इंतिजार साहब के दो मकसद पूरे होते हैं। दलितों के साथ हमदर्दी दिखाते हुए उन्होंने इस्लाम की पैरवी भी कर दी!
हालाँकि इस मकसद के साथ पूरी किताब में लेखक ने अपने को या अपने विचारों को एकदम अलग रखते हुए एक सूत्रधार की भूमिका निभाई है। वरना इस विषय पर अब तक अनेक किताबें आ चुकी हैं, लेकिन इस किताब को सिर्फ सही तथ्यों की व्याख्या करने के कारण ही पसंद किया गया है।
'दलित समस्या : जड़ में कौन?' का यह चौथा संस्करण है। पहला संस्करण 1996 में प्रकाशित हुआ था। देश-विदेश के अनेक हिन्दू-मुस्लिम विद्वानों-विचारकों ने एकमत से कहा है कि इस किताब ने दलितों की अंतरात्मा को छुआ है। जो प्रमाण दिए गए हैं उन्हें स्वीकारने में किसी भी सुलझे जहन के व्यक्ति को आपत्ति नहीं होगी। यही इस किताब की खासियत भी है। कुछ विचारकों ने तो इसे दलित समाज के दस्तावेज का विश्वकोश भी लिखा है।
किताब के पहले हिस्से में दलित समस्या की जड़ों के बारे में बताते हुए तथा दूसरे-तीसरे हिस्से में मानवता के गैर-इंसानी बँटवारे के बारे में बताते हुए दलितों के अधिकारों की भी बात कही गई है। बाद के हिस्सों में दलितों के साथ हमदर्दी और दमन-अत्याचार के बारे में बताते हुए इसका अंत शांति और सद्भावना के साथ किया गया है।
पुस्तक : दलित समस्या : जड़ में कौन? लेखक : इंतिजार नईम प्रकाशक : साहित्य सौरभ, 1781, हौज सूईवालान, नई दिल्ली-110002 मूल्य : 100 रुपए।