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दुखमोचन : एक शक्तिशाली उपन्यास

राजकमल प्रकाशन प्रस्तुति

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हमें फॉलो करें दुखमोचन : एक शक्तिशाली उपन्यास
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पुस्तक के बारे मे
दुखमोचन एक गाँव की कहानी है। एक ऐसे पिछड़े गाँव की कहानी जहाँ युगों से निश्च्छल पड़ी जिन्दगी नए युग की रोशनी पाकर धीरे-धीरे जाग रही है। लोक-जीवन के चितेरे कथाकार नागार्जुन ने अलग जातियों में बँटे उस ठेठ देहाती समाज का जीवन्त चित्रण किया है, जो आज भी अभावों और विवशताओं में जीता है।

पुस्तक के चुनिंदा अं
'पान की सीठी दबी पड़ी थी मुँह के अंदर। उसे थूक कर नित्या बाबू ने गला साफ किया । अब उन्हें लगा कि दुखमोचन पर इन बातों का रत्ती भर भी असर नहीं पड़ा। फिर उन्होंने आखिरी तीर छोड़ा - मकई-मड़ुवा ही जिनके लिए अच्छी किस्म का अनाज ठहरा,उन्हें गेहूँ देना बेकार होगा। वे ले तो लेंगे,लेकिन मिट्टी के भाव सारे दाने बेच डालेंगे। घूम फिर कर सहायता का वह गेहूँ सही जगहों पर आ ही जाएगा। विधाता ने गेहूँ और धान सबके लिए थोड़े ही सिरजे हैं?'
***
'दुखमोचन उठकर पहले पान की सीठी थूक आए, तब कहा -भाइयों, इस अनाज को खैरात ना समझना और ना गुलामी का चारा-चोंगा ही समझना इसको। यह तो एक किस्म की अगाऊ मजदूरी है, जिसके लिए आप सभी को अपनी-अपनी शक्ति के अनुसार कभी न कभी काम करना होगा। आगे हम बाँध तैयार करेंगे, पोखरों की मरम्मत करेंगे, कुओं की खुदाई होगी, गाँव की तरक्की के दसों काम होंगे। एकजुट होकर हमें यह काम करना होगा।'
***
भौंहें चमका कर हँसी को मामी ने पलकों में ही घोंट लिया और निगाहें फेर ली। दुखमोचन एकाएक गंभीर हो गए। थाली में सने हुए दाल-भात पर हाथ रोककर कहने लगे-दुनिया समझती है कि गाँववाले बड़े भोले-भाले और शराफत के पुतले होते हैं, लेकिन यहाँ आकर देख जाए कोई...कौन सी बदमाशी छूटी है गाँववालों से! लोभ, लालच, छल, प्रपंच, झूठ, बेईमानी, ठगी, और विश्वासघात ...वह कौन सा औगुन है जो यहाँ नहीं है मामी! बतला सकती हो?'
***
समीक्षकीय टिप्पणी
दुखमोचन एक छोटा मगर शक्तिशाली उपन्यास है। इसका नायक दुखमोचन नई युग-चेतना का संवाहक है। अंध रूढियों और पुराने संस्कारों से ग्रस्त समाज में बदलाव लाने के लिए वह जो संघर्ष करता है, उसे कथाकार ने बड़ी मार्मिकता से चित्रित किया है। पीडि़तों और दलितों के रहबर के रूप में दुखमोचन की भूमिका जहाँ मन में प्रेरणा जगाती है, वहीं नित्या बाबू और त्रिजुगी चौधरी जैसे गाँव के इने-गिने संपन्न लोगों के फरेबों और कुचक्रों से रोष उत्पन्न होता है। एक नए निर्दोष युगारंभ के लिए दुखमोचन एक प्रेरणास्त्रोत बन कर उभरता है। नागार्जुन की वाम चेतना इस उपन्यास में उभर कर आई है।

उपन्यास: दुखमोचन
लेखक : नागार्जुन
प्रकाशक : राजकमल प्रकाशन
पृष्‍ठ : 140
मूल्य: 125 रु.

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